गेहूं की फसल देख आंखों से निकल रहे आंसू
गोपालगंज : दियारे की रेतीली भूमि में उपजी गेहूं की फसल को दिखाते हुए रघुवीर सहनी की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. कहते हैं बड़ी अरमान से खेती की थी. मेहनत की, पैसे लगाये और जब बारी अनाज घर लाने की आयी, तो गेहूं के बाल में दाने नहीं हैं. इन्होंने 10 एकड़ में […]
गोपालगंज : दियारे की रेतीली भूमि में उपजी गेहूं की फसल को दिखाते हुए रघुवीर सहनी की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. कहते हैं बड़ी अरमान से खेती की थी. मेहनत की, पैसे लगाये और जब बारी अनाज घर लाने की आयी, तो गेहूं के बाल में दाने नहीं हैं. इन्होंने 10 एकड़ में गेहूं को खेती की थी. 55 हजार रुपये खर्च हुए थे. 50 हजार रुपये कृषि लोन के थे.
पांच हजार इनके अपने पैसे थे. आमदनी जीरो है. कहते हैं प्रतिवर्ष कर्ज देकर दो लाख की कमाई होती थी. इस बार कर्ज कैसे चुकता होगा, पूरा परिवार मर्माहत है.
यह दर्द अकेले रघुवीर को नहीं, बल्कि सैकड़ों किसानों का है, जिनका वर्तमान तो बिगड़ ही गया है, भविष्य के लिए चिंतित हैं. आखिर ये किसान करे तो क्या करे. इसके लिए दोषी कौन है, प्रकृति या वर्तमान की व्यवस्था. किसान कहते हैं, किस्मत की बात है-किस्मत की बात है. मौसम बेरुखा था. सरकारी बीज ने दगा दिया है. किसान देव नारायण सहनी ने भी 20 किलो सरकारी बीज अनुदान पर लिये थे. उसका तो और बुरा हाल है.
नहीं आया कोई मरहम लगाने
किसानों में फसल की बरबादी पर हाय-तोबा मची है. कृषि विभाग ने अनुदान पर गेहूं का बीज वितरण करा दिया, लेकिन इस बीज का उत्पादन क्या है, इसका हाल जानने तक कृषि विभाग मुनासिब नहीं समझा, किसानों की मानी जाये, तो सर्वे के नाम पर कार्यालयों में बैठ कर ही फसल नुकसान की रिपोर्ट सौंप दी गयी.
की थी खेती, अब पलायन की तैयारी
चार यार करण, गुड्डू, दारोगा और सोनू ने मिल कर 40 बीघे में गेहूं की खेती की, ताकि आमदनी से बेरोजगारी दूर होगी. ऊंचे ब्याज पर महाजन से 40 हजार रुपये कर्ज ले लिये. एक दाना भी घर नहीं आया. अब कर्ज सधाने और महाजन के भय से परदेस जाने की तैयारी में हैं. ऐसे दो सौ से अधिक किसान हैं, जो फसल बरबाद हो जाने के बाद पलायन की तैयारी में हैं.