काश ! डॉक्टर ने निभायी होती ड्यूटी

पवन अग्रवाल सिधवलिया: काश! सिधवलिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डॉक्टर अपनी ड्यूटी निभायी होती तो शायद 10 वर्षीय बच्चे सुमित कुमार की मौत नहीं होती . परिजनों के आग्रह पर डॉक्टर की नींद खुली रहती तो शायद उसे उचित इलाज मिल जाता . बच्चे की जान बचायी जा सकती थी. सांप डसने के बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2013 1:39 AM

पवन अग्रवाल

सिधवलिया: काश! सिधवलिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डॉक्टर अपनी ड्यूटी निभायी होती तो शायद 10 वर्षीय बच्चे सुमित कुमार की मौत नहीं होती . परिजनों के आग्रह पर डॉक्टर की नींद खुली रहती तो शायद उसे उचित इलाज मिल जाता . बच्चे की जान बचायी जा सकती थी. सांप डसने के बाद पीड़ित के परिजन अस्पताल में गिड़गिड़ाते रहे और डॉक्टर उठ कर इलाज करना तक उचित नहीं समझा. परिजनों ने बताया कि अस्पताल में जेनेरेटर चलानेवाले अनिल पांडेय ने खुद डॉक्टर बन कर जैसे- तैसे इलाज का कोरम पूरा कर दिया .जेनेरेटर चलानेवाले क ो क्या पता था कि सांप डंसने के बाद कौन सूई दी जाती है. सूई भी स्नेक्स की नहीं लगी और सांप के डसने के बाद बांधी गयी पैर की रस्सी खोल दी गयी, जिससे सांप का जहर पूरे शरीर में तेजी से फैल गया . आये दिन सदर अस्पताल में लापरवाही बरतने से लोगों की मौत होती है और जिम्मेदार डॉक्टर खुद को अपनी ड्यूटी के प्रति सचेत नहीं रहते .

बुचेया कली टोला के बालेश्वर साह के इकलौते पुत्र सुमित कुमार की मौत क ी घटना ने कौशल्या की गोद सुनी कर दी है. किसी को क्या पता था कि डॉक्टर की थोड़ी सी चुक के कारण कौशल्या की गोद सुनी हो जायेगी . अस्पताल में बच्चे की मौत पर कौशल्या की स्थिति भी गंभीर हो गयी . कौशल्या बार- बार अपनी कलेजे की टुकड़े को पकड़ कर रो रही थी . कौशल्या की चीत्कार से पूरा अस्पताल गमगीन हो गया था . काफी मुश्किल से आसपास की महिलाएं उसे समझाने में लगी हुई थी.महिलाओं ने कौशल्या को काफी ढाढ़स बंधाया, फिर भी कौशल्या की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा था . कौशल्या अब जिंदा रहे भी तो किसके सहारे . पति दिल्ली में मजदूरी करते हैं. किसी तरह परिजनों का भरन पोषण मजदूरी पर टिका हुआ था . बेटा काफी होनहार था . वह छठे क्लास का छात्र भी था . उसकी मौत की खबर पर पूरे गांववालों का आक्रोश फूट पड़ा था .

पोस्टमार्टम होने से ग्रामीणों ने रोका

सांप डसने से मासूम बच्चे की हुई मौत की घटना से आक्रोशित लोगों ने शव को अस्पताल में रख कर जम कर हंगामा किया . पुलिस बच्चे के शव को पोस्टमार्टम कराने के लिए अपने कब्जे में लेना चाह रही थी, लेकिन उग्र ग्रामीण शव को किसी भी स्थिति में पुलिस को सौंपना नहीं चाह रहे थे. स्थिति विस्फोटक होती जा रही थी . इसकी जानकारी जब डीएम कृष्ण मोहन को मिली तो डीएम ने आंदोलनकारियों को फोन पर समझाया. समझने के बाद ग्रामीण बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के लिए तैयार थे. 11 बजे पुलिस शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा .

नहीं चलता है जेनेरेटर

स्थानीय लोगों ने बताया कि सिधवलिया अस्पताल में वर्षो से जेनेरेटर नहीं चलता . सफाई का आलम यह है कि अस्पताल से दरुगध निकलती रहती है.जेनेरेटर और सफाई के लिए यहां एजेंसी तैनात है, फिर भी सफाई की स्थिति बदतर है. अच्छे लोग सिधवलिया अस्पताल में इलाज कराने नहीं आते . वे सिधवलिया आने की जगह सदर अस्पताल जाना पसंद करते हैं. यहां तैनात डॉक्टर भी कभी कभार आकर अपना उपस्थिति दर्ज कर लेते हैं. हालांकि सीएस डॉक्टर शंकर झा जब भी यहां जांच करने पहुंचे तो गड़बड़ी पाते हुए जम कर फटकार लगायी थी.

क्या कहते हैं डीएम

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