चुनावी शोर में गुम हो गया रोजगार
चुनावी शोर में गुम हो गया रोजगार प्रति वर्ष 66 हजार युवा दूसरे प्रदेश में करते है पलायनघर में रोजगार नहीं मिलने से खाना पड़ता है प्रदेश में ठोकरगोपालगंज विस क्षेत्रचुनाव मुद्दा फोटो-11संवाददाता, गोपालगंजविधानसभा चुनाव के शोर में जिले का अहम मुद्दा गुम होता जा रहा है. जातीय गोलबंदी और जातीय गणित पर आधारित चुनाव […]
चुनावी शोर में गुम हो गया रोजगार प्रति वर्ष 66 हजार युवा दूसरे प्रदेश में करते है पलायनघर में रोजगार नहीं मिलने से खाना पड़ता है प्रदेश में ठोकरगोपालगंज विस क्षेत्रचुनाव मुद्दा फोटो-11संवाददाता, गोपालगंजविधानसभा चुनाव के शोर में जिले का अहम मुद्दा गुम होता जा रहा है. जातीय गोलबंदी और जातीय गणित पर आधारित चुनाव की मुहिम तेज है. इस मुहिम में आम आदमी जिसको लेकर त्रस्त है, उसे भुला दिया गया है. इस चुनावी शोर के बीच आपको लेकर चलते हैं शहर के जादोपुर रोड स्थित डीडीसी के आवास के आगे, जहां मजदूर बिकते हैं. मजदूरों का अपना बाजार लगता है. सुबह से 9 बजे तक खरीदार पहुंचे, तो मजदूर की घर की चूल्हा जलता है अन्यथा उनके घर फाकेबाजी रह जाती है. अधिकतर यहां वैसे लोग मजदूरी के लिए आते हैं, जिनका घर गंडक नदी में कट चुका है. काम मिला तो रोटी भी मिली. वैसे तो एक आंकड़े पर नजर डालें, तो जिले के 66 हजार युवा प्रतिवर्ष दूसरे प्रदेश में रोजगार की तलाश में ठोकर खाने पर विवश होते हैं. बिहारी होने की कड़वी घूंट उन्हें दिल्ली, मुंबई, मेघालय जैसे राज्यों में पीनी पड़ती है. अपने घर में इन्हें रोजगार मिले तो इन्हें बिहारी होने की गाली नहीं सुननी पड़ेगी. पलायन को रोकने के लिए सरकार ने मनरेगा जैसे कानून को बनाया. मनरेगा पर नजर डालें, तो पिछले तीन वर्षों में सौ दिन की मजदूरी जिले के मात्र 262 लोगों तक ही पहुंच सकी है. वैसे 42980 लोगों को रोजगार मनरेगा से मिल सका है. न कोई उद्योगधंधा है और न ही बैंक बेरोजगारी दूर करने के लिए लघु उद्योग खोलने के लिए ऋण दे रहा है. आरसेटी के आंकड़े ताजा गवाह हैं कि 1360 युवकों को प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन बैंकों ने मात्र 46 युवकों को रोजगार के लिए लिंकअप किया. क्या कहते हैं मजदूरमैं राजमिस्त्री का काम करता हूं. दिल्ली से लेकर कश्मीर तक काम किया हूं. बाहर काम करने में 30-35 हजार रुपये मिल जाते हैं, लेकिन बिहारी होने का जो दर्द मिलता है वह सहन नहीं हो पाता. पिछले पांच वर्षों से काम मिला तो किया, नहीं मिला तो घर बैठा. इसके लिए हमारी सरकार दोषी है. रोजगार के लिए जो भी सरकार सोंचेगी उसी को हम लोग वोट करेंगेफोटो-12, उमेश साह, राज मिस्त्री, गोपालगंजक्या कहते हैं विधायकसरकार ने रोजगार के तमाम अवसर दिये. केंद्र में जब भाजपा की सरकार आयी, तो मनरेगा जैसे कानून में कटौती की गयी. कल तक अन्य प्रदेशों में बिहार के प्रति जो अपेक्षा थी आज बिहारी होने पर अन्य प्रदेशों में भी गर्व महसूस किया जा रहा है. यह मुख्यमंत्री की देन है कि हम शान से अन्य प्रदेशों में भी बिहारी कहलाते हैं. फोटो-13, अमरेंद्र पांडेय, कुचायकोट