गोपालगंज : शहर में ज्वेलरी खरीदने वाले ग्राहकों को सोने व चांदी के आभूषणों में कितनी शुद्धता मिलती है, इससे ग्राहक व जिला प्रशासन अनजान है. हैरानी की बात यह है कि यहां पर सोने की शुद्धता की जांच के लिए गोल्ड कैरो मीटर यंत्र ही नहीं है.
ऐसे में शहर में जो सोने का कारोबार हो रहा है उसकी शुद्धता की जांच जिला प्रशासन की ओर से नहीं करवायी जा रही है. जिला प्रशासन की ओर से अभी तक सोने की जांच के लिए न तो कोई टीम गठित की गयी है और न ही अभी तक इसके लिए कोई कदम उठाया गया है. यहां तक कोई भी अधिकारी सोने की शुद्धता को लेकर ज्वेलरी शॉप का निरीक्षण भी नहीं करते हैं.
यदि कोई उपभोक्ता सोने की शुद्धता का पता भी करना चाहे, तो उसे राजधानी पहुंचना पड़ता है. क्यों जरूरी हॉल मार्क हॉल मार्क इसलिए जरूरी हो गया है कि कुछ दुकानदार आभूषणों को 90 फीसदी सोने का बता कर ग्राहकों को बेच देते हैं. जब ग्राहक जरूरत पड़ने पर इसे बेचने जाता है, तो उसे पता चलता है कि उसे 30 फीसदी खोट का माल टिका कर दुकानदार ने उसे लूट लिया, लेकिन जब तक ग्राहक को पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है.
यही कारण है कि हॉल मार्क को आवश्यक रूप से लागू करने की जरूरत है. हॉल मॉर्क यानी शुद्धता की गारंटी हॉल मार्क का निशान यानी सोने की शुद्धता पर भारत सरकार की गारंटी. हॉल मार्क लगे सोने के आभूषण में 90 फीसदी सोना होता है. आभूषण को बेचने पर 90 फीसदी भाव मिल जाते हैं. सोना मापने के ये होते हैं आवश्यक यंत्र हॉल मार्क कैरो मीटर मशीन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार गेल्ड टेस्टिंग करती है.
कोई भी सर्राफा व्यापार करनेवाला सरकार के मापदंडों के आधार पर इस लैब का संचालन कर सकता है, जबकि यहां प्रशासन भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देता. यह मशीन करीब 70 लाख की है. कारोबारियों का तर्कशहर के कुछ बड़े सर्राफा कारोबारियों का तर्क है कि वह दिल्ली या अन्य बड़े राज्यों से ही सोना लाते हैं.
पहले ही सोना के साथ शुद्धता का प्रमाणपत्र होता है. लिहाजा वह ग्राहकों को भी सोना बेचते समय यह प्रमाणपत्र देते हैं. हालांकि उनका कहना है कि यदि किसी को टेस्टिंग करवानी हो तो उसे दूसरे शहर में जाना पड़ता है.
जिले में हो लैब केंद्र सरकार ने हॉल मार्क अनिवार्यता का नियम तो लागू कर दिया है, लेकिन इसके पालन के लिए जरूरी है जिला स्तर पर लैब हो. इसके लिए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है.
यहां है कमीकुछ कारोबारी स्वयं सोने के आभूषण बनाते हैं. वह शुद्धता का प्रमाणपत्र नहीं देते. आभूषण में कई तरह की मिलावट हो सकती है. ऐसे में उपभोक्ताओं के ठगे जाने का ज्यादा चांस रहता है.