ट्रेस करने तक सिमटा साइबर सेल
गोपालगंज : साइबर अपराधी जिले में प्रतिदिन 9-10 लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. अधिकतर मामलों में पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करती. प्राथमिकी दर्ज भी हो जाये, तो कार्रवाई अनुसंधान के दौरान कांड को सूत्रहीन करार दे दिया जाता है. यह गंभीर विषय है. साइबर विशेषज्ञ डॉ आरके मिश्र का मानना है कि इस […]
गोपालगंज : साइबर अपराधी जिले में प्रतिदिन 9-10 लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. अधिकतर मामलों में पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करती. प्राथमिकी दर्ज भी हो जाये, तो कार्रवाई अनुसंधान के दौरान कांड को सूत्रहीन करार दे दिया जाता है.
यह गंभीर विषय है. साइबर विशेषज्ञ डॉ आरके मिश्र का मानना है कि इस तरह के अपराध को रोकने के लिए पुलिस और समाज को तैयार करना पड़ेगा. वर्ष 2008 में प्रदेश में साइबर सेल बनाने की शुरुआत हुई और वर्ष 2011 तक हर जिले में साइबर सेल बन गया, मगर इसका काम केवल शिकायत आने के बाद अपराधियों को ट्रैस करने तक का है. आगे की कार्रवाई थाने से होती है. उन्होंने इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कुछ सुझाव भी दिये.
खाता साफ होने के बाद भटकते हैं पीड़ित : साइबर अपराधियों के शिकार होने के बाद पीड़ित जब पुलिस के पास जाता है, तो उसे टरका दिया जाता है. थाना पुलिस साइबर सेल और साइबर सेल संबंधित थाने के माध्यम से आने की बात कहता है. ऐसे में अधिकतर पीड़ित निराश होकर घर बैठ जाते हैं.
स्थानीय स्तर पर यह हो सकता है
क्राइम मीटिंग की तरह ड्यूटी के समय में से ही एक घंटे का समय निकाल इंस्पेक्टर, जब इंस्पेक्टर और सिपाहियों को साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी जाये. उन्हें यह बताया जाये कि साइबर अपराध के नये ट्रेंड क्या चल रहे हैं और उनके पास पीड़ित आता है, तो क्या कार्रवाई करें. इसके अलावा आइटी एक्ट की जानकारी देने साथ-साथ साइबर क्राइम के अलावा अन्य जघन्य कांड में डिजिटल एविडेंस कलेक्ट करने की विधि बतायी जाये.