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राष्ट्र संस्कृति के चतुर माली हैं शिक्षक : रामेश्वर त्रिपाठी

गोपालगंज : शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली हैं, जो बच्चों के मन-मस्तिष्क को सींच कर उनमें संस्कार और संस्कृति के बीज बोते हैं. शिक्षक दिवस के अवसर पर उक्त बातें हाइ स्कूल से सेवानिवृत्त हिंदी के शिक्षक रामेश्वर त्रिपाठी ने कहीं. उन्होंने कहा कि शिक्षक के बिना सभ्य समाज और विकास की कल्पना […]

गोपालगंज : शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली हैं, जो बच्चों के मन-मस्तिष्क को सींच कर उनमें संस्कार और संस्कृति के बीज बोते हैं. शिक्षक दिवस के अवसर पर उक्त बातें हाइ स्कूल से सेवानिवृत्त हिंदी के शिक्षक रामेश्वर त्रिपाठी ने कहीं. उन्होंने कहा कि शिक्षक के बिना सभ्य समाज और विकास की कल्पना संभव ही नहीं है.

ज्ञान पाने के लिए शिक्षक अनिवार्य हैं और इसके लिए शिष्य और गुरु के बीच प्रेम की गंगा बहनी चाहिए. ऐसे में जरूरत है कि छात्र अपने धर्म का पालन करें. वर्तमान व्यवस्था पर कहा कि आज के शिक्षक कामगार बन कर रह गये हैं. शिक्षा देने के अलावा उन्हें कई जिम्मेवारियां थमा दी गयी हैं, जिससे वे आहत हैं. यह बात सही है कि वर्तमान दौर में शिक्षक भी विकृतियों से वंचित नहीं हैं, लेकिन यह हालात पैदा किये गये हैं.
शिक्षक मरने तक शिक्षक ही रहता है और हर पल यदि सीखने वाला तैयार है तो वह ज्ञान की ज्योति जलाते रहता है. बदलाव व्यवस्था में होना चाहिए और शिक्षकों को भी अपने आप को गुरु रूप में ढालना चाहिए. बच्चे तो नादान हैं, उन्हें जैसे चाहा जाये बनाया जा सकता है. सब कुछ के बावजूद यह शाश्वत सत्य है कि बिना गुरु के ज्ञान कभी भी नहीं हो सकता चाहे वह क्षेत्र कोई भी क्यों न हो.

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