गोपालगंज : वे भी खुले आसमान में उड़ान भरना चाहते हैं. रेत का घरौंदा बना कर हमउम्र के साथियों के साथ खेलना उसकी भी इच्छा है. खुल कर किलकारी भरना और कुछ पाने की जिद करना उसके लिए दूर की बात है. उसका बचपन सलाखों में कैद होकर रह गया है. चनावे स्थित गोपालगंज जेल में बंद मां की खता की सजा भुगत रहे मासूम की आखिर कुसूर क्या है. जेल में 26 महिला बंदी हैं. इनमें एक मासूम बच्चा भी है. बिना कुछ किये सलाखों के पीछे बचपन बिताना पड़ रहा है.
मां की खता से उसकी जिंदगी बैरक में सिमट कर रह गयी है. उसे क्या पता मां के पैरों में कानून की बेड़ियां हैं. जेल मैन्युअल में जेल प्रशासन की ओर से न तो उन्हें खिलौने दिये जाने की व्यवस्था है और न ही खेल के साधन मुहैया कराने की. बंद कमरों में उसका बचपन गुजर रहा है. न कोई मैदान है और न ही कोई अक्षर ज्ञान करानेवाला.
तीन माह से सजा काट रहा मासूम : चनावे जेल में दहेज उत्पीड़न के मामले में बंद मीरगंज की कालिंदी देवी अपने ढाई वर्ष के मासूम बच्चे के साथ जेल में पिछले तीन माह से बंद है. उसकी जमानत अभी विचाराधीन है. वह अपने गोद में बच्चे को लेकर जमानत की उम्मीद में दिन गिन रही है. इससे कुछ दिन पहले जेल में आधा दर्जन बच्चे थे. धीरे-धीरे जमानत होने के साथ ही सभी बाहर आ गये.
छह वर्ष तक के मासूम मां के साथ रह सकता है : जेल मैन्युअल पर नजर डालें, तो मां के साथ छह वर्ष तक का मासूम जेल में रह सकता है. उसके बाद बच्चे को जेल से बाहर परिजनों को सौंप देना है. नियमानुसार बच्चे को शिक्षा की व्यवस्था भी जेल प्रशासन को करनी होती है. लेकिन, गोपालगंज जेल में कोई शिक्षक की व्यवस्था नहीं है.
क्या कहतें है जेल अधिकारी
जेल मैन्युअल के मुताबिक महिला बंदियों के साथ रहनेवाले बच्चों की व्यवस्था की जा रही है. उनको अलग से दूध, फल, पाउडर आदि उपलब्ध कराये जाते हैं.
संदीप कुमार, जेल अधीक्षक, गोपालगंज