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फाइलों में दफन हो रहा ”वारंट”

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By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2017 3:49 AM

उपेक्षा. थानों में 3228 सर्टिफिकेट वारंट का नहीं हो पा रहा निष्पादन

पुलिस कांडों को सुलझाने में उलझी हुई है. पुलिस के पास इतना वक्त नहीं है कि वारंटों का निष्पादन कर सके. इसके कारण थानों में सर्टिफिकेट केस के 3228 मामले दफन हो रहे हैं.
गोपालगंज : पुलिस की फाइलों में पांच अरब से अधिक राशि की रिकवरी का मामला दफन हो रहा है. कोर्ट से सर्टिफिकेट केस में जारी वारंट पर पुलिस के अधिकारी कुंडली जमाये हुए हैं. वारंटों का निष्पादन नहीं होने के कारण सरकार की पांच अरब की राशि लोग हजम कर चुके हैं. इनमें कई खुद को प्रतिष्ठित बतानेवाले लोग भी शामिल हैं. इन पर नीलाम पदाधिकारी के कोर्ट में चल रहे सर्टिफिकेट केस में पिछले एक वर्ष से वारंट जारी हो चुका है. पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं करने का लाभ इनको मिल रहा है. सर्टिफिकेट केस में कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जिन पर वारंट होने के बाद भी थाने के काफी करीबी हैं. उधर, पुलिस के पास वारंट भेजे जाने के बाद जिला नीलाम पदाधिकारी के कोर्ट को कार्रवाई का इंतजार है. कार्रवाई नहीं होने से सर्टिफिकेट केस का फैसला भी पेंडिग पड़ा हुआ है. सर्टिफिकेट केस में 10 से 15 साल पुराना केस अब वारंट निष्पादन के इंतजार में फंसा हुआ है.
क्यों होता है सर्टिफिकेट केस : बैंक से कर्ज लेकर चुकता नहीं करनेवाले, बिजली बिल, टेलीफोन बिल, होल्डिंग टैक्स, वाणिज्य कर, आयकर विभाग की बकाया राशि जमा नहीं करने पर पहले विभाग अपने स्तर से राशि की रिकवरी के लिए कार्रवाई करता है.
जब विभाग या बैंक स्पष्ट हो लेता है कि राशि की रिकवरी उससे नहीं हो पायेगी. तब जिला नीलाम पदाधिकारी के कोर्ट में सर्टिफिकेट केस दाखिल करता है. केस दाखिल होने के बाद संबंधित व्यक्ति को नोटिस भेज कर कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया जाता है. नोटिस के बाद भी जब लोग कोर्ट में नहीं पहुंचते हैं, तब उन पर वारंट पूर्व सूचना दी जाती है. इसके बाद भी पैसा जमा करने या कोर्ट में उपस्थित नहीं होने पर वारंट जारी होता है. वारंट जारी करने तक कोर्ट में तीन से पांच वर्षों की अवधि लगती है.
सबसे अधिक नगर थाने में वारंट
नीलाम वाद पदाधिकारियों के कोर्ट से जारी किये गये वारंट में सबसे अधिक नगर थाने में 780 तथा सबसे कम विश्वंभरपुर थाने में 42 मामले उलझे हुए हैं. उसी तरह महम्मदपुर में 162, बैकुंठपुर में 84, जादोपुर में 148, सिधवलिया में 132, उचकागांव में 169, हथुआ में 76, कुचायकोट में 223, कटेया में 120, बरौली में 134, मांझा में 127, विजयीपुर में 179, मीरगंज में 211, फुलवरिया में 123, गोपालपुर में 64, भोरे में 227 वारंट वर्षों से पुलिस कार्रवाई के इंतजार में पेंडिंग हैं.
पुलिस को है जिम्मेवारी
लोक मांग वसूली अधिनियम के तहत वारंट जारी होने पर देनदार को कोर्ट में उपस्थित कराने की जवाबदेही पुलिस को है. जब देनदार को पुलिस पकड़ कर नीलाम वाद पदाधिकारी के पास उपस्थित कराती है तब यहां बाजाब्ता एग्रिमेंट होता है कि राशि को कैसे देंगे. अधिकतर लोग पुलिस की छापेमारी या गिरफ्तारी के भय से राशि को जमा कर देते हैं. कई मामलों में तो देनदार की अपील पर कोर्ट किस्त में राशि जमा करने की छूट दे देता है.
एसपी के पास भेजा गया है रिमाइंडर
पुलिस अगर वारंट का निष्पादन करे, तो एक दिन में पांच से 10 करोड़ राशि की रिकवरी हो सकती है. पुलिस के पास वारंट जाता है, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है. कई रिमांइडर भी एसपी के माध्यम से भेजे जा चुके हैं.
परमानंद साह, जिला नीलाम पदाधिकारी, गोपालगंज

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