नगर के हैं मतदाता, तो किसी भी वार्ड से बन सकते हैं प्रत्याशी
तैयारी. अपनी ही कोटि के लिए आरक्षित सीट से मिलेगा मौका गोपालगंज : नगर के किसी भी वार्ड के मतदाता हैं, तो निकाय चुनाव में किसी भी वार्ड से प्रत्याशी बन सकते हैं. प्रत्याशी बनने के लिए इस बात का ख्याल रखना होगा कि जिस वार्ड से आप प्रत्याशी बनना चाहते हैं वह वार्ड या […]
तैयारी. अपनी ही कोटि के लिए आरक्षित सीट से मिलेगा मौका
गोपालगंज : नगर के किसी भी वार्ड के मतदाता हैं, तो निकाय चुनाव में किसी भी वार्ड से प्रत्याशी बन सकते हैं. प्रत्याशी बनने के लिए इस बात का ख्याल रखना होगा कि जिस वार्ड से आप प्रत्याशी बनना चाहते हैं वह वार्ड या तो आपकी कोटि के लिए आरक्षित होना चाहिए या फिर ऐसी जाति के लिए आरक्षित होना चाहिए जिस जाति से आप भी प्रत्याशी बन कर चुनाव लड़ सकते हैं.
इसके लिए प्रत्याशी को बस सक्षम पदाधिकारी से निर्गत जाति प्रमाणपत्र होना चाहिए, तभी वह अपनी कोटि के लिए आरक्षित किसी भी सीट से प्रत्याशी बन सकता है. बस उसका नाम नगर के किसी भी वार्ड की मतदाता सूची में शामिल होना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति नगर पर्षद या नगर पंचायत के किसी एक वार्ड का मतदाता है. तो वह किसी भी वार्ड से चुनाव लड़ सकता है, जो उसकी कोटि के लिए आरक्षित हो.
सरकार से मानदेय लेनेवाले नहीं होंगे प्रत्याशी :
नगर निकाय चुनाव में वैसे व्यक्ति प्रत्याशी की भूमिका नहीं निभा सकते हैं, जो या तो सरकार से वेतन लेते हैं या फिर मानदेय के रूप में राशि लेते हैं. वैसे सभी कर्मियों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा निकाय चुनाव में प्रत्याशी बनने पर पाबंदी लगा दी गयी है. खास कर आंगनबाड़ी सेविका सहायिका, नियोजित शिक्षक, इंदिरा आवास, मनरेगा, सर्वशिक्षा, साक्षरता, न्याय मित्र, विकास मित्र, शिक्षा मित्र के साथ-साथ स्थानीय प्राधिकार के द्वारा नियोजित कर्मी भी नगर निकाय चुनाव में प्रत्याशी नहीं बन सकते हैं. साथ ही साथ शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक संस्थाओं में कार्यरत कर्मी, प्रोफेसर, शिक्षकेतर कर्मचारी, गृहरक्षक, सरकारी वकील आदि के अलावा दलपति को भी प्रत्याशी बनने पर पाबंदी रहेगी.
नेताओं को अब तीसरा बच्चा लगने लगा बोझ
राज्य में सियासी दंगल में हर दावं-पेच जायज समझा जाता है. लेकिन, आज के नेताओं पर सत्ता मोह का रंग इतना चढ़ चुका है कि वे पुत्रमोह तक त्यागने को तैयार हैं. ऐसा नजारा इन दिनों निर्वाचन कार्यालय में देखने को मिल रहा है. नगर निकाय चुनाव लड़ने की हसरत रखनेवालों को तीसरा बच्चा अब बोझ लगने लगा है. वे अपने तीसरे बच्चे को गोद देकर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. अधिकारियों ने बताया कि हर दिन दो-चार लोग इस तरह के नियमों की पड़ताल करने कार्यालय पहुंच रहे हैं. काम में व्यस्त पदाधिकारी का ध्यान आकर्षित करते हुए पूछते हैं ‘सर… क्या तीसरे बच्चों को कानूनी रूप से गोद दे दें, तो चुनाव लड़ सकते हैं?’ ऐसे लोगों में उनकी संख्या ज्यादा है, जो पहली बार चुनाव में किस्मत आजमाना चाहते हैं.
आखिर क्या है नियम : बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 के मुताबिक अगर किसी नागरिक को 4 अप्रैल, 2008 के बाद तीसरा, चौथा या इससे अधिक संतानें हुई हैं, तो वह नगरपालिका निर्वाचन में अभ्यर्थी नहीं हो सकता है. चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अधिकतम दो संतान ही होने चाहिए. अगर एक ही बार में जुड़वां या इससे ज्यादा संतान होने से संतानों की संख्या बढ़ी है, तो यह नियम उन पर लागू नहीं होगा.
स्पष्टता नहीं होने से परेशानी : चुनाव आयोग द्वारा जिलों को जारी नियमावली में इसका जिक्र नहीं है कि तीसरे संतान को गोद देने के बाद क्या कोई चुनाव लड़ने की योग्यता प्राप्त कर सकता है. ऐसे में चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले प्रत्याशी नियमों में उलझ निर्वाचन कार्यालय पहुंच रहे हैं. वे पहले नियमों की कॉपी दिखाने की मांग कर रहे हैं उसके बाद बहस पर उतारू हो रहे हैं.
गोद देने से नहीं होंगे योग्य
तीसरे या उससे अधिक बच्चे को गोद देने से कोई चुनाव लड़ने की योग्यता प्राप्त नहीं कर सकता. मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि गोद देने की प्रक्रिया चाहे कानूनन क्यों न हो. गोद देने के बाद भी कानूनी रूप से वह उस बच्चे का पिता होता है. जिनका भी 4 अप्रैल, 2008 के बाद तीसरी संतान को जन्म दिया है वह चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.
– दुर्गेश नंदन, सचिव, राज्य निर्वाचन आयोग