बरौली : विधानसभा चुनाव के लिए जिले में सरगर्मी बढ़ने लगी है और इधर प्रखंड के ग्रामीण इस सीजन में तीसरी बार बाढ़ की तबाही झेलने को मजबूर हुए हैं. प्रखंड की 19 पंचायतों और शहर के 21 वार्डों के सभी गांव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं. अधिकतर बाढ़पीड़ित हाइवे, रेलवे स्टेशन या नहर की पटरियों पर प्लास्टिक के नीचे भगवान भरोसे अपने आप को जिंदा रखने की कशमकश में जी रहे हैं.
बरौली के लिए सारण तटबंध का टूटना और बाढ़ से तबाही मचना 1990 के दशक से शुरू हुआ, जो आज तक चल रहा है. जब भी बांध टूटता है, हजारों परिवार सड़कों पर आ जाते हैं. हजारों एकड़ की फसलें नष्ट हो जाती है और बाढ़पीड़ित दाने-दाने को मुंहताज हो जाते हैं. बाढ़ का यह मुद्दा इस विधानसभा चुनाव के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है.
प्रखंड के कोटवां, सिसई, प्यारेपुर, देवापुर, नवादा, बभनौली, कहला, रतनसराय, सुरवल, परसा, पचरूखिया, पिपरा, महम्मदपुर निलामी, बलहां, रामपुर, खरबनवां, बघेजी, खजुरिया, कुतुलुपुर, पंडितपुर सहित अन्य गांवों के बाढ़पीड़ितों में बाढ़ को लेकर आक्रोश है और इनका कहना है कि अब हम वोट उसी उम्मीदवार को देंगे, जो बाढ़ की समस्या का स्थायी निदान निकाल सकता हो.
बाढ़पीड़ितों का यह भी कहना है कि बाढ़ करीब 25 वर्षों से आ रही है. लेकिन किसी ने भी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया. इस बाढ़ से हर बार करोड़ों का नुकसान तो होता ही है, एक बार बाढ़ आने का असर वर्षों तक रहता है. बाढ़ की स्थायी समस्या का समाधान की आवाज न केवल 19 पंचायतों और 21 वार्ड के बाढ़पीड़ितों की है बल्कि उन सभी लोगों की है, जो बाढ़ क्षेत्र के करीबी हैं.
posted by ashish jha