सासामुसा. राजनीतिक दलों के चुनावी एजेंडे से सासामुसा चीनी मिल गायब है. चुनाव में राजनीतिक दल वोटों को साधने के लिए अपनी ताकत लगा रहे हैं. वहीं चुनावी शोर में सासामुसा चीनी मिल के मजदूरों के परिवार के लोग दाने-दाने को मुहताज होकर रह गये हैं. कुचायकोट के शामपुर गांव के रहने वाले पारसनाथ गिरि ने सासामुसा चीनी मिल में पूरा जीवन लगा दिया. ब्वाॅयलर के फटने से गंभीर रूप से झुलसने के कारण पांच दिनों तक गोरखपुर के अस्पताल में आइसीयू में भर्ती रहे. पांच दिनों में परिजनों ने घर में रखे रुपये लगा दिये. कर्ज लेकर इलाज कराया. उसके बाद भी उनकी मौत हो गयी. उनकी मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया. पारसनाथ गिरि के निधन के बाद उषा देवी 55 वर्ष पर जिम्मेदारी आ गयी. बेटी पूजा की शादी करनी है. पुत्र मनीष गिरि को लेकर गृहस्थी को संभालने की चुनौती है. बेटी की शादी कैसे होगी. एक रुपये का मुआवजा तक नहीं मिला. बेटे को उम्मीद था कि मिल चलेगी, तो उसको नौकरी मिल जायेगी. फैक्ट्री बंद हो गयी. आज तक उनके यहां कोई विधायक, सांसद, मंत्री परिजनों का हाल तक पूछने नहीं आये. इस बात का मलाल है कि कोई उनको पूछने वाला नहीं. अकेले पारस गिरि ही नहीं उनके तरह खजूरी पूरब टोला के विक्रमा यादव, अर्जुन यादव, बाड़ी खजूरी के कृपा यादव, खजूरी के कन्हैया शर्मा, पड़रौना के शमसुद्दीन, बाजार सिरिसिया के रवींद्र प्रसाद, तिवारी टोला खजूरी के विद्या यादव, कुचायकोट के हसमुद्दीन मियां की मौत हुई्. सभी परिवार का कमोबेश यही हाल है. परिवार के लोग दाने-दाने को मोहताज होकर रह गये हैं. उनके घर में घटाटोप अंधेरा है. बच्चों को पढ़ाने, रोटी, कपड़ा का इंतजाम करना बड़ी चुनौती से कम नहीं है. परिवार के लोग सात साल में भी संभल नहीं पा रहे. चीनी मिल में काम करने वाले मजदूर सिरिसियां के बलराम मिश्र ने जीवन भर चीनी मिल में काम किया, जब परिवार को सबसे अधिक जरूरत था तभी चीनी मिल का ब्वॉयलर फटा और फैक्ट्री बंद हो गयी. कई महीनों का वेतन भी मिल ही रह गया. जीवन भर की कमाई मिल बंद होने के साथ ही खत्म हो गयी. अकेले बलराम मिश्र ही नहीं बल्कि उनके जैसे 789 मजदूरों के घर में फांकाकसी की स्थिति बनी हुई है. चीनी मिल को लेकर कर्मचारी यूनियन की ओर से लगातार कोशिश जारी रही चीनी मिल के चलने की उम्मीद भी अब खत्म हो चुकी है. चीनी मिल के मजदूर मो मतीन का कहना है कि चीनी मिल मजदूरों की ओर से विधायक, सांसद, मंत्री सबके पास जाकर आग्रह किया गया. चीनी मिल की आवाज सरकार तक नहीं पहुंच सकी. हमें तो ऐसा सांसद चाहिए था, जो मजदूरों व किसानों की आवाज बनकर फैक्ट्री को चालू कराये. मजदूरों के बकाये का भुगतान कराये. दुर्भाग्य है कि चीनी मिल को लेकर कोई भी राजनीतिक दल अपना मुंह तक नहीं खोल पा रहा. मजदूरों की दुर्दशा से किसी को कोई मतलब नहीं है. मालूम हो कि सासामुसा चीनी मिल पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही थी. इस बीच 20 दिसंबर 2017 की रात में फैक्टरी के ब्वॉयलर का एग्जॉस्ट पाइप फट गया. इसमें नौ मजदूरों की झुलसने से मौत हो गयी थी. पांच अन्य घायल हो गये थे. उस मामले में चीनी मिल मालिक महमूद अली व उनके पुत्र खाबर अली की गिरफ्तारी हुई. जेल से निकलने के बाद वे लोग कोलकाता चले गये. उसके बाद नहीं लौटे. इसके बाद फैक्टरी को चलाने के लिए उनके भतीजे शाहिद अली व साजिद अली को जिम्मेदारी मिली. उनकी कोशिश से भी फैक्टरी नहीं चली. अब मजदूर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. इन्हें उम्मीद थी की कोई राजनीतिक दल तो हमलोगों के हित को देखते हुए और यहां रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए सासामुसा चीनी मिल को पटरी पर लाने के लिए पहल करता. लेकिन चीनी मिल के मुद्दे को ही राजनीतिक दलों ने गौण कर दिया. अब वे किससे फरियाद करें?
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