Gopalganj News : भ्रांतियों का करें त्याग, पितृपक्ष के 15 दिन होते हैं शुभ समय
Gopalganj News : आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों की आराधना का पुण्य काल माना जाता है. इसमें पहले ही दिन उनका धरती पर अपने वंशजों के बीच पृथ्वी लोक पर आने का आह्वान किया जाता है.
गोपालगंज. आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों की आराधना का पुण्य काल माना जाता है. इसमें पहले ही दिन उनका धरती पर अपने वंशजों के बीच पृथ्वी लोक पर आने का आह्वान किया जाता है. श्रद्धापूर्वक उनका श्राद्ध व तर्पण कर स्वागत और स्तुति की जाती है. इससे प्रसन्न हो वे वंश वृद्धि, यश-कीर्ति व सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दे जाते हैं. लेकिन भ्रांतियां शुभ-अशुभ का हवाला देते हुए इनसे ही जुड़ीं वस्तुओं की खरीद-बिक्री के निषेध का हौवा बनाती हैं. हर वर्ष इसकी मार बाजार को बेजार करती है और पितरों के श्रद्धा काल में इसका दंश वर्तमान पीढ़ी ही झेलती है. बीएचयू धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो डॉ शंकर मिश्र ने बताया कि वास्तव में धर्म शास्त्रों में श्राद्ध पर्व यानी पितृपक्ष में किसी भी वस्तु की खरीद का निषेध उल्लेखित नहीं है और न ही कुछ नया करने पर कोई बंदिश. वास्तव में पितरों को देव कोटि का माना गया है. उन्हें विवाह समेत शुभ कार्यों तक में आमंत्रित किया जाता है. पितृ पक्ष उनके स्मरण और श्रद्धापूर्वक श्राद्ध का काल है. इस श्रद्धा पूरित परंपरा में कब कोई सामान नहीं खरीदने की भ्रांति जुड़ गई, यह धर्म शास्त्रियों तक को नहीं पता. ऐसे में सिर्फ एक अनजानी परंपरा के नाम पर एक पूरे पखवारे खरीदारी का निषेध से बाजार सन्नाटे के आगोश में समा जाता है. करोड़ों का कारोबार प्रभावित होता है. इसका असर वित्तीय व्यवस्था पर भी जाता है. न तो अशुभ काल, न कोई वर्जना ज्योतिषाचार्य पं. ओम तिवारी के अनुसार पितृ पक्ष चातुर्मास के बीच पड़ने से इस अवधि में मुहूर्त नहीं होते. ऐसे में मांगलिक कार्य यथा शादी-विवाह, द्विरागमन, मुंडन, उपनयन वर्जित होते हैं. इसके अलावा यह न तो अशुभ काल है और न ही अन्य कोई वर्जना. इस अवधि में भूमि -दुकान-मकान की खरीद के साथ ही गृहारंभ भी हो सकता है. वहीं ज्योतिषाचार्य पं राजेश्वरी मिश्र के अनुसार पितृ पक्ष, शुभ पक्ष है, जिसमें पितरों का तर्पण किया जाता है. पितर देव कोटि के कहे जाते हैं. तुलसीदास ने भगवान शिव को भी पितर कहा है. उनके श्राद्ध तर्पण से आयु, वंश, व सुख-समृद्धि बढ़ती है. ऐसे समय में खरीद-बिक्री के कोई निषेध शास्त्रों में नहीं हैं. गौर करें, तो तर्पण ऋषियों का नैत्यिक कार्य था, जो शुभ कार्य है. उधर श्रीकाशी विद्वत पर्षद के मंत्री डॉ. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार पितृ पक्ष पितरों को श्रद्धा समर्पित करने व उनसे वंश वृद्धि और सुख समृद्धि का आशीष प्राप्त करने का पर्व है. इसमें कब इस तरह की भ्रांतियों का प्रवेश हुआ और इस काल को भयावह बना दिया गया, नहीं पता. इस अवधि में भू-भवन या संपत्ति की खरीद पितरों को भी अवश्य तृप्त करेगी.
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