गोपालगंज. देश के बड़े शहरों की तरह अपने शहर की भी हवा खराब है. ऐसे में अगर आप सावधान नहीं हुए, तो बीमार हो सकते हैं. पिछले 70 घंटे से शहर का एक्यूआइ तीन सौ से ऊपर बना हुआ है. घने कोहरे के बीच शहर में एनएच- 27 पर बनाये जा रहे फ्लाइओवर के कार्यों की वजह से उड़ रही धूल के अलावा धुएं से भी प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है. शहर में सोमवार की सुबह एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 338 दर्ज किया है. दीपावली के बाद दो दिनों से गोपालगंज की हवा यलो जोन में रही. उसके बाद रेड जोन में पहुंच गयी, जो सेहत के लिए खतरनाक है. सोमवार को एक्यूआइ यानी कि एयर क्वालिटी इंडेक्स 303 से 338 अंक पर पहुंच गया है. शहर में सबसे खराब हवा हजियापुर की रही. सुबह पांच बजे से ही कोहरा पड़ने लगा, जो दिन के 10 बजे के बाद साफ हुआ. दिन भर धुंध वाली धूप भी बनी रही. बीच-बीच में बादलों की भी आवाजाही बनी रही. फेफड़े, अस्थमा और दिल की बीमारी बढ़ा रही हवा हृदय, सांस और अस्थमा के रोगियों को बहुत ही एहतियात बरतने की जरूरत है, वरना उनकी सेहत बिगड़ सकती है. दीपावली के बाद पटाखों से खराब हुई हवा ने सांस रोगियों की तादाद बढ़ा दी है. दमा और अस्थमा अटैक के केसेज बढ़ गये हैं. जिले के सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों की इमरजेंसी में पहले के मुकाबले श्वांस मरीज 2-3 गुना ज्यादा आ रहे हैं. एक्यूआइ का स्तर 100 से ज्यादा होना श्वांस से जुड़े रोगों के साथ ही फेफड़ों, अस्थमा और दिल की बीमारियों को दावत देता है. धुएं की वजह से शहर में पीएम 2.5 का स्तर 328 अंक तक पहुंच गया है. इसके बाद पीएम 10 का स्तर 164 अंक और कार्बन मोनो ऑक्साइड अधिकतम 118 अंक पर पहुंच गया है. वहीं मास्क सांस में जाने वाली हवा में प्रदूषण की मात्रा को कम से कम 50 प्रतिशत तो कम ही कर देता है. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक शशिरंजन प्रसाद ने बताया, मौसम बदल रहा है. लोगों को अब मास्क ही अस्पताल के चक्कर लगाने से बचा सकता है. इन दिनों सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में सांस की समस्याओं से ग्रसित लोग आने लगे हैं. मौसम भी तेजी से बदल रहा है. सूरज की रोशनी ठीक से न आने की वजह से प्रदूषण आसमान में काफी निचले स्तर पर ही है. हवा टॉक्सिक हो रही है. आंखों में भी जलन हो रही है. शहर के प्रमुख एमडी डॉ शंभुनाथ सिंह ने बताया कि युवाओं को दमा की समस्या, तो वहीं बुजुर्ग सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के शिकार हो रहे हैं. सीओपीडी के केस इसलिए बढ़े, क्योंकि जो पहले से ही सांस रोग की दवा का सेवन कर रहे थे, उन लोगों के लिए ये प्रदूषण आग में घी काम कर रहा है.
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