थावे. आपको स्वर्ग की अनुभूति करनी है, तो बिहार के प्रमुख शक्तिपीठ थावे आना होगा. क्योंकि, शुक्रवार को सारे देवता अपने देव लोक को छोड़ कर धरती आयेंगे और देव उत्सव यानी देव दीपावली का पर्व मनायेंगे. इस बार देव दीपावली का पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाये जाने की तैयारी की गयी है. आस्था के दीप से कैंपस को रोशन करने के लिए श्रद्धालु काफी उत्साहित हैं. 51 हजार से ज्यादा दीये रोशन करने की तैयारी की गयी है. इन सबके बीच शुक्रवार शाम 5:15 बजे एक साथ मंदिर परिसर में दीये जलने शुरू हो जायेंगे और लगभग दो से ढाई घंटे तक मंदिर के हर कोने में सिर्फ उजाला ही उजाला नजर आयेगा. थावे में मां सिंहासनी का दरबार आस्था के दीपों से जगमगायेगा. दीप जलाने के लिए न्यायिक पदाधिकारी, डीएम, एसपी, एसडीओ व अन्य प्रशासन के लोग मां के गर्भगृह में दीप जलाकर शुरुआत करते हैं. यहां दीप जलाने के लिए भक्त अपनी आस्था के अनुसार दीया, घी, तिल का तेल व बाती लेकर पहुंचते हैं. देव दीपावली की शुरुआत थावे में मां विंध्यवासिनी के साधक डबलू गुरु के द्वारा की गयी. पूरा परिसर दीपों की लौ से जगमगाता है. इस दृश्य को यादों में सहेजने के लिए यूपी, बिहार, नेपाल के भक्त पहुंचते हैं. दीपदान की यह परंपरा देव आराधना का महापर्व बन गया है. देव दीपावली पर मां सिंहासनी की आरती का नजारा और भी अद्भुत होता है. त्रिपुरासुर के वध के बाद देवताओं ने मनायी थी दीपावली धर्मशास्त्र विशेषज्ञ पं कैलाश मिश्र ने बताया कि त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस था, जिसने अपने शक्ति के बल पर स्वर्ग सहित तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था. उसके आतंक से देवगता भी परेशान हो गये थे. तब सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे मदद की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया. त्रिपुरासुर के अंत होने की खुशी में सभी देवताओं ने भगवान शिव के धाम काशी पहुंच कर उनको धन्यवाद दिया और गंगा किनारे दीप प्रज्वलित किये. कहते हैं कि तब से ही इस दिन को देव दीपावली के नाम से जाना जाने लगा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है