gopalganj news : केस दर्ज होने के बाद नौ सरकारी जमीनों की सीओ ने कायम कर दी जमाबंदी

gopalganj news : राजेंद्र नगर बस स्टैंड की अरबों की जमीन की फर्जीवाड़ा कर जमाबंदी कायम करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद सदर सीओ म. गुलाम सरवर ने राजस्व कर्मचारी रहे दिनेश मिश्र व सीआइ जटा शंकर प्रसाद के सहयोग से नौ सरकारी जमीनों की चार दिनों के भीतर जमाबंदी कायम कर दी.

By Prabhat Khabar News Desk | September 22, 2024 9:58 PM

गोपालगंज. राजेंद्र नगर बस स्टैंड की अरबों की जमीन की फर्जीवाड़ा कर जमाबंदी कायम करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद सदर सीओ म. गुलाम सरवर ने राजस्व कर्मचारी रहे दिनेश मिश्र व सीआइ जटा शंकर प्रसाद के सहयोग से नौ सरकारी जमीनों की चार दिनों के भीतर जमाबंदी कायम कर दी. भू-माफियाओं के निशाने पर शहर के प्राइम लोकेशन वाली सरकारी जमीन थी, जिसे सीओ से सेटिंग कर अपने नाम कराने का खेल शुरू हो गया था. यह खुलासा राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव के आदेश पर गठित हाइलेबल कमेटी की जांच टीम के सामने हुआ है. सूत्रों ने बताया कि जांच अधिकारियों ने न सिर्फ राजेंद्र नगर बस स्टैंड, बल्कि अबतक 10 सरकारी प्लाट, सिकमी वाली जमीन की भी जमाबंदी कायम कर भू-माफियाओं के नाम दाखिल-खारिज कर उनके नाम पर रेंट रसीद भी कटवा देने के साक्ष्य मिले हैं. शहर में जिन जमीनों की जमाबंदी की गयी है उसकी कीमत करोड़ों रुपये है. जांच टीम के अधिकारियों के सामने फर्जी जमाबंदी किये जाने के साक्ष्य मिलने के बाद जांच टीम भी सकते में पड़ गयी. बस स्टैंड के फर्जी जमाबंदी में कांड दर्ज होने के बाद अंचल कार्यालय में सीओ व सीआइ नहीं आये हैं. उधर, जांच टीम ने चार घंटे तक रेकॉर्ड को खंगालने के बाद अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंप दी है. डीएम के स्तर पर सोमवार को रिपोर्ट सौंपी जायेगी. फर्जीवाड़े में शामिल सीओ, सीआइ व बर्खास्त कर्मचारी दिनेश मिश्रा की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. अब पुलिस को भी इनकी तलाश है. शहर की सरकारी जमीनों पर भू-माफियाओं की नजर : जांच टीम के सामने आये तथ्य अब साफ हो गये हैं कि शहर की सरकारी जमीनों पर भू-माफियाओं की नजर है. ध्यान रहे कि राजेंद्र नगर बस स्टैंड की जमीन की जमाबंदी भू-माफियाओं के नाम पर दर्ज किये जाने का खुलासा प्रभात खबर ने 10 सितंबर के अंक में किया था. डीएम के आदेश पर एसडीओ डॉ प्रदीप कुमार ने जांच की, जिसमें फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद डीएम के आदेश पर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी राहुलधर दुबे ने नगर थाने में 18 सितंबर को सीओ, राजस्व कर्मचारी, सीआइ व भू-माफिया सासामुसा के चंद्रमा दुबे के पुत्र अजय दुबे के खिलाफ नगर थाना कांड सं-673/24 दर्ज करा दिया था. पुलिस अब पूरे मामले की जांच अपने स्तर से कर रही है. इस बीच सरकारी जमीनों की जमाबंदी कर दी गयी. नगर परिषद ने जांच अधिकारियों को सौंपे अपने साक्ष्य : डीएम के आदेश के बाद नगर परिषद की ओर से 1956 से अबतक के पर्याप्त साक्ष्य जांच अधिकारियों के समक्ष सौंपे गये हैं. 45 पेज की रिपोर्ट में साक्ष्य भी दिये गये हैं. नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी राहुल धर दुबे ने बताया कि यूनियन बोर्ड की जमीन से लेकर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से होकर जमीन नगर परिषद को मिली है. तब से अबतक शांति पूर्वक कब्जा नगर परिषद का है. आज भू-माफिया जाल-फरेब कर बस स्टैंड की सरकारी जमीन को अपना बता कर दावा कर रहे थे. जांच में सबकुछ सामने आ चुका है. फर्जी करने वाले कोई भी हों, वे जेल जायेंगे. जांच को प्रभावित करने में जुटे भू-माफिया : भू-माफियाओं ने प्रशासन की जांच को भी प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. यहां तक की पटना हाइकोर्ट में एक रिट भी दाखिल कर सासामुसा के चंद्रमा दुबे के पुत्र अजय दुबे ने खुद के आधार कार्ड में एक जनवरी, 1995 जन्मतिथि दर्शा कर कहा है कि उनके पिता ने 1980 में जमीन उसके नाम लिखवा दी थी. पांच वर्ष की उम्र में जमीन की रजिस्ट्री की बात कही है. जबकि, अजय दुबे के वोटर आइडी कार्ड में जन्मतिथि एक जनवरी, 1980 दर्ज है. अब प्रशासन के अधिकारी जांच में जुटे हैं कि दोनों में जन्मतिथि में अंतर कैसे है. 1980 में क्या चंद्रमा दुबे के तीन पुत्र हैं, तो वे अपने छोटे पुत्र अजय दुबे के ही नाम पर अरबों की जमीन क्यों लिखवा दी. जमीन दूसरे भाइयों के नाम पर क्यों नहीं लिखवायी? जांच में फरेब पग-पग पर सामने आ रहा है. भू-माफियाओं को फंडिंग करने वाले को भी चिह्नित करे प्रशासन : शहर के राजेंद्र बस अड्डा की जमीन की भू-माफियाओं द्वारा फर्जी जमाबंदी कराने के मामले की निष्पक्ष जांच और कार्रवाई के लिए प्रशासन को धन्यवाद देते हुए हम के जिलाध्यक्ष पंकज सिंह राणा ने मांग की है कि इस पूरे मामले में दोषी अधिकारियों एवं भू माफियाओं की संपत्ति की जांच निगरानी विभाग से कराने की अनुशंसा की जाये. फर्जी जमाबंदी मामले में संलिप्त भू-माफियाओं को फंडिंग करने वाले लोगों को भी चिह्नित कर कानून के दायरे में लाया जाये, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके.

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