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चुनाव के एजेंडे से गायब हुई सासामुसा चीनी मिल

लोकसभा चुनाव में अब अपने चरम पर है. चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक पार्टियों के द्वारा जोर लगाया जा रहा है. वोटरों को अपने पक्ष में एकजुट करने की कोशिश भी खूब हो रही है. सासामुसा चीनी मिल के किसानों के चेहरे पर मायूसी, निराशा है.

गोपालगंज. लोकसभा चुनाव में अब अपने चरम पर है. चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक पार्टियों के द्वारा जोर लगाया जा रहा है. वोटरों को अपने पक्ष में एकजुट करने की कोशिश भी खूब हो रही है. सासामुसा चीनी मिल के किसानों के चेहरे पर मायूसी, निराशा है. घरों में अभाव है. किसानों की मुख्य नकदी फसल गन्ना थी. चीनी मिल बंद होने से बेटी की शादी, बीमार का इलाज, छोटा-बड़ा कार्यक्रम पर भी किसानों को सोचना पड़ता है. किसानों के दिल में गहरा जख्म है. किसानों के इस दर्द से राजनीतिक दलों ने किनारा कर लिया है. चुनावी एजेंडे से सासामुसा चीनी मिल गायब है. एनडीए हो या इंडिया महागठबंधन. इनके एजेंडे में चीनी मिल नहीं है. किसानों की 46.36 करोड़ की गाढ़ी कमाई चीनी मिल मालिक की तिजाेरी में बंद है. किसानों को न तो भुगतान मिल पा रहा और ना ही फैक्ट्री को चलाने की कोई चर्चा हो रही है. किसानों को उम्मीद थी कि इस चुनाव में राजनीतिक दलों के एजेंडे में चीनी मिल को चालू कराने की वायदा भी होगा. लेकिन चुनाव पूरी तरह से जाति गणित व मोदी की लहर के भरोसे हो गया है. चुनाव में मोदी सबसे बड़े फैक्टर हैं. वहीं लोगों में मायूसी है कि चुनाव में चीनी मिल राजनीतिक दलों के लिए कोई मुद्दा नहीं है. चीनी मिल को चालू कराने के लिए कुचायकोट के विधायक अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय के द्वारा मुख्यमंत्री तक पहल की गयी थी. लेकिन पहल सफल नहीं हुई. किसान विजय सिंह, राघवेंद्र राय, राजेश प्रसाद ने बताया कि चीनी मिल को चलवाने के लिए राजनीतिक दलों को आपसी भेद-भाव से ऊपर उठकर कोशिश करनी होगी. इस चुनाव में चीनी मिल भले ही नेताओं के एजेंडे में नहीं है, लेकिन किसानों के लिए एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. सासामुसा चीनी मिल में 20 दिसंबर 2017 को एग्जॉस्ट पाइप के फटने से नौ मजदूरों की मौत हो गयी थी. मौत के बाद चीनी मिल में तोड़फोड़ के बाद फैक्ट्री मालिक महमूद अली मिल को बंद कर कोलकाता चले गये. उसके बाद से मिल बंद है. पिछले पांच सालों से किसान भी दुर्गति के शिकार हो गये.

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