गोपालगंज. सुहाना कहे जाने वाले सावन ने पूरी तरह से सूखे का एहसास करा दिया. फसलों पर संकट खड़ा हो गया. किसानों को सावन से उम्मीद थी, तो वह भी रूठ गया है. सात दिन बीतने के बाद भी वर्षा नहीं हुई. तल्ख धूप के चलते खेतों में बची-खुची नमी भी गायब हो रही है. संकट में फंसे किसानों के माथे पर चिंता की गाढ़ी लकीरें दिखने लगी हैं. नहरों ने भी दगा दे दिया, जिससे समस्या और बढ़ गयी है. धान की फसल तो बर्बाद होने के कगार पर है. अन्य साधन से सिंचाई के बाद भी पौधे पीले होते दिख रहे हैं. चार लाख 18 हजार किसानों ने कुल 80107 हेक्टेयर में धान व अन्य फसलें बोये हैं. सावन में वर्षा के लिए किसान व खेत तरसते रहे. किसी तरह अन्नदाता अपनी फसल को पंपिंग सेट आदि साधनों से बारिश की आस में बचाने में जुटे रहे. आषाढ़ के बाद सावन में भी अब तक बारिश नहीं होने से क्षेत्र के किसान चिंतित हैं. बुजुर्ग किसानों का मानना है कि सावन में फुहार के बदले आसमान से आग बरस रही है. एक सप्ताह के भीतर अच्छी बरसात नहीं हुई, तो धान की नर्सरी सूख जायेगी. इसके बाद सूखे के संकट से जूझना पड़ेगा. वहीं भठवा गांव के किसान उमापति तिवारी ने बताया कि वर्ष 1967 का अकाल भी हमने देखा है. उस वक्त मक्के की खेती हो गयी थी, जबकि इस बार बारिश के अभाव में कोई फसल नहीं हो पायेगी. जो भी घर में था, उसे भी धान की नर्सरी व खेतों की जोताई में लगा दिया. अब घर में खाने के लिए कुछ बचा नहीं है. बैकुंठपुर के रामेश्वर सिंह का कहना है कि प्रतिदिन खेतों में जाकर बरसात होने की आस में धान की नर्सरी बचा रहे हैं लेकिन अब उसमें पीलापन आने लगा है. भगवान भरोसे ही खेती पर हम सभी निर्भर हैं. देवापुर गांव के शिवनाथ सिंह ने बताया कि अधिकतम सप्ताह भर का समय है. बरसात नहीं हुई, तो जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगा. किसानों के चेहरे पर मायूसी है. सूखे की मार से लोगों को परिवार सहित पशुओं के पालन-पोषण की चिंता सता रही है. किसानों ने जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है.
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