संजय कुमार अभय, गोपालगंज. चुनावी आबोहवा में चीनी की मिठास का कड़वा सच. बाढ़पीड़ितों की पीड़ा, किसानों का दर्द, छात्रों के लिए शिक्षा का इंतजाम नहीं होना समेटे है. गांवों में चुनाव को लेकर सन्नाटा है. कहीं कोई प्रचार, शोर-शराबा नहीं है. मतदाता बेहद मुखर हैं. न अपनी दुश्वारियां बताने से हिचकते हैं और न ही अपनी पक्षधरता स्पष्ट करने से भय खाते हैं. चुनाव पर चर्चा शुरू होते ही अधिकतर लोग अपना रुख स्पष्ट कर देते हैं कि वे किधर हैं. साफ है कि मतदाता किसी अगर-मगर में नहीं हैं. चुनाव तो सिर्फ दो ही मुद्दों पर है. मोदी जिताओ व मोदी हराओ. जिले में बाढ़, गन्ना किसानों की समस्या सुरसा की तरह मुंह फाड़ी हुई है. छात्रों के लिए एजुकेशन पर कोई काम नहीं होने की पीड़ा. डिग्री कॉलेजों की कमी, स्नातकोत्तर की शिक्षा, लॉ व कृषि की पढ़ाई नहीं होने से छात्रों की प्रतिभा कुंद पड़ जा रही. सांसद, विधायक, मंत्री के स्तर से इस पर ध्यान नहीं दिया गया. सासामुसा चीनी मिल बंद हो गयी. किसानों के 42.8 करोड़ की कमाई चीनी मिल मालिक की तिजोरी में बंद हो गयी. बाढ़ के लिए स्थायी समाधान नहीं होने से हर साल 43 गांव पानी में डूबता है. बांध टूटा, तो अलग ही तबाही. बाढ़ की त्रासदी अलग. किसान दूसरे प्रदेशों में जाकर रोजगार की तलाश कर रहे. इस चुनाव में अब तक प्रत्याशी वोटरों के बीच बिरले ही गये होंगे. फिर भी चुनाव के प्रति लोगों का माइंड सेट है. गोपालगंज एससी-एसटी के लिए सुरक्षित सीट है. जब से सीट सुरक्षित हुई, तब से यहां कभी राजद व महागठबंधन का खाता नहीं खुला. 2009 से यहां भाजपा-जदयू ही जीतती रही है. सुरक्षित सीट से पहली बार एनडीए के उम्मीदवार बने जदयू के पूर्णमासी राम. 2009 में जीत कर सदन तक पहुंचे. 2014 में लोकसभा चुनाव में जदयू, भाजपा अलग हो गयी. राजद ने कांग्रेस को सह सीट दे दी. कांग्रेस से ज्योति भारती, जदयू से अनिल कुमार व भाजपा से जनक राम उम्मीदवार बने. तब मोदी लहर में जनक राम जीतकर सदन पहुंचे. 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ जदयू आ गया. भाजपा को यह सीट जदयू के लिए छोड़नी पड़ी. जदयू से डॉ आलोक कुमार सुमन को उम्मीदवार बनाया और राजद के सुरेंद्र राम महान को हराकर जदयू ने अपने किले को सुरक्षित रखा. इस बार भी टक्कर तो आमने-सामने की ही हो रही है. एनडीए के पास किला बचाने की चुनौती है, तो इंडिया गठबंधन के पास किले को ध्वस्त कर परचम लहराने की चुनौती है. वोटर भी जहां-जैसा वाले पैटर्न पर आश्वस्त कर रहे हैं. वहीं लोगों का कहना है कि एक समय ऐसा था कि रात तो दूर, दिन में भी दियारे में जाने से लोग कतराते थे. कब कहां क्या हो जाये, कहना मुश्किल था. वर्चस्व की जंग में गैंगवार भी होता था. अब लोग राहत में हैं. अब तो गांव से बेटियां रोज साइकिल से पढ़ने भी जा रही हैं. बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र के पकहा में ग्रामीण काफी गुस्से में दिखे. बारिश में बाढ़ का पानी घरों में भर जाता है. साल-दर साल बांध को बेहतर किया जाता है और तबाही बरकरार रहती है. बात जब चुनाव की शुरू हुई, तो रमावती देवी कहती हैं. मोदी को ही वोट देते आ रहे हैं. इस बार किसको वोट देंगी? इस सवाल पर वह कहती हैं, परिपाटी तो नहीं ही तोड़ेंगे. दिलीप कुमार कहते हैं, मोदी के अलावा देश की राजनीति में कोई मजबूत विकल्प नहीं है. सबको राशन मिल रहा है. शौचालय और आवास भी मिले हैं. वहीं दियारे में बाढ़ के संकट से निजात नहीं मिलने के कारण श्याम बहादुर कुमार, राजकुमार कुमार, नंदू राय, सुनील कुमार महतो, रामनारायण बैठा गांव में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने से खफा दिखे. हरिशंकर कुमार, आदित्य कुमार एवं रोशन कुमार ने कहा कि महंगाई ने भी कमर तोड़ दी है. दाल 170 रुपये, तो आलू 30 रुपये खरीदकर गुजारा कर रहे हैं. यूपी से 12 रुपये पेट्रोल व 10 रुपये डीजल महंगा है. महंगाई चुनाव के गणित को बिगाड़ रही है.
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