पटना: विधि विभाग ने सरकारी वकील की नियुक्ति वचनबद्धता नियमावली में बदलाव का निर्णय लिया है. अब कोई भी सरकारी वकील न तो किसी प्राइवेट केस को स्वीकार कर सकेंगे, न राज्य सरकार के खिलाफ किसी भी केस में हाजिर हो सकेंगे. यहां तक कि सिविल मामले में भी किसी प्राइवेट व्यक्ति की ओर से केस को स्वीकार नहीं कर सकेंगे, बशर्ते कि वह केस राज्य सरकार के खिलाफ नहीं हो.
कोई भी सरकारी वकील प्राइवेट व्यक्ति चाहे वह याचिकाकर्ता हो, स्थानीय प्राधिकार अथवा राज्य विधानमंडल या संसद के निर्वाचन के संबंध में आरंभ की गयी किसी निर्वाचन याचिका की कार्रवाई में किसी व्यक्ति की ओर से केस को स्वीकार नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति जो संसद अथवा राज्य विधानमंडल अथवा किसी नगर निगम, नगर परिषद पंचायत या किसी स्थानीय प्राधिकार का सदस्य हो और जब तक वह पद पर रहेंगे सरकारी वकील के रूप में वचनबद्धता के लिए पात्र नहीं होंगे. इसके अलावा सरकारी वकील के सहायक वकील भी अब सरकार के खिलाफ कोर्ट में उपस्थित नहीं होंगे.
धारा 32 के मुताबिक, बिन वकील भी केस लड़ा सकता है. आप खुद अपना केस लड़ सकते हैं. हालांकि, इसके लिए आपको जज से अनुमति लेने पड़ती है. आपको बता दें कि कि संविधान के सेक्शन-32 के एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के मुताबिक, कोई भी अदालत में अपना केस लड़ सकता है. जज इसके लिए किसी भी व्यक्ति को अपने सामने उपस्थित होने की इजाजत दे सकती है, फिर चाहे वो वकील हो या नहीं. इसके लिए आपको किसी तरह की लॉ की डिग्री लेने की जरूरत भी नहीं है. संविधान ने हर किसी को खुद के मामले में रक्षा करने का वैधानिक अधिकार दिया हुआ है.
दरअसल, इसके लिए आपको जज से परमिशन लेनी जरूरी है. आप परमिशन लेने के बाद खुद के केस में पैरवी कर सकते हैं. हालांकि, जज आपको वकील नियुक्त करने का परामर्श दे सकते हैं. इसके लिए आप अपना पक्ष रख सकते हैं और कागजी कार्यवाही करने के लिए और खुद को अपना केस रिप्रेजेंट करने के लिए उचित समय मांग सकते हैं.