सरकार ने कस दी मंत्री के निजी पीए की नकेल, अब नहीं कर पायेंगे सरकारी पत्राचार और बैठकें

इसको लेकर कैबिनेट विभाग द्वारा जारी कार्यों के आवंटन में स्पष्ट कर दिया गया है कि आप्त सचिव (बाह्य) न तो सरकारी संचिकाओं संबंधी कार्य और नहीं सरकारी पदाधिकारियों के साथ पत्राचार कर सकेंगे. हाल ही में शिक्षा विभाग में इस तरह के पत्राचार को लेकर समस्या पैदा हो गयी थी.

By Ashish Jha | August 25, 2023 8:47 PM

पटना. सरकार ने मंत्रियों के आप्त सचिव (सरकारी) और आप्त सचिव (बाह्य) के कार्यों को लेकर आनेवाली सभी अड़चनों को दूर कर दिया है. मुख्य सचिव ने मंत्रियों के आप्त सचिव (सरकारी) और आप्त सचिव (बाह्य) के कार्यों का बंटवारा कर दिया है. इसको लेकर कैबिनेट विभाग द्वारा जारी कार्यों के आवंटन में स्पष्ट कर दिया गया है कि आप्त सचिव (बाह्य) न तो सरकारी संचिकाओं संबंधी कार्य और नहीं सरकारी पदाधिकारियों के साथ पत्राचार कर सकेंगे. हाल ही में शिक्षा विभाग में इस तरह के पत्राचार को लेकर समस्या पैदा हो गयी थी.

प्रशासनिक सेवाओं के पदाधिकारी के पास होता है अनुभव

मुख्य सचिव द्वारा किये गये कार्यों के आवंटन में कहा गया है कि मंत्रिगण के आप्त सचिव (सरकारी) प्रशासनिक सेवाओं के पदाधिकारी होते हैं. उन्हें सरकारी नियमों, प्रक्रियाओं आदि की विस्तृत जानकारी और कार्यानुभव होता है. ऐसे में सरकारी आप्त सचिव के द्वारा सरकारी संचिकाओं से संबंधी कार्य, मंत्री के आदेशानुसार सरकार के पदाधिकारियों के साथ पत्राचार संबंधी कार्य और मंत्री द्वारा सौंपे गये अन्य सरकारी कार्य किये जायेंगे.

सभी विभागीय अधिकारियों को अवगत कराने का निर्देश

वहीं मुख्य सचिव ने स्पष्ट किया है कि बाह्य आप्त सचिव का पूर्वानुभव एवं ज्ञान सरकारी सचिव से भिन्न होता है. ऐसे में बाह्य आप्त सचिव मंत्री के यात्रा, भ्रमण कार्यक्रम से संबंधित कार्य, गैर सरकारी महानुभावों और सामान्य जन से साक्षात्कार के लिए समय निर्धारण संबंधी कार्य के साथ मंत्री द्वारा सौंपे गये अन्य कार्य करेंगे. बाह्य आप्त सचिव किसी भी विभागीय अधिकारी के साथ विभागीय कार्य से संबंधित अपने स्तर से मौखिक विमर्श, समीक्षा,दिशा निर्देश अथवा लिखित पत्राचार नहीं करेंगे. मुख्य सचिव ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिवों को पत्र लिखकर इस व्यवस्था से अपने विभाग के मंत्री और सभी विभागीय अधिकारियों को अवगत कराने का निर्देश दिया है.

शिक्षा विभाग में हुआ था आप्त सचिव को लेकर विवाद

मामला शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की तरफ से विभागीय अपर मुख्य सचिव के के पाठक को पीत पत्र लिखे जाने का है. चंद्रशेखर अपने विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली से नाराज है और इस मामले में उन्होंने आईएएस अधिकारी और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक को पत्र लिखा था. अपने पीत पत्र में शिक्षा मंत्री ने अधिकारियों की कार्यशैली पर नाराजगी जताई हैय पीत पत्र गोपनीय होता है. इसके बावजूद उसे मीडिया में लीक किया गया है.

मुख्यमंत्री ने की थी आपात बैठक

दरअसल सरकार के शिक्षा विभाग के अंदर मंत्री और विभागीय सचिव के बीच ठन गई थी. बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और विभागीय अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच बढ़ते टकराव को देखते हुए यह पत्र जारी हुआ है. पिछले दिनों सीएम आवास पर हुई बैठक में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को बुलाया गया था, जिसमें राज्य के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी, मंत्री वीजेंद्र यादव भी पहुंचे थे. इस दौरान जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह भी सीएम आवास पर मौजूद रहे. सीएम नीतीश कुमार ने सबसे की बात की. मुलाकात के बात मंत्री चंद्रशेखर जब बाहर निकले तो पीत विवाद पर कुछ भी बोलने से बचे और सीधे निकल गये.

क्या होता है पीत पत्र?

पीत पत्र को सरकारी भाषा में येलो पेपर भी कहा जाता है. आमतौर पर विभागीय कार्यवाही में मंत्री की हर बात मानने के लिए विभागीय अधिकारी बाध्य नहीं है, लेकिन अगर मंत्री पीत पत्र के जरिए अधिकारियों को निर्देश देता है तो इसे मानने की बाध्यता होती है. ऐसे में यह समझा जाना चाहिए कि मंत्री चंद्रशेखर ने विभागीय अपर मुख्य सचिव को अपनी बात मानने के लिए बाध्य किया है.

आप्त सचिव के पर कतरे

शिक्षा मंत्री के आप्त सचिव कृष्ण नंद यादव को केके पाठक से पंगा लेना महंगा पड़ा. इसके बाद पीत पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग ने भी पीत पत्र जारी किया और मंत्री के आप्त सचिव को हटाने की मांग की. विभाग ने आईएएस केके पाठक को पीत पत्र लिखने वाले मंत्री के आप्त सचिव के पर कतर दिए हैं. इसके बाद शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की फ़ज़ीहत हो गई.

तेज तर्रार अधिकारी माने जाते हैं पाठक केके पाठक

बिहार के तेजतर्रार सीनियर आईएएस अधिकारी माने जाते हैं. शिक्षा विभाग में कार्य शैली सुधारने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते जून महीने में ही उन्हें शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव पद की जिम्मेदारी दी थी. इसके बाद बिहार में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया समेत शिक्षा में सुधार के लिए उनकी तरफ से कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए शिक्षक बहाली के नियमावली में डोमिसाइल नीति को लेकर विवाद भी देखने को मिला.

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