बिहार के विश्वविद्यालयों में स्नातक की हजारों सीटें खाली, मेरिट लिस्ट में सेलेक्ट छात्र भी नहीं ले रहे एडमिशन
बिहार के छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय, बीएचयू, उत्तर प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों सहित दूसरे राज्यों में पढ़ने जाते हैं. विश्वविद्यालयों में देर से चल रहा सत्र और शिक्षकों की कमी भी इसका एक बड़ा कारण है.
पटना. बिहार के विश्वविद्यालयों में आधी से ज्यादा सीटें खाली रह जा रही हैं. मेरिट लिस्ट में सेलेक्ट होने के बावजूद छात्र नाम लिखाने नहीं आ रहे हैं. बिहार के मेधावी छात्र राज्य से बाहर चले जाते हैं. इस वजह से सीटें खाली रह जाती हैं. बिहार के छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय, बीएचयू, उत्तर प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों सहित दूसरे राज्यों में पढ़ने जाते हैं. विश्वविद्यालयों में देर से चल रहा सत्र और शिक्षकों की कमी भी इसका एक बड़ा कारण है. बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में नामांकन के आंकड़ों को देखें तो बीए में मानविकी संकाय के विषयों में सीटें ज्यादा खाली हैं. विज्ञान विषय की सीटें अपेक्षाकृत कम खाली हैं. कुछ ऐसे विषय हैं, जिसे छात्र पसंद नहीं कर रहे हैं. पाली, प्राकृत, पर्सियन, संस्कृत, बंगाला, मगही, उर्दू, मैथिली, हिन्दी और अंग्रेजी विषयों में ज्यादा नामांकन नहीं है.
पूर्णिया यूनिवर्सिटी में खाली रह गयी 10 हजार सीटें
पूर्णिया विश्वविद्यालय में सीबीसीएस सिस्टम के तहत 4 वर्षीय स्नातक कोर्स में नामांकन तिथि के समाप्त होने के बाद भी 9 हजार सीटों पर नामांकन नहीं हो पाया है, जबकि 27 हजार से अधिक छात्र नामांकन से वंचित हो गये. पूर्णिया यूनिवर्सिटी में स्नातक की 46,891 सीटों में से लगभग 37 हजार सीटों पर ही नामांकन हो पाया, जबकि विश्वविद्यालय को 64,200 आवेदन मिले थे. विश्वविद्यालय में नामांकन कम होने के कई कारण हैं. विश्वविद्यालयों से काफी निजी कॉलेजों का संबंधन हो गया है. सीटें भरना संभव नहीं है. आज के समय में रोजगारपरक शिक्षा सभी को चाहिए. वोकेशनल कोर्सों के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ा है. इस बाबत डीएसडब्ल्यू प्रो मरगूबगू आलम ने बताया कि पिछले वर्ष स्नातक की लगभग 14 हजार सीटें खाली रह गई थीं. इन सीटों पर छात्र-छात्राओं का नामांकन नहीं हो पाया था. इस बार नौ हजार से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं.
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बिहार यूनिवर्सिटी में 50 हजार सीटें हर साल रह जाती हैं खाली
मुजफ्फरपुर स्थित बीआरए बिहार विश्वविद्यालय कभी राज्य का गौरव था. आज हालत ऐसी है कि हर वर्ष हजारों छात्र दूसरे विश्वविद्यालय में पढ़ने चले जाते हैं. इस वर्ष भी 30 हजार छात्रों ने मेरिट लिस्ट में नाम आने के बाद भी दाखिला नहीं लिया है. सत्र नियमित नहीं होने और रिजल्ट समय पर जारी नहीं होने से छात्र दूसरे विश्वविद्यालयों का रुख कर रहे हैं. इससे विश्वविद्यालय की साख को बट्टा लग रहा है. विवि प्रशासन के पास छात्रों के पलायन पर कोई ठोस जवाब नहीं है.
मिथिला यूनिवर्सिटी जा रहे अधिकतर छात्र
नामांकन के मामले में मिथिला यूनिवर्सिटी की स्थिति इन दोनों से बेहतर है. बिहार यूनिवर्सिटी से भी अधिकतर छात्र मिथिला यूनिवर्सिटी की ओर रुख कर रहे हैं. वहां दाखिला लेनेवाले 20 प्रतिशत छात्र बीआरएबीयू क्षेत्र के जिलों से होते हैं. इस वर्ष भी इतने ही छात्रों ने मिथिला विवि में स्नातक में दाखिले के लिए आवेदन किया था. मिथिला विवि में लगातार सत्र नियमित चल रहा है, जिससे वहां समय पर स्नातक की डिग्रियां मिल जा रही हैं. बिहार विवि में सत्र नियमित करने का अभी प्रयास ही चल रहा है. स्नातक के अलावा बीएड की परीक्षा भी देर से हुई है.
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पटना यूनिवर्सिटी का भी रुख कर रहे विद्यार्थी
पिछले वर्ष लगभग 40 हजार छात्रों ने बीआरएबीयू के साथ दूसरे विश्वविद्यालयों में भी आवेदन दिया था. दूसरे विवि में स्नातक की मेरिट लिस्ट में नाम आने के बाद इन्होंने बीआरएबीयू में दाखिला नहीं लिया. वर्ष 2021 में भी लगभग 25 हजार छात्रों ने बिहार विवि छोड़ कर दूसरे विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था. छात्र मिथिला विवि के अलावा पटना विवि में भी दाखिला लेते हैं.
हर वर्ष 50 हजार सीटें रह जाती हैं खाली
बीआरएबीयू में हर वर्ष लगभग 50 हजार सीटें खाली रह जाती हैं. प्रति वर्ष नये कॉलेजों को संबद्धन दिया जाता है. स्नातक में दाखिले के लिए दो लाख से अधिक सीटे हैं, लेकिन सीटें भरने के लिए विवि को ऑन स्पॉट दाखिले का विकल्प छात्रों को देना पड़ा है. सीट स्वीकृत नहीं होने से वोकेशनल कोर्स पर भी रोक लगी है. यहां के छात्र वोकेशनल में दाखिले को दूसरे विवि में आवेदन कर रहे हैं. बिहार विवि के व्यावसायिक पाठ्यक्रम कर्मचारी संघ के सचिव उज्ज्वल कुमार ने स्थानीय मीडिया को बताया कि हमलोगों ने कोर्स शुरू करने के लिए कई बार कुलपति को आवेदन दिया.