अमेरिका के न्यू जर्सी में गृह प्रवेश, भागलपुर के पुरोहित, 3 घंटे तक ऑनलाइन स्क्रीन पर गूंजता रहा मंत्रोच्चारण
हम कहीं भी रहें, लेकिन अपनी जड़ से कटें नहीं. भारत उत्सव का देश ऐसे ही थोड़े माना जाता है. यहां तो जन्म से लेकर अंतिम यात्रा तक उत्सवी माहौल रहता है. हम रत्ती भर भी खुश होते हैं, तो देवभाषा संस्कृत और अपनी मिट्टी (संस्कृति) को जरूर याद करते हैं.
संजीव कुमार झा, भागलपुर. हम कहीं भी रहें, लेकिन अपनी जड़ से कटें नहीं. भारत उत्सव का देश ऐसे ही थोड़े माना जाता है. यहां तो जन्म से लेकर अंतिम यात्रा तक उत्सवी माहौल रहता है. हम रत्ती भर भी खुश होते हैं, तो देवभाषा संस्कृत और अपनी मिट्टी (संस्कृति) को जरूर याद करते हैं. आज जबकि अपने देश में भी गृह प्रवेश में पूजा-पाठ को आडंबर बता कम या खत्म किया जा रहा है, वहीं दूर देश में रह रहे भारतीय अपनी संस्कृति को नहीं भूल पा रहे. ऐसा ही संवाद मिला है न्यू जर्सी से.
गृह प्रवेश की भारतीय परंपरा का निर्वहन
औद्योगिक अर्थव्यवस्था के लिए जाने जानेवाले राष्ट्र अमेरिका में रह रहे एक भारतीय ने अमेरिका में नया घर खरीदने के बाद गृह प्रवेश की भारतीय परंपरा का निर्वहन कर यह जता दिया है कि हम धरती के किसी भी कोने में रहें, अपनी माटी की खुशबू बिखेरते रहेंगे. उन्हें जब अमेरिका में पंडित नहीं मिले, तो भागलपुर के पंडितों से संपर्क कर गृह प्रवेश के विधि-विधान और पूजा-पाठ संपन्न कराया. इस दौरान वह सारे विधान पूरे किये गये, जो भारत में रह कर सहजता से कर सकते थे और यह सारी प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी की गयी. स्क्रीन पर लगातार तीन घंटे तक मंत्रोच्चारण गूंजता रहा.
अयान के आग्रह पर उनके गुरु ने दी सहमति
अमेरिका के न्यू जर्सी में पिछले कई वर्षों से मधुबनी निवासी इंजीनियर अभिषेक कुमार रह रहे हैं. अयान के पिता ने जब न्यू जर्सी में अपना नया घर खरीदा, तो गृह प्रवेश के बाद ही उसमें रहने का निर्णय लिया. लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत पंडित की हो गयी कि आखिर पंडित को कहां ढूंढ़ेंगे. यह बात सुन उनके पुत्र अयान ने झट से अपने गुरु पाठक का सुझाव दिया. पांचवीं कक्षा के छात्र अयान कुमार को भागलपुर के बरारी पश्चिम टोला निवासी पुंडरीकाक्ष पाठक हिंदी व संस्कृत की पढ़ाते हैं. उन्होंने बताया कि पंडितों की टोली गठित कर गृह प्रवेश का विधि-विधान शुक्रवार की शाम 7.30 बजे संपन्न कराया, जब अमेरिका में सुबह के नौ बज रहे थे. पंडितों में शामिल बरारी निवासी निशि कांत झा, गौरव झा व पुंडरीकाक्ष पाठक ने रुद्राभिषेक, शांति पाठ, दुर्गा पाठ और गृह प्रवेश कराया.
अमेरिका के दर्जन भर बच्चे को पाठक पढ़ाते हैं संस्कृत
करीबन एक वर्ष पहले बरारी निवासी पुंडरीकाक्ष पाठक से अमेरिका में दो बच्चों के अभिभावक ने हिंदी व संस्कृत पढ़ाने का अनुरोध किया था. श्री पाठक ने बताया कि उस समय तो वे इस बात पर चौंक पड़े थे कि हिंदी और संस्कृत पढ़ाना है और वह भी अमेरिका में रह रहे बच्चों को. यही सवाल जब संबंधित अभिभावक को किया था, तो उनका कहना था कि बच्चे भले ही अमेरिका में रहते हैं लेकिन वे चाहते हैं कि उनके बच्चे जहां भी रहें, दिल में भारत जिंदा रहना चाहिए. इन दोनों बच्चों से सफर की शुरुआत हुई और वर्तमान में अमेरिका में रह रहे दर्जन भर बच्चे हिंदी व संस्कृत पढ़ रहे हैं.