बिहार सरकार राज्य में ऐसे सभी प्लांट का सर्वे करायेगी, जो गलत तरीके से जमीन से पानी निकाल कर बेच रहे है. सूत्रों के मुताबिक राज्यभर में पानी के कारोबारी धड़ल्ले से प्रतिदिन 20 लाख लीटर से अधिक भूजल का दोहन करते है, लेकिन इन सभी के लिए कोई नियम नहीं है. पानी निकासी के दौरान लाखों लीटर पानी बर्बाद भी हो रहा है, जिसका उपयोग भी नहीं होता है.सरकार दिसंबर से पहले भूजल निकासी के लिए नियमावली तैयार करेगी और ऐसे सभी पानी बेचने वाले कारोबारियों पर कार्रवाई करेगी.
जानकारी के मुताबिक इस संबंध में सभी डीएम को रिपोर्ट तैयार करने का दिशा-निर्देश भेजा जा रहा है. वहीं, बिहार में जल्द स्टेट ग्राउंड वाटर कमेटी का गठन होगा, जिसके बाद भूजल का दोहन करने वालों पर सख्ती की जायेगी. वर्तमान में सभी जिलों में ऐसे प्लांट का सर्वे होगा कि इनको पानी निकल कर बेचने का कहां-कहां से एनओसी मिला है.
2011 के नियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति बीआइएस प्रमाणन के बाद पैकेट बंद पेयजल, मिनरल वाटर की बिक्री कर सकता है. उसे भूगर्भ जल अधिनियम 2019 के अंतर्गत एनओसी लेना अनिवार्य है. यह एनओसी पांच वर्षों के लिए दी जाती है. प्लांट के लाइसेंस के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआइएस) के साथ नगर निगम व नगर परिषद व पीएचइडी, पर्यावरण, खाद्य आपूर्ति विभाग से अनुमति अनिवार्य है. वहीं, नियमों के अनुसार बॉटलिंग प्लांट स्थापित करने के लिए 15 सौ वर्गफुट जमीन हाेनी चाहिए. पानी का प्लांट लगाने के लिए 200 फुट तक की बोरिंग जरूरी है, लेकिन अधिकतर जगहों पर बस 20 फुट चाैड़ा व 30 फुट लंबे कमरे में प्लांट स्थापित है. बाेरिंग 100 फुट ही गहरा है.
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अधिकतर वाटर प्लांट में आरओ की जगह चीलिंग प्लांट के माध्यम से पानी की सप्लाइ की जा रही है. इसमें पानी को बैक्टीरिया खत्म होने तक ठंडा किया है और उसके बाद उसकी पैकिंग करके सप्लाइ की जाती है.वहीं, 90 प्रतिशत से अधिक प्लांट के पास प्रयोगशाला और जांच के लिए केमिस्ट की व्यवस्था नहीं है.