आस्था पर कोरोना भारी: रामनवमी पर नहीं जुटे पीपल वृक्ष की पूजा करने श्रद्धालु
गोरौल : प्रखंड के कटरमाला पंचायत के नहर किनारे आदमपुर गांव के पास खड़ा पीपल का वृक्ष जिसे देख हर किसी का सर श्रद्धा व भक्ति से झुक जाता है. हर लोग इस पर देवी का वास मान कर पूजा करते है. यहां कई जिले से लोगों की भीड़ वासंतिक एवं शारदीय नवरात्रि के दौरान […]
गोरौल : प्रखंड के कटरमाला पंचायत के नहर किनारे आदमपुर गांव के पास खड़ा पीपल का वृक्ष जिसे देख हर किसी का सर श्रद्धा व भक्ति से झुक जाता है. हर लोग इस पर देवी का वास मान कर पूजा करते है. यहां कई जिले से लोगों की भीड़ वासंतिक एवं शारदीय नवरात्रि के दौरान पूजा अर्चना के लिये जुटती है, लेकिन चैत रामनवमी के दौरान इस वर्ष कोरोना वायरस को लेकर साफ खाली है. एक्का दुक्का लोग ही आ रहे है. इस स्थान का चढ़ावा भी कुछ अलग है. पेड़ों की डाली में लंबी लंबी साड़ी बांध कर श्रद्धालु पूजा अर्चना कर देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस अदभुत स्थान पर तीन पिंडी की भी स्थापना किया गया है. जिसमें दो पिंडी को ब्रह्म एवं एक पिंडी को देवी कहा जाता है. यहां नवरात्रा के अलावे भी सोमवार एवं शुक्रवार को विशेष पूजा अर्चना सालों भर किया जाता है.
इस स्थान पर चढ़ाया गया साड़ी या अन्य समानों को कोई चुराने की हिम्मत नहीं करता है. यहां तक कि पेड़ के नीचे रखे दान पात्र में रुपया रहने के बाद भी किसी का क्या मजाल कि उसे छूने की कोशिश कर दे, जबकि यहां रात में भी कोई नहीं रहता. दिन में भी पूजा अर्चना करने के बाद लोग चले जाते हैं. यह स्थान जिले में इकलौता ऐसा स्थान है जहां पेड़ों की डाली में पूरी साड़ी बांध कर मां की भक्तगण पूजा करते है. स्थापना के विषय में ग्रामीण बताते है कि लगभग 50-60 वर्ष पूर्व इस वृक्ष के नीचे एक महात्मा जी आये थे. वे बिना अन्य जल ग्रहण किये दो दिनों तक यहां पर रुके थे. जाते समय उन्होंने गांव वालों से कहा था कि इस पेड़ पर मां देवी का वास है . लोगो की मनोकामना पूर्ण करने के लिये यहां पर आयीं है. जो भी व्यक्ति सच्चे मन से यहां पूजा अर्चना करेगा, उसका मनोकामना पूर्ण हो जायेगा.
उसी समय से यहां पूजा अर्चना और मां देवी को साड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गयी. कलांतर में इस स्थान का महत्व इतना बढ़ गया कि यहां पर दरभंगा, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, मघुबनी ,पटना, पूर्वी चंपारण, कोलकता सहित कई जगहों से श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोग गाजे-बाजे के साथ यहां पहुंचते है. यदि किसी को चढ़ावे की साड़ी प्रसाद स्वरूप लेने की इच्छा होती है तो दान पात्र में राशि डाल कर देवी मां की अराधना करने के बाद साड़ी ले जाते है. स्थानीय एक ग्रामीण ने बताया कि एक महिला चुपचाप साड़ी लेकर चली गयी. घर पहुंचते ही उसकी तबीयत खराब होने लगी. वह भाग कर इस पेड़ के नीचे पहुंची और साड़ी को उसी स्थान पर बांध कर माफी मांगी. इसके बाद उसकी तबियत ठीक हो गयी. इस चमत्कार को गांव के लोगों ने भी देखा और महिला ने अपनी करतूत की जानकारी लोगों को दी.
क्या कहते हैं स्थानीय जनप्रतिनिधि
पंचायत के मुखिया जानकी देवी बताती है कि लोगों के लिये यह स्थान किसी वरदान से कम नहीं है. यहां के लोग देवी मां को याद कर जो भी काम करता है, वह पूरा हो जाता है.जानकी देवी, मुखिया-पंचायत के पूर्व मुखिया सुनीता देवी बताती है कि इस स्थान पर पुत्र प्राप्ति की कामना से किया गया पूजा फलदायी होती है.सुनीता देवी, पूर्व मुखियाक्या कहते हैं श्रद्धालु-मां के भक्त शंभू बताते है एक व्यक्ति का पुत्र कई वर्षों से नहीं बोल रहा था, उसने इस स्थान की महिता की जानकारी मिलने पर यहां आया और मन्नत मांगा . महज कुछ ही दिनों के बाद उसका पुत्र बोलने लगा. इस चमत्कार से गांव के कई लोग बताते है.शंभू, स्थानीय श्रद्धालु