हाजीपुर. दुर्गा सप्तशती के श्लोकों, वैदिक मंत्रों और शंख-ध्वनियों से वातावरण गूंज रहा है और भक्तजन माता रानी की भक्ति में डूबे हैं. पूजा पंडालों में बुधवार को देवी मां का पट खुलते ही दशहरा मेला शुरू हो जायेगा. शहर में दुर्गापूजा उत्सव की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. बुधवार को पूजा पंडालों में शुभ मुहूर्त में मां दुर्गे का पट खुलेगा और दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हो जायेगा. शारदीय नवरात्र की सप्तमी तिथि से शुरू होने वाले चार दिवसीय दशहरा मेले की तैयारी में दिन-रात लोग जुटे हैं. नवरात्र के पांचवें दिन सोमवार को भगवती के पांचवें स्वरूप देवी स्कंदमाता की उपासन की गयी. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है. भगवान स्कंद बाल रूप में इनकी गोद में विराजमान हैं. मान्यता है कि मोक्ष के द्वार खोलने वाली स्कंदमाता परम सुखदायी हैं. देवी स्कंदमाता अपने भक्तों की सारी इच्छाएं पूरी करती हैं.
भक्तों की भीड़ से गुलजार हुआ माता का दरबार
भगवती स्थानों और देवी मंदिरों में भक्तों और श्रद्धालुओं की चहल-पहल बनी हुई है. नगर क्षेत्र में ऐसे कई माता मंदिर और भगवती स्थान हैं, जहां लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है. इन स्थानों पर लोगों की श्रद्धा और भक्ति देखते बन रही है. भक्तों की भीड़ से माता का दरबार गुलजार दिख रहा है. नगर के अति प्राचीन मीठा कुआं माता मंदिर से श्रद्धालुओं की गहरी आस्था जुड़ी है. नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. इस भगवती स्थान को कोई दो सौ तो कोई चार सौ वर्ष पुराना बताता है. नगर के कटरा मुहल्ला स्थित इस माता मंदिर के बारे में अनेक मान्यताएं व किंवदंतियां प्रचलित हैं. हालांकि इसकी स्थापना कैसे हुई, इसके बारे में लोग ठीक से बता नहीं पाते. ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने गुरु विश्वामित्र के साथ सीता स्वयंवर में जनकपुर जाने के दौरान यहां पूजा-अर्चना की थी. बगल के रामचौरा में आज भी भगवान राम के चरणचिह्न मौजूद हैं.दूसरी मान्यता है कि एक देवी भक्त ने सच्चे मन से देवी का आह्वान किया और माता ने साक्षात दर्शन देकर भक्त का कल्याण किया. धीरे-धीरे प्रसिद्धि हुई और लोग पूजा-अर्चना को जुटने लगे. पौराणिक धर्म शास्त्रों, वेद-पुराण आदि में इस क्षेत्र के महत्व का वर्णन मिलता है. मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध कौनहारा घाट, जहां भगवान श्रीहरि स्वयं पधार कर ग्राह से गज की रक्षा की और ग्राह को मोक्ष प्रदान किया था. मंदिर के आसपास का क्षेत्र बड़ा ही रमणीय और सुरम्य था. नीम, आम आदि के बगीचे के अलावा सुंदर फुलवारी थी. माता मंदिर के पास ही एक कुआं था, जिसका पानी मीठा होने के कारण इसका नाम मीठा कुआं पड़ा.
आस्था से जुड़ा है बड़ी जगदंबा स्थान
शारदीय नवरात्र में बड़ी जगदंबा स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. लगभग डेढ़ सौ साल पुराने इस मंदिर में माता के नौ स्वरूपों का दर्शन पिंडी के रूप में होता है. दूर-दूर से यहां श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. नगर के बागमली में स्थित यह जगदंबा स्थान, जिसके बारे में मान्यता है कि जो भक्त सच्चे हृदय से माता की आराधना करता है, उसकी मुराद पूरी होती है. मंदिर में शुक्रवार को विशेष आरती होती है, जिसमें काफी श्रद्धालु शामिल होते हैं. किंवदंती है कि एक देवीभक्त महिला को माता ने स्वप्न देकर कहा कि पिंडी बनाकर आराधना करने से तुम्हारे सभी मनोरथ पूरे होंगे. महिला ने वैसा ही किया और उसे इसका सुफल प्राप्त हुआ. पूर्व के समय में यहां दशहरे के मौके पर प्रदेश भर से कलाकार जुटते थे और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे. इसमें लाठी, तलवार आदि की कलाबाजी होती थी. कुश्ती का अखाड़ा जमता था, जिसमें स्थानीय और बाहर के पहलवान भिड़ते थे. लोग इसका खूब आनंद उठाते थे. समय बदलने के साथ यह परंपरा समाप्त हो गयी.
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