24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

एकल नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन हुई मेरा खिलौना की प्रस्तुति

शहर की चर्चित नाट्य संस्था निर्माण रंगमंच की ओर से आयोजित सफदर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव 2024 के दूसरे दिन नाटक मेरा खिलौना की प्रस्तुति की गयी. शहर के बागमली सांचीपट्टी में विवेकानंद कॉलोनी स्थित निर्माण कार्यालय के परिसर में मई दिवस को समर्पित तीन दिवसीय सफदर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव आयोजित किया गया है.

हाजीपुर. शहर की चर्चित नाट्य संस्था निर्माण रंगमंच की ओर से आयोजित सफदर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव 2024 के दूसरे दिन नाटक मेरा खिलौना की प्रस्तुति की गयी. शहर के बागमली सांचीपट्टी में विवेकानंद कॉलोनी स्थित निर्माण कार्यालय के परिसर में मई दिवस को समर्पित तीन दिवसीय सफदर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव आयोजित किया गया है. दूसरे दिन के कार्यक्रम का उद्घाटन ट्रेड यूनियन नेता अमृत गिरि ने किया. संस्था के सचिव क्षितिज प्रकाश ने अतिथियों का स्वागत करते हुए सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना के विकास में नाट्यकर्म के महत्व को रेखांकित किया. नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन ओंकारनाथ शर्मा लिखित मेरा खिलौना नाटक वरिष्ठ रंगकर्मी क्षितिज प्रकाश के निर्देशन मे अभिनेता रविशंकर पासवान ने प्रस्तुत किया. नाटक में एक गरीब मजदूर की बेवसी और लाचारी को अभिनेता रविशंकर पासवान ने अपने प्रभावपूर्ण अभिनय के जरिये जीवंत रूप में प्रस्तुत किया. नाटक का कथासार यूं है कि जगदीश नाम का एक रिक्शा चालक सुबह जब अपने काम पर जाने लगता है, तब वह देखता है कि उसके चार साल के बेटे का शरीर बुखार से तप रहा है. अपने इकलौते बेटे को तेज बुखार और बेचैनी में देखकर वह चिंतित हो जाता है और जल्दी से जाकर दवा लेकर आता है. दवा पत्नी को देते हुए समझाकर कहता है कि एक मालिश वाली दवा है और दूसरी पिलाने वाली है. शाम तक सब ठीक हो जायेगा. इसके बाद वह रिक्शा चलाने निकल पड़ता है. शाम को थका-हारा जब जगदीश लौटता है तो देखता है कि उसके बेटे के मुंह से झाग निकल रहा है और उसकी हालत नाजुक हो गयी है. पूछने पर पता चलता है कि बच्चे को दवा उल्टे ढंग से पिला दी गयी है. वह तुरंत भागता हुआ अस्पताल पहुंचता है. अस्पताल में चिकित्सा कर्मियों की अनदेखी और कुछ दवाएं बाहर से लाने में देर हो जाने के कारण उसका बच्चा दम तोड़ देता है. ब्च्चे को अस्पताल में लाने के बाद भी उसे बचाया नही जा सका, इस सदमे से जगदीश की पत्नी गुजर जाती है. अपनी आंखों के सामने बेटे और पत्नी को दम तोड़ते देख जगदीश निढाल होकर गिर जाता है और उसकी भी मौत हो जाती है. इस तरह एक गरीब की व्यथा को व्यक्त करते हुए यह नाटक एक सवाल छोड़ जाता है कि देश और राज्य के अस्पतालों की जिम्मेदारी क्या है और गरीबों के लिए ये अस्पताल कितने महफूज हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें