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Happy Women’s Day 2020: जानें बिहार और बंगाल की इन पांच महिलाओं को, जिन्होंने समाज के सामने पेश की मिसाल

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानें बिहार और बंगाल की पांच ऐसी सशक्त महिलाओं के बारे, जिन्होंने अपनी जिंदगी तो बदली साथ-साथ समाज के लिए भी एक मिसाल पेश की....

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानें बिहार और बंगाल की पांच ऐसी सशक्त महिलाओं के बारे, जिन्होंने अपनी जिंदगी तो बदली साथ-साथ समाज के लिए भी एक मिसाल पेश की….

किलिमंजारो और माउंट अकोंकागुआ की फतह : मिताली प्रसाद
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बिहारशरीफ : बिहार के नालंदा जिले की बेटी मिताली प्रसाद आज अपने राज्य के साथ-साथ देश के लिए गौरव बन गयी हैं. वह कतरीसराय प्रखंड के मायापुर गांव निवासी साधुशरण प्रसाद की बेटी हैं. पटना विश्वविद्यालय से पीजी की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने पर्वतारोहण को अपना करियर बना लिया है.

बीते साल मिताली ने अफ्रीका महाद्वीप के सर्वोच्च पर्वत शिखर किलिमंजारो (5895 मीटर) को फतह किया, तो इस साल जनवरी में दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकोंकागुआ (6962 मीटर) पर तिरंगा लहराया. हर पर्वतारोही का सपना होता है कि वह सातों महाद्वीपों के सप्त-शिखरों पर अपने देश का झंडा लहराये और इस दिशा में मिताली कदम-दर-कदम बढ़ रही हैं. मिताली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही हैं जिन्होंने बिना कुली और गाइड के, माउंट अकोंकागुआ पर अकेले सफल चढ़ाई की. उनके लिए सफलता का यह सफर आसान नहीं रहा. पर्वतारोहण एक महंगा शौक है. आर्थिक तंगी के कारण देश से बाहर जाकर पर्वतारोहण करना आसान नहीं था.

मिशन अकोंकागुआ के लिए उन्हें साढ़े छह लाख रुपये की जरूरत थी. क्राउड फंडिंग के जरिये उन्होंने यह रकम जुटायी. पटना विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में जाकर उन्होंने अपने लिए समर्थन जुटाया. अब उनका सपना बाकी पांच शिखरों को छूना है. जिन दिनों मिताली अभ्यास या अभियान से दूर होती हैं, तो वह विभिन्न कार्यक्रमों में जाकर युवाओं व बच्चों को अपने लक्ष्य के लिए प्रेरित करती हैं.

सोशल मीडिया के जरिये खड़ा किया इ-कारोबार : अंकिता प्रभाकर
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छपरा : बिहार के छपरा शहर की अंकिता प्रभाकर ने ऑनलाइन बिजनेस के माध्यम से भारतीय परिधानों को विदेशों में एक खास पहचान दिलायी है. अपने स्टार्टअप के जरिये उन्होंने महिलाओं को सशक्त होने का एक नया उदाहरण पेश किया है. छपरा शहर की मौना चौक निवासी अंकिता के पति केंद्रीय कर्मचारी हैं. अक्सर उनका तबादला होते रहता है. इसी बीच अंकिता ने घर बैठे कुछ नया शुरू करने की सोची.

उन्होंने फेसबुक ग्रुप के माध्यम से महिलाओं के परिधान ऑनलाइन बेचने शुरू किये. अंकिता बताती हैं कि 2016 में उन्होंने अपनी बहन के साथ फेसबुक ग्रुप का पेज बनाया. इसका नाम रखा ‘सॉल्ट शॉप लाइक एनीथिंग’. इसी ग्रुप के माध्यम से लहंगे, कपड़े, साड़ियों का ऑर्डर लेना शुरू किया और होम डिलिवरी की सुविधा लोगों को दी. धीरे-धीरे विनिर्माताओं से टाइ-अप हो गया. अब वह विनिर्माताओं से सीधे सामान लेती हैं और ग्राहकों के घर डिलिवरी कराती हैं.

शुरुआत में सिर्फ 10 लोग जुड़े थे, लेकिन आज 2100 से भी अधिक लोग उनसे जुड़ चुके हैं. पहले केवल लोकल ऑर्डर आते, फिर धीरे-धीरे देश के विभिन्न हिस्सों के साथ विदेशों से भी ऑर्डर आने लगे. अंकिता बताती है कि पहले हम लोग दिन में काफी समय स्मार्टफोन पर बर्बाद करते थे. इसके चलते बातें भी सुननी पड़ती थीं. फिर छोटी बहन ने आइडिया दिया कि कुछ ऐसा करते हैं कि जिससे समय बर्बाद न हो. इसके बाद से सोशल मीडिया के जरिये काम शुरू किया. आज विभिन्न परिधानों व एसेसरीज के 61 हजार से अधिक डिजाइन उनके पेज पर मौजूद हैं.

देश की पहली महिला एविएशन फायर फाइटर : तानिया सान्याल
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कोलकाता : आज महिलाएं हर उस क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं, जहां कभी केवल पुरुषों का बोलबाला था. ऐसा ही एक क्षेत्र एविएशन फायर फाइटर का. कोलकाता महानगर के दमदम के सिंथी की रहनेवाली, 28 वर्षीय तानिया सान्याल अभी एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआइ) के अधीन फायर सर्विस ट्रेनिंग सेंटर कोलकाता में जूनियर असिस्टेंट इन फायर सर्विस के पद पर हैं. वह एयरपोर्ट के फायर फाइटरों को ट्रेनिंग देती हैं. तानिया को महिलाओं के लिए प्रेरणा के रूप में कई सम्मान भी मिल चुके हैं.

तानिया के पिता किशोर कुमार सान्याल कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन से 2009 में रिटायर हुए हैं. मां का नाम रूमा सान्याल है.

बड़ी बहन तनिमा बनर्जी नृत्यांगना हैं. तानिया का कहना है कि बचपन से ही उनमें कुछ अलग करने की ललक थी. एमएससी (बॉटनी) के बाद वह सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत थीं. इसी दौरान एएआइ के अधीन फायर फाइटर पद का विज्ञापन देख वह आकर्षित हुईं और आवेदन कर दिया. इसके बाद काफी मेहनत की. लिखित व शारीरिक परीक्षा पास करने के बाद ट्रेनिंग के लिए चयन हुआ. सफलतापूर्वक ट्रेनिंग के बाद उन्हें अपने ही शहर में पोस्टिंग मिली.

तानिया के मां-बाप का कहना है कि उनका कोई बेटा नहीं है, लेकिन उनकी दोनों बेटियों ने खुद को बेटों से भी बढ़ कर साबित कर दिया है. तानिया का कहना है कि नौकरी लगने के बाद उन्हें पता चला कि वह पहली महिला हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में नौकरी मिली. पहले थोड़ा संकोच हुआ था, लेकिन वह सभी के सहयोग से आगे बढ़ रही हैं.

बिना फीस लड़ती हैं प्रताड़ित महिलाओं की कानूनी लड़ाई : कुमारी निधि
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गोपालगंज : बिहार के गोपालगंज जिला कोर्ट की वकील कुमारी निधि प्रताड़ित महिलाओं का केस बिना फीस के लड़ती हैं. वह उन बुजुर्गों का भी केस मुफ्त में लड़ती हैं जिनके बच्चों ने उन्हें त्याग दिया है. वह महिलाओं को प्रताड़ना सहित हर परिस्थिति से जूझने के लिए जागरूक करती हैं. उन्होंने बताया कि वह पहले काउंसेलिंग के जरिये कोशिश करती हैं कि बिना केस फाइल किये ही मामला सुलझ जाये. उनका कहना है कि वह करीब 129 मामले इस तरह से सुलझा चुकी हैं.

कुमारी निधि ने बताया कि वह मैट्रिक के बाद से ही उनका सपना ऐसे क्षेत्र को चुनना था, जिससे वह समाज में दबी-कुचली और प्रताड़ित महिलाओं की मदद कर सकें. पढ़ाई के दौरान ही उन्हें शिवसागर शर्मा से प्यार हो गया और उन्होंने शादी कर ली. दोनों परिवार की रजामंदी रही, लेकिन अंतरजातीय शादी होने के कारण समाज से उन्हें बहुत कुछ सुनना पड़ा. वकील पति ने पूरा सहयोग किया और निधि ने भी वकालत की डिग्री ली. निधि कहती हैं कि वह छात्राओं और महिलाओं में हर विपरीत परिस्थिति से लड़ने का साहस भरती हैं. लोक अदालत और कानून जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से वे उन्हें कानूनी सहायता दिलवाती हैं. महिलाओं को जागरूक करने का उनका यह मिशन गोपालगंज के अलावा सीवान और मोतिहारी तक चलता है.

गृहिणी से अभिनेत्री बन पूरा किया बचपन का सपना : डॉ अर्चना सिंह
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मुजफ्फरपुर : बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के अखाड़ाघाट की रहनेवाली डॉ अर्चना सिंह आज एक सफल अभिनेत्री हैं. गृहिणी से अभिनेत्री बनने का उनका सफर आसान नहीं था. पढ़ाई के दौरान ही एक्टिंग में उनकी रुचि थी. स्कूल के कई नाटकों में अभिनय किया. बड़े पर्दे पर काम करने की इच्छा थी, लेकिन स्कूली पढ़ाई समाप्त होते ही 1994 में डॉ आरके सिंह से उनकी शादी हो गयी. गृहस्थी संभालते हुए भी एक्टिंग का जुनून बना रहा. पति से उन्होंने अपनी इच्छा बतायी तो वह सहर्ष तैयार हो गये. पेशे से डॉक्टर होने के कारण पति के लिए घर संभालना मुश्किल था, फिर भी उन्होंने पूरा सहयोग किया.

डॉ अर्चना सिंह कहती हैं कि उन्होंने पहली फिल्म 2010 में ‘साईं मोरे बाबा’ की. उस दौरान 15 दिनों तक शूटिंग में बाहर रही. दो बेटियों व एक बेटे की देखभाल पति किया करते थे. सुबह से शाम तक शिवहर में ड्यूटी करते थे. फिर वापस आकर बच्चों की देखभाल व उनकी पढ़ाई में सहयोग करते थे. शूटिंग से लौटने के बाद उनके चेहरे पर शिकन नहीं मिली. इसके बाद सिलसिला चल पड़ा. प्रियंका चोपड़ा की फिल्म बम बम बोल रहा काशी, मेंहदी लगा के रखना, मजनू मोटरवाला, औरत खिलौना नहीं जैसी भोजपुरी फिल्मों के साथ हिंदी फिल्म ‘नाच’ में काम किया. इस दौरान भी पति ने बखूबी घर संभाला.

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