Happy Women’s Day 2020: झारखंड की इन पांच महिलाओं ने हौसलों की उड़ान से छू लिया आसमां…

Women's Day महिलाएं शक्ति का रूप हैं. अगर ठान लें, तो कुछ भी कर सकती हैं. आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां वे नित नया मुकाम हासिल नहीं कर रही हों. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम बिहार, झारखंड और बंगाल की दस ऐसी सशक्त महिलाओं की कहानी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से अपनी जिंदगी तो बदली ही, समाज खास कर अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल पेश की.

By SumitKumar Verma | March 8, 2020 7:34 AM

महिलाएं शक्ति का रूप हैं. अगर ठान लें, तो कुछ भी कर सकती हैं. आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां वे नित नया मुकाम हासिल नहीं कर रही हों. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम बिहार, झारखंड और बंगाल की दस ऐसी सशक्त महिलाओं की कहानी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से अपनी जिंदगी तो बदली ही, समाज खास कर अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल पेश की.

ग्रामीणों की दोस्त बन कर उग्रवाद से ले रहीं लोहा : अन्नु नोवाल
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हजारीबाग : सहायक कमांडेंट अन्नु नोवाल अति उग्रवाद प्रभावित जंगली इलाके में तैनात सीआरपीएफ की 22वीं बटालियन की अल्फा कंपनी की कमांडर हैं. साहसिक व सामाजिक कार्यों से महिलाओं, छात्राओं समेत आम ग्रामीणों के बीच उन्होंने एक अलग छवि बनायी है. वर्दी में अन्नु नोवाल हाथों में राइफल लेकर 15 किमी तक जंगल, नाला, पहाड़ की तराई से लेकर चोटी तक अभियान का नेतृत्व करती हैं.

हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो के बीच घिरे जंगल और झुमरा पहाड़ जाने के रास्तों में उग्रवादियों पर उन्होंने नकेल कस दी है. इसके साथ ही सुदूरवर्ती गांवों में रहनेवाली लड़कियों व युवतियों को सुरक्षा बलों में भर्ती होने के लिए प्रेरित करती हैं. वह समय-समय पर गांवों में नागरिक सहायता कार्यक्रम के तहत बच्चों को पाठ्य सामग्री, चिकित्सा कैंपों के जरिये लोगों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की गतिविधियां सक्रियतापूर्वक करती हैं. स्कूली बच्चियों की मदद लेकर वह अभिभावकों को लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूक भी कर रही हैं.

अन्नु नोवाल बताती हैं कि जब वह बिरला बालिका विद्यापीठ, पिलानी (राजस्थान) में पढ़ रही थीं, तब किरण बेदी एक वार्षिक समारोह की मुख्य अतिथि थीं. उसी समय उन्होंने ठान लिया कि नौकरी वर्दीवाली ही करेंगी. वह कहती हैं, प्रशिक्षण जरूर कठिन था, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. किसी तरह का डर नहीं है. वह चाहती हैं कि जिस तरह वह किरण बेदी को देख कर प्रेरित हुई थीं, उसी तरह इन दूरदराज के गांवों की बच्चियां भी उनसे प्रेरणा लेकर कुछ बनने का संकल्प लें.

राजस्थान के पिलानी की मूल निवासी अन्नु नोवाल का मानना है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना जरूरी है.

महिलाओं को खुद की एक पहचान जरूर बनानी चाहिए. किसी की बहन, बेटी, पुत्रवधू या पत्नी से ज्यादा आपका खुद का परिचय होना चाहिए, जो कि लड़कियों की अच्छी शिक्षा से ही मुमकिन है. अन्नु नोवाल सीएपीएफ 2013 बैच की महिला अधिकारी हैं. उन्होंने कमांडो कोर्स भी किया है. फिलहाल हजारीबाग के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र चुरचू में कंपनी कमांडेंट का दायित्व निभा रही हैं. अपने प्रयासों से वह ग्रामीणों का भरोसा हािसल कर इलाके में हालात बदल रही हैं. उग्रवाद से लोहा लेकर शांति लौटा रही हैं.

कभी प्यून थीं, अब चलाती हैं कोयला खदान में भारी मशीन : कुनी देवी
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बेरमो : बोकारो जिला स्थित बेरमो कोयलांचल अंर्तगत सीसीएल के ढोरी एरिया में एक दर्जन से ज्यादा केटेगरी-1 महिला कर्मियों को दक्ष बनाकर उन्हें तकनीकी कामों से जोड़ा गया है. उन्हें ढोरी एरिया के अमलो तथा एसडीओसीएम परियोजना में फीडर ब्रेकर (कोयला तोड़नेवाली मशीन) के अलावा वर्कशॉप में लगाया गया है. अमलो परियोजना में फीडर ब्रेकर ऑपरेटर कुनी देवी तथा चरकी देवी को अपने काम के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है.

अमलो परियोजना में कुल छह फीडर ब्रेकर हैं, जिनमें से पांच को प्रथम पाली में महिलाओं द्वारा चलाया जाता है. इसके अलावा, छह महिला कर्मचारियों को वर्कशॉप में वाशिंग एवं ऑटो ल्यूब सिस्टम में लगाया गया है. इनमें से ज्यादातर को पति या पिता के निधन के बाद उनके स्थान पर नियोजित किया गया है. ये महिलाएं केटेगरी-1 यानी सबसे निचले दर्जे में नियुक्त हुई थीं. इन्हें तकनीकी रूप से कुशल बनाकर केटेगरी-2 में पदोन्नति दी गयी.

कुनी, चरकी के अलावा तुलसी कुमारी व गंगा देवी भी चपरासी से ऑपरेटर बनी हैं. ये चारों पिछले कई वर्षों से प्यून पद छोड़कर एलकॉन मशीन, आइआर मशीन, ब्लेक डायमंड, न्यू बीडब्ल्यूएफ व ओल्ड बीडब्ल्यूएफ मशीन को ऑपरेट कर कोयला तोड़ती हैं. ढोरी एरिया के पूर्व जीएम एमके राव ने इन्हें एक नयी उड़ान दी.

फीडर ब्रेकर ऑपरेटर तिलकधारी सिंह, आनंद महतो, मुकिन अंसारी, अख्तर अंसारी ने उन्हें काम सिखाने में पूरा सहयोग दिया. कुनी बताती हैं कि पिछले पांच वर्ष से वह फीडर ब्रेकर चला रही हैं. पहले वह अमलो साइडिंग में प्यून थीं. तत्कालीन जीएम ने मशीन ऑपरेट करने के लिए सीखने को कहा. पहले तो हिचकिचाहट हुई, लेकिन कुछ ही समय में पूरी तरह काम सीख लिया.

दिहाड़ी मजदूर की बिटिया पहुंची तीरंदाजी विश्वकप : लक्ष्मी हेंब्रम
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जमशेदपुर : जमशेदपुर शहर के करनडीह की रहनेवाली लक्ष्मी हेंब्रम आज तीरंदाजी में अपना एक मुकाम बना चुकी हैं. टाटा आर्चरी एकेडमी की इस तीरंदाज ने पिछले वर्ष कैडेट विश्वकप जैसे बड़े तीरंदाजी टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया. लक्ष्मी हेंब्रम ने रांची में आयोजित एसजीएफआइ नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप में भी पदक हासिल किया है. 2018 में मिनी नेशनल के रिकर्व महिला टीम वर्ग में लक्ष्मी पदक विजेता रह चुकी हैं.

लक्ष्मी के पिता राम सिंह हेंब्रम व माता सोमवारी हेंब्रम एक कंपनी में दिहाड़ी मजदूर हैं. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद लक्ष्मी ने तीरंदाजी को अपना करियर बनाया, तो इसके पीछे एक दिलचस्प वाकया है. लक्ष्मी के चचेरे भाई बुधराम सोय जमशेदपुर स्थित आइएसडब्ल्यूपी आर्चरी सेंटर में ट्रेनिंग करने आते थे. वह भी अपने भाई के साथ आने लगी. एक दिन वह अपने भाई का धनुष खींच रही थी तभी कोच की नजर लक्ष्मी पर पड़ी. उन्होंने भाई बुधराम सोय को नियमित रूप से लक्ष्मी को ट्रेनिंग सेंटर लाने की सलाह दी. हालांकि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह नियमित नहीं आ पाती थी.

कोच ने कस्तूरबा स्कूल, पोटका में लक्ष्मी का दाखिला करवाया, जहां वह तीरंदाजी सीखने लगी. धीरे-धीरे वह अपने वर्ग में बेहतकर करने लगी. इसके बाद उसने टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट के ट्रायल में हिस्सा लिया, जहां उसका चयन हो गया. फिर वहां से वह टाटा आर्चरी एकेडमी के ट्रायल में पहुंची. 2016 में लक्ष्मी ने इस एकेडमी में अपनी जगह बना ली.

खुले में शौच रोकने को खुद बनाने लगीं शौचालय : सुनीता देवी
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लातेहार : झारखंड के लातेहार जिले के लातेहार प्रखंड स्थित उदयपुरा गांव के भगत टोला में सुनीता देवी साल 2010 में बहू बनकर आयीं. ससुराल समेत विभिन्न गांवों में उन दिनों शौचालय नहीं थे.

महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता था. यह बात सुनीता को चुभने लगी और उन्होंने गांव में शौचालय के लिए जिला प्रशासन से मदद मांगी. गांव के लिए शौचालय मिल गया, लेकिन उसे बनाने को कोई राज मिस्त्री तैयार नहीं हुआ. इसके बाद सुनीता तत्कालीन उपायुक्त राजीव कुमार से मिलीं. उपायुक्त ने सुनीता के हौसलों को देखते हुए खुद मिस्त्री बनकर काम करने की प्रेरणा दी. पहले तो उन्हें यह थोड़ा अटपटा लगा, लेकिन उन्होंने मिस्त्री बनने की ठान ली.

उपायुक्त ने प्रशिक्षण की व्यवस्था करायी और सुनीता जिले की पहली ‘रानी मिस्त्री’ बनीं. रानी मिस्त्री बनने के बाद उन्होंने गांव के महिला समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और सभी को रानी मिस्त्री बनाया.

सुनीता ने साल 2013 में गांव की 10 महिलाओं को लेकर एक महिला समूह बनाया था. समूह की महिलाएं सौ रुपये प्रतिमाह जमा करने लगीं. धीरे-धीरे समूह मे पैसा जमा होने के बाद किसी को मुसीबत पड़ने पर कर्ज दिया जाने लगा. 2015 में सुनीता झारखंड राज्य आजीविका संवर्द्धन सोसाइटी से जुड़ीं, शुरुआत में सुनीता एवं उनके समूह की महिलाओं ने अपने गांव में 114 शौचालयों का निर्माण किया. आज सुनीता के प्रयास से पूरे जिले मे 1571 रानी मिस्त्री अपने-अपने गांवों में काम कर रही हैं.

पर्दे से निकल जैविक खेती से बदली गांव की तस्वीर : रेखा देवी
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देवघर : कभी परदे में रहनेवाली, देवघर के मोहनपुर प्रखंड के तुम्बावेल गांव की रेखा देवी ने आज अपने गांव में न केवल कृषक मित्र के रूप में अपनी पहचान बनायी है, बल्कि गांव की सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक कृषि से जोड़ा है. 23 वर्षीय रेखा के पति अकुशल मजदूर थे, जो काम करने झारखंड व बंगाल के शहरों में जाते थे. परिवार के छह सदस्यों का पेट पति की मजदूरी से पलना मुश्किल हो रहा था.

रेखा 2017 में कमल आजीविका सखी मंडल से जुड़ीं. आजीविका कृषक मित्र बनकर उन्होंने जैविक कृषि का प्रशिक्षण प्राप्त किया. इसमें उन्हें जैविक खाद बनाने और खेती की नयी तकनीकों की जानकारी मिली. रेखा ने सबसे पहले एक एकड़ जमीन में जैविक विधि से धान की खेती की. पहले ही वर्ष अच्छा मुनाफा हुआ. इसके बाद सखी मंडल से 10 हजार का ऋण लेकर दो एकड़ जमीन पर अरहर, धान, सब्जी की खेती की. इसमें लगभग 60 हजार रुपये की आमदनी हुई. अब पति भी साथ में खेती करते हैं. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के बाद रेखा, गांव की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं. वह गांव की महिलाओं को जैविक खाद व जैविक कीटनाशक बनाना सिखाती हैं. कई किसान उनके घर से जैविक खाद-कीटनाशक खरीद कर भी ले जाते हैं.

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