Hartalika Teej: युग बदला, परिवेश बदले, पर पूजा के लिए डलिया आज भी जरूरी, तीज का सजा बाजार

Hartalika Teej की तैयारी पूरे जोर शोर से चल रही है. परिवेश बदले, लेकिन धार्मिक मान्यता व विश्वास में आज भी पहले-सी रची-बसी मिट्टी की सुगंध है. हमारे रहन-सहन में भले ही पश्चिमी संस्कृति की झलक दिखे, लेकिन हमारे कई रीति-रिवाज ऐसे हैं, जिसमें पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ही पूजन-विधि की अनिवार्यता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2022 6:38 AM

युग बदला, परिवेश बदले, लेकिन धार्मिक मान्यता व विश्वास में आज भी पहले-सी रची-बसी मिट्टी की सुगंध है. हमारे रहन-सहन में भले ही पश्चिमी संस्कृति की झलक दिखे, लेकिन आज भी हमारे कई रीति-रिवाज ऐसे हैं, जिसमें पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ही पूजन-विधि की अनिवार्यता है. बात हरितालिका तीज की है. लोकपर्व छठ की तरह इसे भी सामाजिकता का पर्व माना जा सकता है. जिस तरह छठ में जैसे बांस के बने सूप-डाला का उपयोग होता है, उसी तरह तीज व्रत में भी बांस से बने डलिया का उपयोग जरूरी है. यही कारण है कि कारीगर इस व्रत में डलिया की बिक्री को लेकर आश्वस्त रहते हैं. हर वर्ष तीज करने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी के कारण इसके बाजार का भी विस्तार हो रहा है. कारीगरों की मानें, तो इस बार शहर के बाजार में करीब 12 से 15 लाख रुपये के डलिया की बिक्री होगी. इसके लिए कारीगर दिन-रात डलिया बनाने में जुटे हुए हैं.

एक महीने पहले से बनाते हैं डलिया

डलिया बनाने के लिए एक महीने पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है. शहर के बड़े कारीगर गांवों से सैकड़े के हिसाब से बांस की खरीदारी करते हैं. फिर डलिया बनाने का काम शुरू होता है. कई कारीगर गांवों से लेकर दूसरे जिलों में डलिया की आपूर्ति करते हैं. डलिया बनाने वाले कारीगर संजय राउत ने कहा कि डलिया बनाने का काम वे पिछले दस वर्षों से कर रहे हैं. लग्न के अलावा छठ व तीज के समय काम में तेजी रहती है. तीज में डलिया की बिक्री अच्छी होती है, इसलिए हमलोग एक महीना पहले से इसे बनाने में जुट जाते हैं. 10-15 दिनों तक इसकी बिक्री बाहर होती है, बाद में शहर की मांग के हिसाब से डलिया बनाते हैं. महंगाई के बावजूद इस बार डलिया की कीमत में बढ़ोतरी नहीं की गयी है. पिछले साल भी हमलोगों ने 30 रुपये जोड़ा डलिया बेचा था, इस बार भी उसी दर पर बेच रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version