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बिहार में जाति गणना पर फिर लग सकता है ग्रहण? पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गयी है चुनौती

Explainer: बिहार में जाति गणना का काम फिर एकबार शुरू कर दिया गया है. वहीं पटना हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी याचिकाकर्ता पहुंच गए. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जाति आधारित गणना पर हाइकोर्ट के फैसले पर सुनवाई हुई. जानिए पूरा मामला..

Explainer: बिहार में जातिय गणना पर लगी रोक को हटा दिया गया है. पटना हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार के द्वारा कराई जा रही गणना को सही ठहराया तो सूबे में एकबार फिर से जाति आधारित गणना का काम शुरू कर दिया गया. पटना में सर्वे का काम पूरा भी कर लिया गया. वहीं अब मामला फिर एकबार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इस मामले की सुनवाई हुई. सबकी निगाहें सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर ही है.

जाति गणना पर लगाए गए रोक को हटाया

बीते 1 अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राहत देते हुए जाति गणना पर लगाए गए रोक को हटा लिया था. हाईकोर्ट ने इस गणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था. जिससे राज्य की नीतीश सरकार को बड़ी राहत मिली थी. जब इस सर्वे पर अंतरिम आदेश के तहत रोक लगाया गया था तो सरकार की ओर से राहत मांगने वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करने कहा था. और अब जब हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है तो इस बार विरोधी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

बिहार में किए जा रहे जाति गणना मामले में सात अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. पटना हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर की गयी है. पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार पर जाति गणना करने पर लगी रोक लगा हटा ली थी. इसके खिलाफ नालंदा के अखिलेश कुमार सिंह एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए अब अगली सुनवाई की तिथि 14 अगस्त को दी है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल जाति गणना के काम पर रोक नहीं लगाया है. एकबार फिर से अब लोग कयास लगा रहे हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट की ओर से क्या निर्णय लिया जाता है.

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युद्ध स्तर पर सर्वे का काम शुरू

बता दें कि रोक हटते ही सरकार की ओर से जाति गणना को लेकर सक्रियता तेज कर दी गयी. जिलों को आदेश जारी कर दिया गया कि वो जाति गणना के काम को फिर से शुरू करें. युद्धस्तर पर काम शुरू करने का निर्देश दिया गया. वहीं जब हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की संभावना दिखने लगी तो बिहार सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दिया. सरकार ने ये कदम विशेष अनुमति याचिका दाखिल होने की संभावना को देखते हुए उठाया.

बिहार सरकार ने क्यों दाखिल की कैविएट?

बिहार सरकार ने कैविएट दाखिल करके सुप्रीम कोर्ट से अपील की, कि इस मामले में बिना सरकार का पक्ष सने कोई आदेश जारी नहीं की जाए. बिहार सरकार की ओर से मनीष सिंह इस मामले में वकील हैं जिन्होंने याचिका दाखिल की. बता दें कि जातीय गणना को लेकर बिहार में राजनीति गरमायी हुई है. अब जब सरकार के बंधन को हाईकोर्ट ने खोल दिया है तो फिर एकबार सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर सबकी निगाहें होंगी.

89 दिनों के बाद फिर शुरू हुआ काम..

गौरतलब है कि पटना हाइकोर्ट के द्वारा लगी रोक हटी तो 89 दिनों के बाद बुधवार से बिहार में फिर एकबार जातीय गणना का काम शुरू हुआ. जाति गणना के नोडल सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, जाति आधारित गणना का 80 प्रतिशत काम पूरा हो गया था. उसके बाद अचानक हाइकोर्ट से इसपर रोक लगा दी गयी थी. अब महज 20 फीसदी काम ही बाकी है, जिसका अगस्त के तीसरे सप्ताह तक हर जगह पूरा हो जाने की संभावना है.

याचिककर्ता के वकील की नजर में पटना हाईकोर्ट का फैसला..

बता दें कि जातीय गणना को लेकर बिहार सरकार केंद्र पर हमलावर रही है. इधर, झारखंड में भी जाति गणना का काम कराने का विचार सोरेन सरकार कर रही है. जानकारी के अनुसार, इसपर तैयारी शुरू हो चुकी है. पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को सर्वे काम से रोका था. लेकिन अब 101 पन्नों के फैसले में कहा है कि राज्य सरकार को यह सर्वे कराने का पूरा अधिकार है. यह काम वह कानून के दायरे में और अपने अधिकार के तहत करा रही है. इसे निजता का उल्लंघन भी अदालत ने नहीं माना है. इसे जनता के हित की नीयत से कराया जा रहा काम बताया गया है. हाइकोर्ट ने फैसले में कहा है कि इससे राज्य सरकार जनता को उसके आर्थिक स्थिति के अनुसार सुविधा दे सकेगी. हालांकि अपने फैसले में पटना हाइकोर्ट ने साफ कहा है कि ये डाटा संग्रहित रहेगा और किसी को उजागर भी नहीं किया जाएगा. वहीं इस फैसले से नाखुश याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि पटना हाइकोर्ट का यह आदेश पूर्व के फैसले का उल्लंघन कर रहा है.

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