गणेश वर्मा, बेतिया : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ में पश्चिम चंपारण की आदिवासी संस्कृति का जिक्र सुनकर थारू व उरांव समुदाय के लोग अभिभूत हैं. सदियों से प्रकृति की रक्षा के लिए किये जाने वाले बरना पूजा का महत्व पीएम के मुंह से सुनना इनके लिए खास मायने रखता है.
आषाढ़ की समाप्ति व सावन के आगमन के समय होने वाले इस विशेष पर्व को उरांव समुदाय सामूहिक रूप से मनाता है. 60 घंटे के इस पर्व में हरे पेड़-पौधों, धास व फसल इत्यादि को काटने की मनाही होती है. पर्व की समाप्ति पर गीत-संगीत से उत्सव मनाया जाता है.
चंपारण आदिवासी उरावं महासभा के अध्यक्ष राजेश उरांव ने बताया कि उरांव संस्कृति में पेड़-पौधों व धरती की पूजा सदियों से शामिल है. बरना पूजा भी इसी परंपरा का एक हिस्सा है, जिसे फसल बुआई के समय मनाया जाता है. गांव के सिवान में सामूहिक रूप से उरांव समुदाय के लोग पूजा करते हैं. फिर 24 से 60 घंटे तक उस सिवान में किसी के जाने की मनाही रहती है.
कोई भी हरा पेड़-पौधा, फसल, घास नहीं काटता है. सभी मिलकर प्रकृति की पूजा करते हैं. प्राकृतिक आपदाओं से फसल की रक्षा के लिए भी यह पूजा की जाती है. उन्होंने बताया कि उरांव संस्कृति में कर्मा धर्मा पूजा भी शामिल है.
यह पूजा दो सितंबर को जंगल के समीप औरैया में मनाया जाएगा. यह पूजा भी प्रकृति के लिए है. इसमें पारंपरिक गीत संगीत का भी आयोजन होता है. उरांव परंपरा की सभी पूजा समुदाय के गुरो यानि प्रधान कराते हैं. महिला-पुरुष नृत्य प्रस्तुत कर खुशियां मनाते हैं.
posted by ashish jha