जातीय गणना व आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाइकोर्ट में सोमवार को सुनवाई अधूरी रही. मंगलवार को 2:15 बजे फिर इस मामले पर सुनवाई की जायेगी. मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ में इस मामले को लेकर यूथ फॉर इक्वालिटी व अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरीय अधिवक्ता अपराजिता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार द्वारा छह जून, 2022 को राज्य में जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण कराने संबंधी लिया गया नीतिगत फैसला भारत के संविधान और सेंसस एक्ट 1948, सेंसस रूल 1990 के विपरीत है . सरकार द्वारा जो जाति आधारित गणना की जा रही है, इसके लिए किसी प्रकार का न तो कानून ही बनाया गया और न ही कोई रूल या रेगुलेशन ही बनाया गया है .
कोर्ट को बताया गया कि सरकार द्वारा जिन 17 बिंदुओं पर सूचना जुटायी जा रही है उसमें धर्म, जाति और आर्थिक स्थिति के बारे में भी सूचना ली जा रही है. यह कार्य किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के विपरीत है. उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का जिक्र करते हुए कोर्ट को बताया कि सरकार का यह कार्य कानूनन सही नहीं है. ऐसी स्थिति में जाति आधारित गणना और आर्थिक सर्वेक्षण के लिए प्रकाशित अधिसूचना को निरस्त किया जाये. क्योंकि राज्य सरकार का यह कदम उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है. राज्य सरकार का यह कार्य संविधान के विरुद्ध भी है.
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यह याचिका मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में 10:30 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए 2:15 बजे निर्धारित की . इस मामले पर सवा चार बजे तक सुनवाई चलती रही. अब मंगलवार को इस मामले में आगे की सुनवाई होगी.