25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Haleshwarnath: राजा जनक ने की थी शिवलिंग की स्थापना, राम और सीता ने की थी पूजा

Haleshwarnath: इस शिवलिंग की स्थापना खुद राजा जनक ने की थी और माता जानकी ने इस शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी, लिहाजा इसकी महता बढ़ जाती है। इसी स्थान से हल चलाने के दौरान पुनौरा में माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी

Haleshwarnath: सीतामढ़ी शहर से सटे फतेहपुर गिरमिसानी में स्थित हलेश्वर स्थान देशभर में प्रचलित है। यहां श्रद्धालु जो भी मन्नतें लेकर आते हैं वो बाबा जरूर पुरी करते हैं। बता दें कि इस शिवलिंग की स्थापना खुद राजा जनक ने की थी और माता जानकी ने इस शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी, लिहाजा इसकी महता बढ़ जाती है। इसी स्थान से हल चलाने के दौरान पुनौरा में माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी और इलाके से अकाल का साया समाप्त हो गया था। इसीलिए इलाके की समृद्धि हेतु किसानों द्वारा बाबा हलेश्वर नाथ का जलाभिषेक किया जाता है।

स्थानीय लोगों द्वारा सुख, समृद्धि, शांति, खुशहाली, पुत्र, विवाह व अकाल मृत्यु से बचने के लिए बाबा हलेश्वरनाथ का जलाभिषेक किया जाता है। सीतामढ़ी शहर से लगभग सात किलो मीटर की दूरी पर स्थित हलेश्वर स्थान में सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

वहीं सावन माह में भीड़ और बढ़ जाती है और पूरा इलाका हर – हर महादेव से जयघोष से गूंजता रहता है। पड़ोसी देश नेपाल के नुनथर पहाड़ व सुप्पी घाट बागमती नदी से जल लेकर कावंरियां हलेश्वर नाथ महादेव का जलाभिषेक करने आते है। वहीं जिले के विभिन्न इलाकों के अलावा शिवहर, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी आदि जिलों से भी भारी संख्या में लोग यहां पहुंचते है।

क्या है इतिहास ?

जानकी जन्म भूमि सीतामढ़ी से सात किमी उत्तर फतहपुर गिरमिसानी गांव में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां दक्षिण के रामेश्वर से भी प्राचीन शिवलिंग है। जिसकी स्थापना मिथिला नरेश राजा जनक द्वारा की गई थी। पुराणों के अनुसार यह इलाका मिथिला राज्य के अधीन था।

एक बार पूरे मिथिला राज्य में अकाल पड़ा गया था। पानी के लिए लोगों में त्राहिमाम मच गया था। तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक द्वारा अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्टि यज्ञ किया गया। यज्ञ शुरू करने से पहले राजा जनक जनकपुर से गिरमिसानी गांव पहुंचे और यहां अद्भूत शिवलिंग की स्थापना की। राजा जनक की पूजा से प्रश्नन होकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ प्रगट होकर उन्हे आर्शीवाद दिया।

बता दें कि राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरू किया और सात किमी की दूरी तय कर सीतामढ़ी के पुनौरा गांव पहुंचे, जहां हल के सिरे से मां जानकी धरती से प्रकट हुई थी। जैसे प्रकट हुईं उसके साथ ही घनघोर बारिश होने लगी और इलाके से अकाल समाप्त हो गया। ऐसा कहा जाता है कि इस शिवलिंग के गर्भ गृह से नदी तक सुरंग था, जिसके रास्ते मां लक्ष्मी व सरस्वती जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करने आती थी। इसका निशान आज भी मंदिर में देखने को मिलता है।

भगवान राम और माता सीता ने की थी पूजा

जनकपुर से विवाह के बाद अयोध्या लौटने के क्रम में मां जानकी व भगवान श्रीराम द्वारा भी इस शिवलिंग की पूजा की गई थी। पुराणों की मानें तो इसी स्थान पर खुद भगवान शिव ने उपस्थित होकर परशुराम को शस्त्र की शिक्षा दी थी। इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है, लोग बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में कराया गया था। 1942 के भूकंप में मंदिर को भयंकर क्षति पहुंची थी। उसके बाद मंदिर की सुध किसी को नहीं रहीं। यहां जंगल व घास उग आये थे। उसके बाद तत्कालीन डीएम द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें