बिहार में पर्याप्त संख्या में निबंधित और योग्य फार्मासिस्ट नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर को लेकर दायर लोकहित याचिका पर पटना हाइकोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश के वी चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मुकेश कुमार द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया.
निबंधित और योग्य फार्मासिस्ट की है कमी
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि डॉक्टरों द्वारा लिखी गयी पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है. बहुत सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है. वे बिना जानकारी और योग्यता के ही मरीजों को दवा बांटते है जबकि यह कार्य निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि यह सब निबंधित और योग्य फार्मासिस्ट की कमी के कारण हो रहा है.
स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा
प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल संबंधित कानून का उल्लंघन है बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी है. फार्मेसी एक्ट,1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए लेकिन बिहार सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. इससे आम लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है.
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बड़ी संख्या में फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि फार्मेसी एक्ट,1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रिया कलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमेटी गठित की जाये. उन्होंने कोर्ट को बताया कि बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या में फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे है .