बड़ी लापरवाही! मुजफ्फरपुर में कूड़े का ढेर बन गयी महाकवि जानकीवल्लभ की दुर्लभ रचनाएं, अब जागा संस्थान
छायावाद के अंतिम स्तंभ और महाप्राण निराला के शिष्य महाकवि जानकीवल्लभ शास्त्री ने अपने जीवन काल में कई कालजयी पुस्तकों का सृजन किया था. संस्कृत और हिंदी में रची गयी साहित्य की कई विधाओं की पुस्तक आज देश की धरोहर है, लेकिन करीब 40 पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पायी थी.
छायावाद के अंतिम स्तंभ और महाप्राण निराला के शिष्य महाकवि जानकीवल्लभ शास्त्री ने अपने जीवन काल में कई कालजयी पुस्तकों का सृजन किया था. संस्कृत और हिंदी में रची गयी साहित्य की कई विधाओं की पुस्तक आज देश की धरोहर है, लेकिन करीब 40 पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पायी थी, जिसमे आठ नाटक सहित कहानी-संग्रह, उपन्यास, गीत-संग्रह और संस्मरण हैं. महाकवि ने अपने आवास निराला निकेतन स्थित पुस्तकालय में उसे सहेज कर रखा था. अपनी अप्रकाशित पुस्तकों का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक अष्टपदी के कवर में भी किया है, लेकिन दुर्भाग्य कि उनके निधन के 12 वर्षों के अंतराल में उनका पुस्तकालय कूड़े के ढेर में तब्दील हो गया है, जिसमें उनकी पांडुलिपियां, निराला, पंत सहित अन्य साहित्यकारों के पत्र व उनकी डायरी, बेला पत्रिका के सभी अंक और उनकी किताबें रखी हुई थीं.
2011 में हुआ था महाकवि का निधन
हैरानी की बात यह है कि महाकवि का निधन वर्ष 2011 में हुआ था. वर्ष 2012 में शहर के साहित्यकारों ने जानकीवल्लभ शास्त्री न्यास का गठन भी किया, लेकिन दस वर्षों में कभी पुस्तकालय की सुधि नहीं ली. हालांकि इन वर्षों में बैठकें होती रही और योजनाएं बनती रही. कुछ दिन पूर्व ट्रस्ट के सचिव गोपेश्वर सिंह ने बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सतीश कुमार से संपर्क कर हिंदी विभाग के छात्रों द्वारा पुस्तकालय में पुस्तक संग्रहित करने का अनुरोध किया था. छात्रों ने कुछ पुस्तकें और पत्रिकाओं को तो कूड़े के ढेर से अलग कर दिया है, लेकिन महाकवि की पांडुलिपि, डायरी और पत्र कहां हैं, अभी इसकी जानकारी नहीं है. महाकवि की नतिनी और ट्रस्ट की हाल में कार्यकारी सचिव बनी रश्मि मिश्रा कहती हैं कि दस वर्षेां तक पुस्तकालय की देख रेख नहीं होने के कारण बहुत सारी दुर्लभ चीजें नष्ट हो गयी होंगी.
कई पुस्तकों का नहीं हुआ था प्रकाशन
महाकवि की पांडुलिपियाें की खोज बाकी महाकवि ने अपने जीवन काल में नाटक सत्यकाम, जिंदगी, आदमी, प्रतिध्वनि, देवी और नील झील सहित अन्य नाटक लिखे थे, जिसका प्रकाशन नहीं हुआ था. इसके अलावा गीत-संग्रह हंस किंकणी, सुरसरि, शिशिर किरण, प्यासी पृथ्वी, गजल-संगह धूप दोपहर की, सात भाषाओं पर केंद्रित गीत-संग्रह सप्तपर्ण, उपन्यास अश्वबुद्ध, कहानी चलंतिका और संस्मरण नीलबड़ी जैसी अन्य अप्रकाशित पुस्तकों का जिक्र भी महाकवि ने अपनी पुस्तक अष्टपदी के रैपर पर किया था, जिसकी खोज होना अभी बाकी है.