बिहार लोक सेवा आयोग की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा अब बीपीएससी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है. क्योंकि अभ्यर्थी अपनी मांग को लेकर पिछले 20 दिनों से परीक्षा में धांधली का आरोप लगाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. वही आयोग ने ऐसे किसी भी आरोप का खंडन किया. हालांकि ऐसा नहीं है कि प्रदेश में पहली बार इस तरह का प्रदर्शन हो रहा है. इससे पहले भी कई बड़े छात्र आंदोलन हुए हैं, जिन्होंने सत्ता की जड़ों को हिलाकर रख दिया. ऐसे में आज हम आपको उन छात्र आंदलनों के बारे में बताएंगे जिन्हें शुरू में नजरअंदाज करना सरकारों को बहुत महंगा पड़ा. लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि बिहार में छात्र यूनियन कब बनाए गए और इनका प्रदेश की राजनीति में क्या योगदान रहा?
साल 1906 में छात्र यूनियन की स्थापना और आजादी के लड़ाई में योगदान
हम जब इतिहास के पन्नों में झांकते हैं तो पता चलता है कि बिहार के पहले छात्र यूनियन ‘बिहारी स्टूडेंट्स सेंट्रल एसोसिएशन’ की स्थापना साल 1906 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में हुई. इसका विस्तार बनारस से कोलकाता तक था. इस छात्र यूनियन का आजादी की लड़ाई में भी प्रमुख तौर पर योगदान रहा. पुराने जानकार बताते हैं कि 11 अगस्त 1947 को विधानसभा सचिवालय पर तिरंगा फहराने की कोशिश में इस यूनियन के सात छात्रों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी.
साल 1955: आजाद भारत का ‘पहला छात्र आंदोलन’
साल 1955 में बिहार में हुए छात्र आंदोलन को आजाद भारत का पहला छात्र आंदोलन माना जाता है. इसकी शुरुआत बेहद ही मामूली वजह से हुई थी. दरअसल, 1955 में बिहार के परिवहन विभाग ने किराए में बढ़ोत्तरी कर दी थी, जिसके बाद छात्रों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. इसी दौरा एक छात्र दीनानाथ पांडे सड़क किनारे खड़े होकर बस हंगामा देख रहा था. उसी दौरान पुलिस के बंदूक से चली एक गोली लगने से उसकी मौत हो गई. इसके बाद आंदोलन उग्र हो गया. हालात यह हो गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पटना आकर दखलअंदाजी करना पड़ी. लेकिन आंदोलनकारी नहीं माने. परिणामस्वरूप ट्रांसपोर्ट मंत्री महेश सिंह को इस्तीफा देना पड़ा.
1966 के आंदोलन की वजह से चुनाव हार गई कांग्रेस
साल 1966 में आरडीएस कॉलेज के भौतिकी के प्राध्यापक डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह के साथ पुलिस ने बदसलूकी कर दी. जिसके बाद छात्रों ने इस घटना के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया. इसी दौरान पुलिस के साथ हुई झड़प में एक छात्र व एक प्राध्यापक की मौत हो गई. इस घटना ने आग में घी का काम किया. जिसके बाद यह आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया. नतीजा अगले वर्ष 1967 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और महामाया प्रसाद सिन्हा पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने.
1974 के छात्र आंदोलन ने बदल दी थी देश की सियासत
18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों और युवाओं द्वारा राज्य सरकार में कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू किया गया. उस दिन विधानमंडल के सत्र की शुरुआत होने जा रही थी. राज्यपाल दोनों सदनों के संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे. रणनीति यह बनी थी कि छात्र आंदोलनकारी राज्यपाल को विधानमंडल भवन में जाने से रोकेंगे और उनका घेराव करेंगे. योजना के अनुसार छात्र जब छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया तो पुलिस प्रशासन ने छात्रों को रोकने की कोशिश की और पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी. छात्रों पर लाठीचार्ज के बाद आंदोलन और उग्र हो गया और आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए. देखते ही देखते अनियंत्रित भीड़ और अराजक तत्व भी आंदोलन में घुस गए. हर तरफ लूट और आगजनी की घटना होने लगी. घटना में कई छात्रों की मौत भी हो गई.
जेपी ने संभाली आंदोलन की कमान
जय प्रकाश नारायण से आंदोलन की कमान संभालने की मांग जोर शोर से उठने लगी. जयप्रकाश नारायण ने पहला शब्द यह रखा था कि इस आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए. छात्रों ने जेपी की बात मान ली और राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए तमाम छात्रों ने इस्तीफा दे दिया और जेपी के साथ हो लिए. इसका असर यह हुआ कि इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर दिया और जब 1977 में देश में लोकतंत्र बहाल हुआ तो इंदिरा गांधी को रायबरेली से राजनारायण ने चुनाव हरा दिया.
1990 में मंडल के खिलाफ शुरू हुआ था छात्र आंदोलन
साल बीतता गया और इस दौरान बिहार में छोटे-बड़े आंदोलन होते रहे. लेकिन करीब 13 साल बाद बिहार एक बार फिर से बड़े आंदोलन का गवाह बना. दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को संसद में घोषणा करते हुए बताया कि उनकी सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. इस रिपोर्ट में सभी स्तरों पर ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी. इसके विरोध में जनरल वर्ग के छात्रों द्वारा विरोध शुरू किया गया था. यह छात्र आंदोलन बहुत ही पहले तो असंगठित था, लेकिन बाद में राजनीतिक दलों की ओर से इसे संगठित तरीके से आयोजित किया. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार को व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था.
13 दिसंबर से शुरू हुआ BPSC अभ्यर्थियों का विरोध प्रदर्शन
करीब 4 बड़े छात्र आंदोलन की अगुवाई करने के बाद बिहार एक बार फिर से आंदोलन के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है. दरअसल, बीपीएससी अभ्यर्थी राजधानी पटना में लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. अभ्यर्थी 13 दिसंबर को बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में धांधली का आरोप लगा परीक्षा को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. वहीं, आयोग ने किसी भी तरीके के पेपर लीक होने की आशंका से इंकार किया है. बता दें कि अभ्यर्थियों का प्रदर्शन कोई नया नहीं है. उन्होंने पहले बीपीएससी 70वीं संयुक्त परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन की आशंका को लेकर धरना प्रदर्शन किया था. जिसके बाद बैकफुट पर आए आयोग को सफाई देनी पड़ी थी कि वह इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन नहीं लागू करने जा रहा है. आयोग की सफाई के बाद मामला कुछ देर के लिए शांत तो हुआ लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया.
आयोग ने कराया दोबारा परीक्षा
अभ्यर्थियों की तरफ से बापू परीक्षा केंद्र में तोड़फोड़ की घटना के बाद बीपीएससी ने उस केंद्र पर 4 जनवरी को फिर से परीक्षा आयोजित कराया. इस परीक्षा में 13 दिसंबर की तुलना में ज्यादा अभ्यर्थी शामिल हुए. आयोग के परीक्षा नियंत्रक राजेश कुमार सिंह ने साफ कर दिया कि अब कोई दोबारा परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी और जनवरी के आखिरी हफ्ते में इस परीक्षा का रिजल्ट जारी कर दिया जाएगा.
गांधी मैदान में जारी है धरना प्रदर्शन
बीपीएससी के द्वारा बापू परीक्षा परिसर में दोबारा परीक्षा कराने के बाद भी अभ्यर्थी मानने के लिए तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि अगर परीक्षा में गड़बड़ी नहीं हुई है तो आयोग दोबारा परीक्षा क्यों ले रहा है? आयोग नाइंसाफी क्यों कर रहा है. उनकी मांग है कि बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा को रद्द किया जाए और फिर से परीक्षा कराया जाये. वही, अभ्यर्थियों के समर्थन में जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर अनशन कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक सरकार छात्रों की मांग नहीं मानेगी तब तक वह अपना अनशन खत्म नहीं करेंगे.
BPSC आंदोलन ने दिल्ली तक का चढ़ाया पारा
बता दें कि गांधी मैदान में चल रहे आंदोलन की गूंज अब राजधानी दिल्ली तक सुनाई दे रही है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक ने बीपीएससी को दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुद्दा भी बनाने की कोशिश की. क्योंकि दिल्ली में बिहार के बहुत सारे युवा रहकर तैयारी करते हैं जो वहां पर वोटर बन गए है.