पूर्णिया. यूं तो गुरुवार को पूरे भारत वर्ष में होलिका दहन होगा, लेकिन होलिका की चिता भूमि का अलग महत्व है. वहां आज भी राख से होली खेलने की परम्परा है. होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर प्रह्लाद को आग में जलाना चाहती थी, लेकिन खुद जल गयी. प्रह्लाद को जिंदा देख लोग खुशी से नाचने लगे और होलिका की चिता की राख एक दूसरे पर डालने लगे. कहा जाता है कि इस तरह होली की शुरुआत हुई.
पुराणों के अनुसार होलिका की चिता भूमि बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है. बिहार के पूर्णिया जिले बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी हिरण्यकश्यप काल से जुड़े अवशेष बचे हैं. सभी साक्ष्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह वही स्थल है जहां होलिका दहन हुआ था और भक्त प्रह्लाद बाल बाल बच गये थे. तभी से इस तिथि पर होली मनायी जाती है. बनमनखी में होलिका दहन महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. आज भी यहां के लोग रंगों से नहीं बल्कि राख से होली खेलते हैं.
असुरराज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु के पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु भक्त था. जिससे हिरण्यकश्यप उसे अपना शत्रु समझने लगा था. अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की योजना बनायी. होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसपर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता था. योजना के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग जला दी. तभी तेज हवा चली और चादर होलिका के शरीर से हटकर प्रह्लाद के शरीर पर आ गिरा. होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गया.
यहां पर वह खंभा आज भी मौजूद है जिसके बारे में धारणा है कि इसी पत्थर के खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बनमनखी प्रखंड स्थित धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा ये खंभा कभी 400 एकड़ में फैला था, आज ये घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है. कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया. इससे ये टूटा तो नहीं, लेकिन ये स्तंभ झुक गया.
भगवान नरसिंह के इस मनोहारी मंदिर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है. नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं. उनका मानना है कि यहां आने से उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं. इस संबंध में राजेश्वरी देवी का कहना है कि यहां सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं. साथ ही होली के दिन इस मंदिर में धूड़खेल होली खेलने वालों की मुरादें सीधे भगवान नरसिंह के कानों तक पहुंचती है. इस वजह से होली के दिन यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होली खेलने और भगवान नरसिंह के दर्शन के लिए जुटती है.
सिकलीगढ़ धरहरा की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां होलिका दहन के समय लाखों लोग उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं. होलिका दहन की परम्परा से जुड़ी पूर्णिया के इस ऐतिहासिक स्थल पर हर वर्ष विदेशी सैलानी आते हैं और कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है.
फिलहाल, इलाके के विधायक और बिहार सरकार के पूर्व पर्यटन मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि ने इस स्थल को पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाया और होली के मौके पर राजकीय समारोह घोषित किया. लेकिन पिछले दो वर्ष से कोरोना काल को लेकर राजकीय महोत्सव नहीं मनाया गया था. वहीं इस बाबत कला संस्कृति मंत्री आलोक रंजन ने कहा कि इस बार होलिका दहन राजकीय समारोह के साथ मनाया जाएगा.