Loading election data...

दिवाली में घरौंदा क्यों बनाती हैं बेटियां? सनठी की बनी हुक्का-पाती जलाने की परंपरा के बारे में भी जानिए..

दिवाली में घर की बेटियों को आपने घरौंदा बनाते तो जरूर देखा होगा. वहीं घर के पुरुषों को दीपावली की रात को सनठी की बनी हुक्का-पाती को भी जलाते देखा होगा. इसकी बीड़ी बनाकर भी पीने की परंपरा है. इसके पीछे की कुछ मान्यताओं को जानिए..

By ThakurShaktilochan Sandilya | November 12, 2023 1:35 PM

Diwali 2023: कोसी और मिथिलांचल क्षेत्र में बगैर हुक्का-पाती रिवाज के दीपावली नहीं मनती. हुक्का-पाती सनठी रस्सी से बनाते हैं. सनठी का कुछ हिस्सा लोग घर भी लेकर आते हैं. हुक्का-पाती के माध्यम से लोग दरिद्रता को घर से बाहर निकालते हैं. और धन की देवी लक्ष्मी को घर में प्रवेश कराने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. दीपावली पर सदियों से चली आ रही एक खास परंपरा को आज भी अनवरत निभाया जा रहा है. मान्यताओं के अनुसार सनातन काल से यह परंपरा चली आ रही है. दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा के बाद घर के मुखिया के अलावा अन्य सदस्य पूजा स्थल पर घी या सरसों के तेल के दीये से सनठी की बनी हुक्का-पाती जलाते हैं. इसे जलाते हुए घर के हर कोने में दिखा कर घर के बाहर कहीं रखते हैं. जलती हुई सनठी का पांच बार तर्पण किया जाता हैं. इसे सामूहिक तौर पर निभाया जाता है.


शहर में समाप्त हो रहा प्रचलन

शहर में हुक्का पाती का प्रचलन भले ही धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है. लेकिन गांव में आज भी इसका जोश खरोश जारी है. दीपावली की शाम हुक्का पाती खेलने के लिए शुक्रवार को लोगों ने सनठी के हुक्का पाती की जमकर खरीदारी की. कुछ लोगों ने ग्रामीण इलाके में खुद से हुक्का पाती बनाकर तैयार कर लिया. दीपावली की शाम लक्ष्मी-गणेश पूजन के बाद हर घर में हुक्का पाती के सहारे लक्ष्मी को घर के अंदर और दरिद्र को बाहर किया जाता है.

Also Read: बिहार का बेगूसराय देशभर में सबसे प्रदूषित शहर, टॉप- 10 में पटना समेत प्रदेश के 9 शहर शामिल..
पंडितों की नजर में यह परंपरा

मिथिलांचल क्षेत्र में तो बगैर हुक्का-पाती रिवाज के दीपावली नहीं मनती. सहरसा के बलवा निवासी पंडित बिनोद झा कहते हैं कि सनातन काल से हुक्का-पाती की परंपरा घर से दरिद्र नारायण के वास को खत्म करने के लिए चल रही है. हुक्का-पाती घर के सभी पुरुष सदस्य मिलकर खेलते हैं. वरिष्ठ महिला सदस्य घर की लक्ष्मी मानी जाती हैं. इसलिए वह पाती उन्हें सौंपी जाती है.

बेटियां घरौंदा क्यों बनाती है..

वहीं दीपावली के मौके पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ बेटियां घरौंदा और रंगोली बनाकर उसकी पूजा करती हैं. अब जमाना हाईटेक हो गया है .नई पीढ़ी परंपराओं से दूर होती जा रही है. उसे यह भी नहीं पता कि माता-पिता घर में जो रीति निभाते हैं उसका मूल मतलब क्या है- दीपावली में भी धनतेरस के दिन से ही कुबेर पूजा, आभूषण बर्तन खरीद, लक्ष्मी-गणेश पूजा, घरौंदा भरना, रंगोली बनाना आदि परंपराएं निभानी शुरू हो जाती हैं.

पौराणिक मान्यता क्या है..

दीपावली के दिन बेटियां द्वारा घरौंदा बनाने के पीछे क्या कारण है इस संबंध में पंडित विद्याधर शास्त्री बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीराम जब चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे तो उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों में दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था. लोगों ने यह माना कि अयोध्या नगरी उनके आगमन से एक बार फिर बस गई है. इसी परंपरा के कारण घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन बढ़ा.

घरौंदा पूजा पर चढ़ा है आधुनिकता का रंग

घरौंदा पूजा में अब आधुनिकता का रंग चढ़ गया है. आधुनिक युग में लोग इस पुरानी परंपरा से कटते जा रहे हैं. अब घरों में मिट्टी का घरौंदे की जगह लकडी, थर्मोकोल, कूट, चदरा और टीन निर्मित बाजार में बिक रहे घरौंदा खरीद कर पूजा की रस्म अदायगी करते हैं. पहले महिलाएं, युवतियां मिट्टी से घरौंदा तैयार करती थी. फिर उसको रंगों से सजाती थी. मिट्टी के दीये जलाकर रंग-बिरंगे मिठाई, सात प्रकार का भुंजा आदि मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ महिलाएं घरौंदा पूजन करती थी. इसके बाद आतिशबाजी की जाती थी. लेकिन यह परंपरा शहर में तो पूरी तरह समाप्त होती नजर आ रही है. ग्रामीण क्षेत्रो में थोड़ी बहुत इसकी रस्म अदायगी भले ही की जा रही है.

घरौंदा में क्या रखती हैं अविवाहित लड़कियां..

घरौंदा में सजाने के लिये कुल्हिया-चुकिया का प्रयोग किया जाता है और उसमें अविवाहित लड़कियां लाबा, फरही ..मिष्ठान भरती हैं. इसके पीछे मुख्य वजह रहती है कि भविष्य में जब वह शादी के बाद ससुराल जायें तो वहां भी भंडार अनाज से भरा रहे. कुल्हियां चुकिया में भरे अन्न का प्रयोग वह स्वयं नहीं करती बल्कि इसे अपने भाई को खिलाती हैं क्योंकि घर की रक्षा और उसका भार वहन करने का दायित्व पुरुष के कंधे पर रहता है.

रंगोली लगा देती है घर को चार चांद

घरौंदा से खेलना लड़कियों को काफी भाता है. इस कारण वह इसे इस तरह से सजाती हैं जैसे वह उनका अपना घर हो. घरौंदा की सजावट के लिए तरह-तरह के रंग-बिरंगे कागज, फूल, साथ ही वह इसके अगल बगल दीये का प्रयोग करती हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि इससे उसके घर में अंधेरा नहीं हो और सारा घर रोशनी कायम रहे.आधुनिक दौर में घरौंदा एक मंजिला से लेकर दो मंजिला तक बनाये जाने की परंपरा है. दीपावली के दौरान ही घर में रंगोली बनाये जाने की भी परंपरा है. दीपावली के दिन घर की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है और रंगोली घर को चार चांद लगा देती है. घर चाहे कितना भी अधिक सुंदर हो यदि रंगोली घर के मुख्य द्वार पर नहीं सजायी गयी तो घर की सुंदरता अधूरी सी लगती है. सामान्य तौर पर रंगोली का निर्माण चावल, गेंहू, मैदा, पेंट और अबीर से बनाया जाता है लेकिन सर्वश्रेष्ठ रंगोली फूलों से बनायी जाती है. इसके लिये गेंदा और गुलाब के साथ हरसिंगार के पूलों का इस्तेमाल किया जाता है जो देखने में सुंदर तो लगता ही है साथ ही सात्विकता को भी उजागर करता है .

Next Article

Exit mobile version