पटना. एनेस्थीसिया के बिना नसबंदी सर्जरी का दर्द दयामणि देवी ने इसलिए बर्दाश्त किया, क्योंकि वो और बच्चे होने का दर्द नहीं सहना चाहती थी. ऑपरेशन के दौरान उसने असहनीय दर्द महसूस किया, लेकिन ये दर्द उस दर्द से कम था. वो कहती है कि उसे मालूम था कि एक नौसिखिए द्वारा खामोशी से उसके शरीर को एक ब्लेड से काटा और सिला जा रहा है. दयामणि उन 24 ग्रामीण महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने पिछले महीने बिहार के खगड़िया जिले के अलौली ब्लॉक में बिना एनेस्थीसिया के नसबंदी करवाई थी. वे होश में थीं और ऑपरेशन टेबल पर दर्द से कराह रही थीं. अधिकतर महिलाओं के पहले से ही तीन से पांच बच्चे थे.
इस घटना के सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने जांच के आदेश दिये थे, लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है. इस संबंध में एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन कुछ महिलाओं पर वो बेअसर रहा. ऐसा कई बार होता है क्योंकि हर व्यक्ति के शरीर का सिस्टम अलग होता है. बताया जाता है कि अधिकतर महिलाओं ने बच्चों की संख्या को सीमित करने के लिए नसबंदी के इस असहनीय दर्द से गुजरने का फैसला किया. ज्यादातर महिलाओं के पति गरीब प्रवासी मजदूर हैं और उनके परिवारों के पास संसाधनों की बेहद कमी है.
अलौली के बुढवा-हरिपुर में रहनेवाली 30 वर्षीय दयामणि देवी जिनके घाव अभी भरने बाकी हैं. अधिकतर महिलाओं की तरह दयामणि भी आगे की ओर देख रही हैं. वो अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए कहती हैं कि मैं नहीं चाहती कि मेरे बेटे मजदूर बनें. मीडिया से बात करते हुए दयामणि कहती है कि मेरा दर्द मेरे बच्चों की खुशी के आगे कुछ भी नहीं है. वे अब मेरे जीवन में सब कुछ हैं. दयामणि माता-पिता के घर में अपने दो महीने के बच्चे के साथ रह रही है. उनके पति धीरज पटेल हरियाणा में एक मजदूर के रूप में काम करते हैं, जो महीने में लगभग 15,000 रुपये कमाते हैं.
दयामणि ऑपरेशन को याद करते हुए कहती है कि कैसे वह दो बार डरावनी स्थिति से गुजरीं. वो बताती है कि पहली बार जब डॉक्टरों ने कथित तौर पर एक असफल सर्जरी की और फिर एक नौसिखिए को कट की सिलाई करने के लिए कहा. दयामणि ने कहा कि एक नर्स ने एक ही जगह कई बार सुई घोंपा. मुझे तेज दर्द हुआ. बाद में मेरी शिकायत के बाद उसे (नौसिखिया) को काम से अलग किया गया. दयामणि ने अपनी भाषा में कहा- सब सिखेवाला रहथिन (वह एक इंटर्न थी).