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IAS एसोसिएशन ने किया आनंद मोहन की रिहाई के आदेश का विरोध, कहा- बिहार सरकार करे पुनर्विचार

IAS एसोसिएशन ने राज्य सरकार से आनंद मोहन को रिहा करने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है. एसाेसिएशन ने कहा कि कर्तव्यपरायण लोक सेवक की हत्या के आरोप में दोषी को कम जघन्य श्रेणी में तब्दील नहीं किया जा सकता.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 25, 2023 11:24 PM

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई के आदेश के बाद से राज्य में विवाद बढ़ता ही जा रहा है. अब आइएएस एसोसिएशन की सेंट्रल कमेटी ने गोपालगंज के तत्कालीन डीएम और 1985 बैच के आइएएस अधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा पाये पूर्व सांसद आनंद माेहन की रिहाई का विरोध किया है.

आनंद मोहन की रिहाई के आदेश का IAS एसोसिएशन ने किया विरोध

आइएएस एसोसिएशन ने मंगलवार को एक पत्र जारी कर कहा है कि जी कृष्णैया की नृशंस हत्या हुई थी और बिहार सरकार ने उनकी हत्या के आरोपित को रिहा करने के लिए प्रावधान बदल दिया है. बिहार सरकार के इस फैसले का एसोसिएशन कड़े शब्दों में निंदा करता है.

बिहार सरकार करे पुनर्विचार : आइएएस एसोसिएशन

एसोसिएशन की ओर से जारी पत्र में राज्य सरकार से आनंद मोहन को रिहा करने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा गया है. एसाेसिएशन ने कहा कि कर्तव्यपरायण लोक सेवक की हत्या के आरोप में दोषी को कम जघन्य श्रेणी में तब्दील नहीं किया जा सकता. यह संशोधन एक लोक सेवक के हत्यारे की रिहाई की ओर ले जाता है. यह न्याय से वंचित करने के समान है. इस तरह के फैसलों से लोक सेवकों के मनोबल में गिरावट आती है. लोक व्यवस्था को कमजोर किया जाता है और न्याय के प्रशासन का मजाक उड़ाया जाता है.

27 अप्रैल को पटना लौटेंगे आनंद मोहन 

इधर, पेराेल की अवधि खत्म हो जाने की वजह से आनंद मोहन मंगलवार को दोपहर बाद सहरसा के लिए रवाना हो गए हैं. वह बुधवार को सहरसा जेल में उपस्थित होंगे. जहां आनंद मोहन को एक से दो दिनों मे राज्य सरकार के आदेश के बाद स्थायी तौर पर रिहा कर दिया जायेगा. इसके बाद 27 अप्रैल को वो पटना लौटेंगे.

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2007 से जेल में बंद हैं आनंद मोहन 

विधि विभाग की अधिसूचना के मुताबिक 75 वर्षीय आनंद मोहन तीन अक्तूबर 2007 से जेल में बंद हैं. सभी रिहा किये जाने वाले सभी कैदियों की सजा की अवधि 14 वर्षों से अधिक हो चुकी है. दरअसल, आनंद मोहन की स्थायी रिहाई के लिये नीतीश कैबिनेट ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481, 1 ‘क’ में संशोधन करते हुए उस वाक्यांश को हटाने का निर्णय लिया था. इसके तहत सरकारी सेवक की हत्या को अपवाद के तौर पर पहले शामिल किया गया था. इसके बाद 24 अप्रैल को राज्य दंडादेश परिहार परिपर्षद की बैठक में 14 वर्षों की वास्तविक अवधि जेल में गुजारने वाले आजीवन कारावास प्राप्त बंदियों मुक्त किये जाने की अनुशंसा पर राज्य सरकार द्वारा ऐसे बंदियों को मुक्त करने निर्णय लिया गया.

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