अनिकेत त्रिवेदी, पटना. घटना वर्ष 2018 के मई की है. जब सुशीला नाम की एक महिला के पति की मौत पीएमसीएच में इलाज के दौरान हो गयी थी. इस दौरान शव को अस्पताल से घर ले जाने के लिए एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिली.
लाख प्रयास के बाद जब वह एंबुलेंस से शव ले जाने में असफल रही, तो उसने लोगों से भीख मांग कर पैसे की व्यवस्था की और फिर अपने पति का शव लेकर घर गयी. मामला एंबुलेस नहीं मिलने के साथ चिकित्सीय लापरवाही में मौत का भी था.
इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की. करीब तीन वर्ष बाद पीड़िता को मुआवजा मिला. बीते फरवरी माह की दस तारीख को आयोग की ओर से मुआवजा देने का फैसला किया गया. फिर गृह विभाग की ओर से राशि स्वीकृति की गयी है.
वहीं, इस वर्ष फरवरी माह में करीब साढ़े चार वर्ष पहले के मामले में तीन पीड़ितों को मुआवजा राशि मिली है. सीतामढ़ी के शिवहर थाना में दर्ज एक कांड 59 /16 में सीतामढ़ी के रहने वाले राज पलटन मिश्रा, ललिता देवी और राकेश पासवान को 25 हजार की दर से मुआवजा भुगतान का निर्देश दिया गया है.
इसके अलावा लखीसराय के पीरी बाजार के रहने वाले बटोरन कोड़ा की मौत पुलिस हिरासत में हो गयी थी. मामला वर्ष 2016 का था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया. लगभग चार साल के बाद अक्तूबर 2020 में बटोरन कोड़ा के निकटतम परिजन को पांच लाख मुआवजा राशि भुगतान का आदेश दिया गया. इस वर्ष गृह विभाग ने इसकी स्वीकृति दी.
इस वर्ष बीते तीन माह के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अनुग्रह अनुदान की राशि का तेजी से भुगतान हुआ है. जनवरी से लेकर अब तक लगभग 11 कांडों में पीड़ितों को राहत देते हुए करीब 32 लाख से अधिक मुआवजा राशि की स्वीकृति गृह विभाग की विशेष शाखा की ओर से की गयी है.
इसमें किसी एक व्यक्ति को अधिकतम पांच लाख और न्यूनतम 50 हजार तक का भुगतान किया गया है. विभागीय अधिकारियों की मानें, तो जिला के अनुशंसा आने के बाद विभाग स्तर पर मामले को तेजी से निबटाया जा रहा है. पीड़ितों को 50 हजार, एक लाख, दो लाख और अधिकतम पांच लाख तक का भुगतान किया गया है.
Posted by Ashish Jha