आनंद तिवारी, पटना. पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एनएमसीएच और पटना एम्स में इन दिनों दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाने के लिए शिक्षक अभ्यर्थियों की काफी भीड़ लग रही है. लेकिन, इनमें बहरेपन की जांच कराने आ रहे अभ्यर्थियों को निराशा हाथ लग रही है. दरअसल, शहर के इन मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में बहरेपन की जांच के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. एनएमसीएच और पीएमसीएच में जहां ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर ही नहीं हैं, तो दूसरी ओर पटना एम्स में एक साल व आइजीआइएमएस में करीब चार से छह माह की वेटिंग दी जा रही है. इतना ही नहीं, पीएमसीएच मेंजांच करने वाली मशीन भी बीचबीच में खराब रहती है. इसके कारण अभ्यर्थियों के अलावा मरीजों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिलों से भी लोग पटना इलाज कराने आते हैं.
शहर के इन चारों मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में कई जिलों से अभ्यर्थी व मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं. जिन मरीजों को सुनाई कम देता है, उनकी बैरा जांच करायी जा रही है. वहीं कम सुनाई देने संबंधित प्रमाणपत्र लगाकर सरकारी नौकरी हासिल करने वालों की भी बैरा जांच करायी जाती है. वहीं, सरकारी कर्मचारियों की अन्य कारणों से नौकरी लगने के बाद मेडिकल जांच करायी जाती है. बैरा जांच सरकारी संस्थान से ही मान्य होती है. वहीं, जानकारों की मानें, तो एनएमसीएच और पीएचसीएच में ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर नहीं होने व पीएमसीएच में मशीन खराब होने से पटना एम्स व आइजीआइएमएस में जांच का लोड बढ़ गया है. ऐसे में अधिकतर मरीज रेडक्रॉस या फिर निजी डायग्नोस्टिक सेंटर से जांच कराने को मजबूर हो रहे हैं.
जानकारों की मानें, तो पटना सहित पूरे बिहार के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में ऑडियोमेट्रिस्ट टेक्नीशियन व ऑडियोलॉजिस्ट के 34 पद स्वीकृत किये गये हैं. लेकिन 2017 से आज तक करीब सात साल होने के बाद भी आज तक इन पदों पर नियुक्ति नहीं हो पायी है. सबसे अधिक परेशानी एनएमसीएच, डीएमसीएच व पीएमसीएच में हो रही है. सूत्रों की मानें, तो एनएमसीएच में छह साल पहले यहां एक ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर थे. लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर का ट्रांसफर हो गया, जिसके बाद जांच बंद हो गयी है. यही हाल पीएमसीएच का है. इन अस्पतालों के इएनटी विभाग में आने वाले मरीजों को आइजीआइएमएस या पटना एम्स में रेफर किया जाता है, जबकि यहां रोजाना 45 से 50 मरीज जांच कराने आते हैं.