किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए खुशखबरी, IGIMS दो नयी तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट की तैयारी में जुटा
आइजीआइएमएस किडनी रोग विभाग के एडिशनल प्रो डॉ अमरकेश कृष्णा ने कहा कि स्वैप ट्रांसप्लांट में दो इनकम्पेटिबल पेयर्स कम्पेटिबल हो जाते हैं. इससे दोनों मरीजों को फायदा होता है . इस प्रक्रिया में दो डोनर्स के अंगों का उपयोग आपस में बदल कर किया जाता है
पटना. किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए अच्छी खबर है. आने वाले दिनों में संस्थान स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट व एबीओ इनकॉम्पटिबल किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करेगा. इसकी तैयारी में संस्थान के डॉक्टर जुट गये हैं. स्वैप तकनीक से जहां दो मरीजों को एक साथ ट्रांसप्लांट हो जायेगा. वहीं एबीओ तकनीक से ऐसे मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट हो सकेगा, जिनका ब्लड ग्रुप मेल नहीं खा रहा हो. यानी डोनर व किडनी रोगी का ब्लड ग्रुप मैच न होने पर भी प्रत्यारोपण हो सकेगा. आइजीआइएमएस में किडनी ट्रांसप्लांट कराने पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से अनुदान भी मिलता है. अन्य राज्यों की तुलना में यहां बेहद कम यानी करीब पांच लाख रुपये में ही ट्रांसप्लांट हो जाता है.
स्वैप तकनीक से यह होता है फायदा
आइजीआइएमएस किडनी रोग विभाग के एडिशनल प्रो डॉ अमरकेश कृष्णा ने कहा कि स्वैप ट्रांसप्लांट में दो इनकम्पेटिबल पेयर्स कम्पेटिबल हो जाते हैं. इससे दोनों मरीजों को फायदा होता है . इस प्रक्रिया में दो डोनर्स के अंगों का उपयोग आपस में बदल कर किया जाता है, क्योंकि दोनों जोड़ों में डोनर मरीज कंपेटिबल नहीं होते हैं. दोनों मरीज डायलिसिस की चिंता किये बगैर जिंदगी आसानी से गुजार सकते हैं. टिशू और मानव अंग ट्रांसप्लांटेशन अधिनियम, संशोधन और 2014 के नियम के साथ स्वैप दान को कानूनी रूप से अनुमति दी गयी थी.
प्लाज्मा फेरेसिस से निकाली जाती हैं एंटीबॉडीज
मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा ज्यादा होने से वह दूसरे ब्लड ग्रुप के किडनी को नकार देती है. एंटीबॉडीज उसके प्लाज्मा को खराब कर देते हैं. लिहाजा मरीज के शरीर से निर्धारित मात्रा में एंटीबॉडीज को निकाल दिया जाता है. इसके बाद मरीज का शरीर किसी भी किडनी को स्वीकार कर लेता है. किडनी ट्रांसप्लांट से पहले प्लाज्मा फेरेसिस की जाती है. स्वैप तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट दो अलग-अलग ग्रुप के मरीज को बदल कर दिया जाता है.
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