नवादा. फेस्टिवल सीजन में दीये की रोशनी केवल रात में अंधेरा ही दूर नहीं करती, बल्कि यह लोगों के लिए रोजगार के नये अवसर भी लाती है. फेस्टिवल से जुड़े कई कारीगर अपनी कला के माध्यम से अलग-अलग प्रोडक्ट तैयार कर उपलब्ध बाजार का लाभ उठाते हैं. आधुनिकता के दौर में हाथ से बनाये प्रोडक्ट की डिमांड कम हो रही है. बावजूद इसके लोकल प्रोडक्ट को लेकर लोगों में कुछ जागरूकता आयी है. ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा ने स्थानीय बाजार में काफी बड़ा नुकसान पहुंचाया है. लेकिन यही ऑनलाइन शॉपिंग चाहिए, ऐसे प्रोडक्ट को भी हमारे पास लाया है, जो अब तक केवल कुछ क्षेत्र तक ही सीमित रहते थे.
लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए वोकल बनाने का प्रयास
कला को बढ़ावा देने के साथ आर्थिक मजबूती के लिए हम लोगों को भी लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए वोकल बनना चाहिए. स्थानीय स्तर पर प्लास्टिक और अन्य रंगीन कागज से बने गुलदस्ते. बांस से घरों को सजाने के लिए आकर्षक बंदनवार, पूजा के लिए घरौंदा, घरों को सजाने के लिए आकर्षक फोटो फ्रेमिंग के सजावटी सामान आदि का निर्माण स्थानीय स्तर पर कलाकार करते हैं. जिला के बनाए गए प्रोडक्ट इन दिनों सड़कों पर खूब बिक रहे हैं. जिला के मार्केट में अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए उत्तर प्रदेश के गोरखपुर क्षेत्र से भी कई घुमंतू परिवार के लोग आए हैं जिनके द्वारा बनाये गये गुलदस्ते काफी पसंद आ रहे हैं.
रोजगार के मिलते हैं अवसर
रोजगार के नए अवसर दीपावली, छठ जैसे त्योहार उपलब्ध कराते हैं. धन की देवी मां लक्ष्मी अपने आगमन पर लोगों के लिए रोजगार के नये द्वार भी खोलती है. लॉकडाउन के बाद मंदी का असर चारों ओर फैला हुआ है. ऐसे समय में फेस्टिवल सीजन शुरू होने के साथ ही लोगों के बीच रोजगार की कई नए अवसर उपलब्ध हुए हैं. खासकर दीपावली के समय लोगों के बीच कला संपन्नता बढ़ती है, साथ ही काम के कई नए अवसर निकलकर सामने आते हैं. मंदी से निकलकर दुकानों में बिक्री के लिए ग्राहकों की भीड़ बढ़ती है. कई कलाकारों को केवल दीपावली में अपनी कला दिखाते हुए आमदनी का जरीया मिलता है. दीपावली पूजा में घर की बेटियों द्वारा पूजन किये जाने वाले घरौंदे, मिट्टी के खिलौनानुमा बर्तन, कागजों प्लास्टिक से बने गुलदस्ता, बांस और अन्य कागज से बने बंदनवार आदि लोगों को काफी पसंद आ रहा है.
स्थानीय प्रोडक्ट की खरीदारी को दें बढ़ावा
वोकल फॉर लोकल का नारा प्रधानमंत्री के द्वारा दिया गया है. स्थानीय प्रोडक्ट को बढ़ावा देने की अपील करते हुए लोगों को अपने आसपास के प्रोडक्ट को अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की अपील की गयी है. दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने की अपील तो अब कई कंपनियों के अत्याधुनिक विज्ञापनों में भी दिख रहे हैं. स्थानीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें मार्केट में सही कीमत मिलना चाहिए. ऑनलाइन प्रोडक्ट बिक्री के लिए दूसरे स्थानों पर जाए इसके लिए उसकी क्वालिटी इंप्रूवमेंट को लेकर भी कई प्रयास हो रहे हैं. जीविका और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से भी कई लोगों को अलग-अलग लोकल प्रोडक्ट बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
त्योहार की लोग करते हैं तैयारी
दीपावली पर बनने वाले प्रोडक्ट में से अधिकतर परिवारों की सालभर की अपेक्षा और आकांक्षाएं भी जुड़ती है. रोशनी के इस पर्व के लिए महिनों पहले से घरौंदा, मिट्टी के खिलौने, दीये, सजाने के सामान, बही खाता आदि बनाना शुरू किया जाता है. इन कामों में अधिकतर घर की महिलायें व लड़कियां अपनी भूमिका निभाती है. घरौंदा, मिट्टी के बर्तन, गुलदस्ता, बही खाता, फोटो फ्रेमिंग आदि बनाने में सधे हाथों की कलाकारी की जरूरत होती है. इन कामगारों को त्योहारों में काम मिलता है. भारतीय समाज व्यवस्था की विशेषता कहें की समाज के हर वर्ग का महत्व व उनकी उपयोगिता बनी हुई है. निश्चित ही कला को काम बाजारों में पूजा के दौरान ही मिलता है. कला के कई अन्य प्रकार इस समय देखने को मिल रहे हैं.
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क्या कहते हैं दुकानदार
कागज और प्लास्टिक से बनने वाले गुलदस्ता इन दिनों खूब बिक्री होती है. हमारा परिवार मूलतः उत्तर प्रदेश में रहते हैं लेकिन त्योहार के सीजन में हम लोग तीन से चार महीने नवादा में पिछले कई वर्षों से रह कर गुलदस्ता बनाने तथा इसकी बिक्री का काम करते हैं. घर में मां पिता जी के अलावे सभी लोग गुलदस्ता निर्माण और बिक्री के काम में जुटते हैं. दीपावली सीजन में इसकी खूब बिक्री होती है.
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मोहम्मद सोहेल, गुलदस्ता विक्रेता
मिट्टी के खिलौने की डिमांड केवल फिलहाल दीपावली में ही शेष रह गई है. मिट्टी के खिलौने बच्चों को प्रकृति के नजदीक लाता है. लोगों में जागरूकता फैलाने के बाद मिट्टी के दीए के अलावे अन्य कोई प्रोडक्ट में खास बिक्री में वृद्धि नहीं दिखती है. शहर में बिक्री से जुड़े लोगों को तो कुछ काम साल भर तक मिलता है लेकिन गांव में आज भी चक्की चलाने वालों के लिए पूरे साल के खर्च निकालना भी मुश्किल है.
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राकेश पंडित, मूर्तिकार
बांस कागज और अन्य चीजों से मिलाकर घरों में सजाने के लिए बंदनवार और अन्य प्रोडक्ट बनते हैं. इसके अलावा छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाले सूप, दौरा आदि भी स्थानीय कलाकार बनाते हैं. घर परिवार के लोगों के अलावे हिसुआ और अन्य दूसरे जगह से बने बनाए प्रोडक्ट लाकर हम लोग बेचते हैं.
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सचिन कुमार, बांस के प्रोडक्ट विक्रेता