सूरज गुप्ता, कटिहार : हर वर्ष 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. पिछले आठ वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश के आलोक में वैश्विक स्तर पर इस दिवस का आयोजन किया जाता है. हर देश एवं राज्यों में इस दिवस के अवसर पर किशोरियों व बालिकाओं की सुरक्षा एवं उसके सशक्तीकरण को लेकर विभिन्न तरह की गतिविधियों का आयोजन होता है. रविवार को इस बार अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जायेगा. हालांकि वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से देश स्तर पर कई तरह की बंदिशें है.
साथ ही बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां भी तेज है. ऐसे में बालिका दिवस पर गतिविधियां आयोजित किये जाने की संभावना कम ही दिखती है. बावजूद इसके बिहार में बाल विवाह एवं लड़कियों से जुड़ी समस्याओं की कमी नहीं है. कई मोर्चे पर लड़कियां को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यद्यपि हाल के वर्षों में काफी कुछ बदलाव हुआ है. इस बीच बाल विवाह के खिलाफ राज्य सरकार के अभियान को शुरू हुए भी एक दो वर्ष से ऊपर हो गया है.
यूं तो अब तक गैर सरकारी संगठन व सामाजिक संस्थानों के द्वारा बाल विवाह की रोकथाम को लेकर अभियान चलायी जाती रही है. राज्य सरकार ने समाज कल्याण विभाग के महिला विकास निगम को बाल विवाह की रोकथाम को लेकर बने कानून के प्रभावी क्रियांवयन के लिए नोडल विभाग बनाया है.
गौरतलब है कि कटिहार जिला सहित बिहार में अन्य दूसरे राज्यों की अपेक्षा बाल विवाह के अधिक मामले होते है. कटिहार जिले में करीब 40 प्रतिशत लड़कियों की शादी निर्धारित उम्र यानी 18 साल से कम में हो जाती है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे चार की रिपोर्ट में बाल विवाह की स्थिति साफ तौर पर दर्शाया गया है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 10 साल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे कराया जाता है. कमोवेश यही स्थिति बिहार की भी है.
कटिहार सहित बिहार के अन्य जिलों में बाल विवाह एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आयी है. राज्य सरकार बाल विवाह के साथ-साथ दहेज प्रथा को भी समाप्त करने की दिशा में कार्य योजना कार्य शुरू की है. बाल विवाह की स्थिति काफी चिंताजनक है. यद्यपि बाल विवाह को लेकर हर वर्ष कई तरह के अध्ययन रिपोर्ट सामने आते रहे है.
पिछले वर्ष ही भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- चार की रिपोर्ट जारी हुयी है. इस रिपोर्ट पर भरोसा करें तो कटिहार जिले में 38.6 प्रतिशत लड़की की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है. इसी रिपोर्ट के अनुसार 14.3 प्रतिशत लड़कियां 15 से19 वर्ष के उम्र में मां बन जाती है. जबकि एनएफएचएस- तीन में बाल विवाह बिहार में 60.3 प्रतिशत था.
वहीं कटिहार में 43.7 प्रतिशत लड़कियों की शादी एक दशक पूर्व निर्धारित उम्र से कम में कर दी जाती थी. इसी तरह का मिलता जुलता रिपोर्ट राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी सामने आया है. कई गैर सरकारी संगठन के द्वारा भी समय- समय पर अध्ययन रिपोर्ट जारी की जाती रही है. साथ ही इसके कारण भी बताते रहे है.
बाल विवाह का मुख्य कारण : बाल विवाह का मामला खासकर गरीब, मजदूर और अशिक्षित परिवारों में देखने को मिलता है. अभी भी जनजाति, दलित, अल्पसंख्यक समुदाय में बाल विवाह के अधिक मामले होते हैं. समाज में सुरक्षा के कारण भी बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है. दहेज की वजह से भी बाल विवाह होता है. जानकारों की मानें तो बाल विवाह के अधिक मामले ग्रामीण क्षेत्र में हैं.
उच्च माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा की बेहतर व्यवस्था नहीं होने की वजह से बाल विवाह अधिक होती है. लोगों की मानें तो इज्जत के डर से भी गरीब मजदूर परिवार अपनी बेटी की शादी कम उम्र में कर देते है. पिछले वर्ष राज्य सरकार ने बाल विवाह एवं दहेज प्रथा की रोकथाम को लेकर निर्माण शुरू किया है. उसका थोड़ा असर भी अब दिखने लगा है. प्रशासनिक स्तर पर बाल विवाह की रोकथाम को लेकर सक्रियता बढ़ी है.
Posted by Ashish Jha