मुजफ्फरपुर में गाय के गोबर से चार हजार हेक्टेयर में होगी नेचुरल फार्मिंग
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के तहत पहले फेज में राशि को आवंटन को हरी झंडी मिल गयी है. आर्गेनिक कृषि को बढ़ावा देने का उद्देश्य है कि सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों का बहिष्कार किया जाए. इसके लिए जिले में चार क्लस्टर के तहत चिह्नित लाभुकों को अनुदान मिलेगा.
कृषि क्षेत्र में रासासनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से वातावरण प्रदूषित होने के साथ मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में गाय के गोबर व अन्य विधि से जिले में नेचुरल फार्मिंग की कवायद तेज हो गयी है. परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति से जिले में चार हजार हेक्टेयर को चिह्नित किया गया है. वहीं चार कलस्टर का निर्माण हुआ है. इससे जुड़े चिह्नित लाभुकों को नेचुरल फार्मिंग के लिए अनुदान दिया जायेगा. किसानों के लिए जीरो बजट पर लागू इस योजना के लिए वर्ष 2022-23 के लिए राशि खर्च करने की हरी झंडी मिल गयी है. बताया गया है कि सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों का बहिष्कार करना योजना का उद्देश्य है.
लघु किसान व महिला कृषकों को देना है प्राथमिकता
गाइडलाइन में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक कलस्टर में कुल लाभान्वित किसनों की संख्या में कम से कम 65 फीसदी किसान लघु व सीमांत श्रेणी के होंगे. साथ ही महिला कृषकों को प्राथमिकता दी जायेगी. किसानों को प्रति हेक्टेयर सहायता अनुदान प्रथम वर्ष दो हजार रुपये दिये जायेंगे. वहीं कलस्टर निर्माण, क्षमतावर्द्धन सहित अन्य कार्यों के लिए प्रति हेक्टेयर 12,200 राशि का प्रावधान तीन वर्षों के लिए किया गया है. पहले वर्ष के लिए जिले को 2 करोड़ 11 लाख रुपये मुहैया कराया गया है.
नयी पद्धति के लिए 17 जिलों में मुजफ्फरपुर भी शामिल
प्राकृतिक कृषि पद्धति के लिए 17 जिलों में 31 हजार हेक्टेयर में योजना का टारगेट तय किया गया है. इसमें मुजफ्फरपुर जिले को भी शामिल किया गया है. 60 फीसदी केंद्र व 40 फीसदी राज्य की राशि पर योजना संचालित होनी है. जिला कृषि पदाधिकारी खुद योजना की मॉनीटरिंग करेंगे. कृषि विभाग के विशेष सचिव रवींद्र नाथ राय ने संबंधित जिला कृषि पदाधिकारी को गाइडलाइन भेजा है.
प्राकृतिक खेती के लिए गाइडलाइन
बताया गया कि प्राकृतिक खेती काफी हद तक ऑन-फॉर्म बायोमास री-साइकलिंग पर आधारित है. इसका उद्देश्य बायोमास मल्चिंग, ऑन फॉर्म गाय गोबर व मूत्र का उपयोग करने और सभी सिंथेटिक रासायनिक उत्पादनों का बहिष्कार करना है. इस पद्धति से होने वाले उत्पाद रसायन-कीटनाशी के अवशेष से मुक्त रहेंगे. उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा. इसके लिए जिला स्तर पर कार्यकारिणी समिति का गठन किया जायेगा, जो मॉनीटरिंग और जांच करेगी.