गेहूं की उपज बढ़ा कर बिहार के किसान धान में हुए नुकसान की करेंगे भरपाई, जानें क्या कहते हैं वैज्ञानिक
पटना केंद्र सरकार की संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बिहार सरकार को सलाह दी है कि माॅनसून के कमजोर होने के कारण बिहार में धान की खेती को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपायी वह गेहूं, सरसों और रबी की मक्का की फसल से कर सकती है.
अनुज शर्मा. पटना केंद्र सरकार की संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बिहार सरकार को सलाह दी है कि माॅनसून के कमजोर होने के कारण बिहार में धान की खेती को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपायी वह गेहूं, सरसों और रबी की मक्का की फसल से कर सकती है.
एक टन प्रति हेक्टेयर तक की वृद्धि संभव
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) अशोक कुमार सिंह ने इस संबंध में कृषिविभाग को पत्र लिख रहे हैं. आइसीएआर का मानना है कि जिस क्षेत्र में धान की रोपनी नहीं हो सकी है, वहां गेहूं की पैदावार में एक टन प्रति हेक्टेयर तक की वृद्धि हो सकती है.
धान की रोपनी नहीं हो सकी
माॅनसून के कमजोर होने के कारण बिहार में छह लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की रोपनी नहीं हो सकी है. राज्य में प्रति हेक्टेयर 2447 किलो धान पैदा होता है. धान के बड़े भू- भाग में पानी लंबे समय तक जलभराव होने के कारण किसान लंबी अवधि के धान की रोपनी करता है. इससे गेहूं की फसल पिछड़ जाती है.
14 लाख 68 हजार 200 टन की गिरावट संभव
एक अनुमान के अनुसार बिहार में खरीफ 2022 में धान के कुल उत्पादन में करीब 14 लाख 68 हजार 200 टन की गिरावट आ सकती है. वहीं, राज्य में गेहूं का रकबा 22.225 लाख हेक्टेयर है. कुल पैदावार 2985 किलो प्रति हेक्टेयर के औसत से 66.3502 लाख टन है. इस तरह धान की रोपनी से वंचित क्षेत्रफल में 17 लाख 91 हजार 000 टन गेहूं होता है.
धान से वंचित क्षेत्र में ही छह लाख टन गेहूं अधिक पैदा करने का अवसर
आइसीएआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि बिहार में जहां धान की रोपनी नहीं हो पायी है वहां के क्षेत्र को गेहूं की उत्पादकता के लिए अवसर बनाया जा सकता है. यहां के किसान यदि 15 नवंबर तक गेहूं बो देते हैं , तो प्रति हेक्टेयर एक टन अनाज की पैदावार बढ़ जायेगी. छह लाख हेक्टेयर में ही अन्य साल के मुकाबले छह लाख टन अधिक गेहूं पैदा होगा.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
बिहार में फर्टिलाइजर पंजाब के बराबर ही खर्च होता है, लेकिन गेहूं की पैदावार उसके मुकाबले बहुत कम कर रहे हैं. इसका कारण गेहूं की बुआई में देरी है. जिन इलाकों में गेहूं देर से बोया जाता है वहां गेहूं की फसल को 15 नवंबर तक बोयें. इससे उत्पादन एक टन प्रति हेक्टेयर बढ़ने की उम्मीद है. ऊंचे क्षेत्र में सरसों की खेती भी सितंबर और अक्तूबर में बोने की जरूरत है. हम बिहार सरकार को पत्र लिख रहे हैं.
-अशोक कुमार सिंह , उप महानिदेशक (कृषि विस्तार),आइसीएआर पूर्वी क्षेत्र