पटना. 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली थी. तब से लेकर अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने कई बदलाव देखे. बदलाव की इन कड़ियों के बीच हम रोज कोई न कोई भाषण सुनते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी परंपरा है जो अब तक नहीं बदला है. यूं तो भारत में स्वतंत्रता दिवस का समारोह 15 अगस्त की सुबह को मनाया जाता है, लेकिन बिहार के इस शहर में सुबह का इंतजार नहीं किया जाता है, बल्कि रात ठीक 12 बजे झंडोत्तलन किया जाता है.
नेहरू का भाषण शुरू होते ही हुआ था झंडोत्तोलन
संविधान सभा में जब जवाहर लाल नेहरू 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज (मौजूदा सेंट्रल हॉल) से ऐतिहासिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ दे रहे थे, ठीक उसी वक्त बिहार के पूर्णिया शहर के एक चौराहे पर भारत के आजाद होने का जश्न मनाया जा रहा था और तिरंगा लहराया जा रहा था. पिछले 76 वर्षों से यहां 14 अगस्त की तारीख बदलते ही अंधेरी रात में तिरंगा अपने शौर्य और वैभव की अलख बिखेरता नजर आता है. बाघा बॉर्डर और पूर्णिया का झंडा चौक यही दो ऐसी जगह है, जहां हर एक साल 14 अगस्त की अंधेरी रात में ही झंडोत्तोलन होता है.
76 वर्षों से पूर्णिया में जारी है यह परंपरा
15 अगस्त 1947 की सुबह लाल किले की प्राचीर पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने झंडोत्तलन किया था, लेकिन बिहार के पूर्णिया में 14 अगस्त की रात को ही तिरंगा लहरा दिया गया था. यह परंपरा 14 अगस्त 1947 से आज तक चली आ रही है. 75वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तिरंगा फहरायेंगे, लेकिन पूर्णिया के लोग 14 अगस्त की रात यानी आज की रात ठीक 12:01 बजे आन, बान और शान से तिंरगा फहरायेंगे. पूर्णिया के झंडा चौक पर सैंकड़ों कीं संख्या में लोग जमा होते हैं.
स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर कुमार सिंह ने किया था झंडोत्तोलन
14 अगस्त 1947 की उस स्वर्णिम पल को लोग याद करते हैं जब ठीक 12 बजकर एक मिनट पर स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर कुमार सिंह ने झंडोत्तोलन किया था. झंडा चौक पर इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने पहुंचे लोग देशभक्ति की रंग से लबरेज होकर आते हैं. बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग हाथों में तिरंगा लेकर ‘भारत माता की जय’ का जयघोष करते हैं, लेकिन कोरोना के कारण इस बार भीड़ कम होगी.
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मिश्रा रेडियो की दुकान पर लगी रही थी लोगों की भीड़
14 अगस्त 1947 की रात सबको उस पल का इंतजार था जब देश आजाद होनेवाला था. सुबह से ही पूर्णिया के लोग आजादी की खबर सुनने के लिए बेचैन थे. दिनभर झंडा चौक पर लोगों की भीड़ मिश्रा रेडियो की दुकान पर लगी रही, मगर जब आजादी की खबर रेडियो पर नहीं आयी, तो लोग घर लौट आये. मगर मिश्रा रेडियो की दुकान खुली रही. रात के 11:00 बजे थे कि झंडा चौक स्थित मिश्रा रेडियो की दुकान पर रामेश्वर प्रसाद सिंह, रामजतन साह, कमल देव नारायण सिन्हा, गणेश चंद्र दास सहित उनके सहयोगी दुकान पर पहुंचे. फिर आजादी की बात शुरू हो गयी.
माउंटबेटन की आवाज सुनाने की लगने लगे नारे
इस बीच, मिश्रा रेडियो की दुकान पर सभी के आग्रह पर रेडियो खोला गया. रेडियो खुलते ही माउंटबेटन की आवाज सुनाई दी. आवाज सुनते ही लोग खुशी से उछल पड़े. साथ ही निर्णय लिया कि इसी जगह आजादी का झंडा फहराया जाएगा. आनन-फानन में बांस, रस्सी और तिरंगा झंडा मंगवाया गया. 14 अगस्त, 1947 की रात 12 बजे रामेश्वर प्रसाद सिंह ने तिरंगा फहराया. उसी रात चौराहे का नाम झंडा चौक रखा गया. झंडोत्तोलन के दौरान मौजूद लोगों ने शपथ लिया कि इस चौराहे पर हर साल 14 अगस्त की रात सबसे पहला झंडा फहराया जाएगा.
पूर्णिया के झंडा चौक पर जनता के हाथों में है झंडोत्तोलन की कमान
पूर्णिया के इस झंडा चौक पर झंडोत्तोलन की कमान लोगों ने रामेश्वर प्रसाद सिंह के परिवार के कंधे पर दे दी. रामेश्वर प्रसाद सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र सुरेश कुमार सिंह ने झंडात्तोलन की कमान संभाली और उनके साथ रामजतन साह, कमल देव नारायण सिन्हा, गणेश चंद्र दास, स्नेही परिवार, शमशुल हक के परिवार के सदस्यों ने मदद करनी शुरू की. अब रामेश्वर प्रसाद सिंह के पोते विपुल कुमार सिंह झंडा चौक पर 14 अगस्त की रात झंडोत्तोलन करते हैं.