Independence Day 2022: शहीद स्मारक बयां कर रही बलीदान की गाथा, पढ़ें गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी
भारत आज 75वां स्वतंत्रता दिवस (Independence day) मना रहा है. आज ही के दिन 15 अगस्त को अंग्रेंजों की हुकूमत से भारत की आजादी का ऐलान किया गया था.
भारत की आजादी में मुंगेर की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यहां के आजादी के कई दीवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे कर स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाई थी. जिनकी गाथा किला परिसर स्थित शहीद स्मारक बयान कर रही है. 1885 ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना और प्रथम अधिवेशन में गोपाल चंद्र सेन, तारा भूषण बनर्जी, छेदी प्रसाद, जीसी मजूमदार, जगन्नाथ प्रसाद आदि ने मुंगेर का प्रतिनिधित्व किया था. बिहार के पहले मुख्यमंत्री रहे कृष्ण सिंह ने अपने साथियों के साथ कष्टहरणी गंगा घाट पर एक हाथ में गीता और दूसरे हाथ में गंगाजल लेकर आजादी का संकल्प लिया था.
गुमनाम हैं आजादी की बलिवेदी पर जान गंवाने वाले गोविंद सिंह
महज 39 साल की उम्र में स्वतंत्रता की बलिवेदी पर जान न्योछावर करने वाले हेमजापुर निवासी गोविंद सिंह का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए था. लेकिन उनसे जुड़ी स्मृतियों को संरक्षित नहीं रखा जा सका. ब्रिटिश सरकार द्वारा 30 जनवरी 1945 को भागलपुर सेंट्रल जेल में गोविंद सिंह को फांसी दे दी गई थी.उनके कारनामों की चर्चा अब भी मुंगेर-सूर्यगढ़ा जनपद के घर-घर में होती है. यहां के निवासियों ने इनकी आदमकद प्रतिमा हेमजापुर ओपी में स्थापित कर दी है. जिस पर स्वतंत्रता दिवस के दिन लोग माल्यार्पण करते हैं.
आजादी के दीवानों की गाथा
सन 1910 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, शाह जुबैर, रामप्रसाद, तेजेश्वर प्रसाद, रामकिशोर सिंह और राधिका प्रसाद की अध्यक्षता में एक छात्र संगठन बनाया गया था. 26 दिसंबर 1920 ई को शाह जुबेर की अध्यक्षता में वर्तमान ज्योति मिस्त्री कॉलेज के प्रांगण में एक आमसभा का आयोजन हुआ था. जिसमें महात्मा गांधी और शौकत अली मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे. जिला मुख्यालय स्थित स्वतंत्रता सेनानियों का शहीद स्मारक, डकरानाला, तारापुर और विभिन्न प्रखंडों में शहीद स्मारक स्वतंत्रता संग्राम में मुंगेर के आजादी के दीवानों की गाथा बयां कर रही है.
किला परिसर स्थित शहीद स्मारक बयां कर रही गाथा
नौवागढ़ी क्षेत्र के महेशपुर निवासी बरमदेव नारायण सिंह ने महात्मा गांधी और श्री कृष्ण सिंह के अनुरोध पर अमीन की नौकरी छोड़ आजादी की लड़ाई में कूदे पड़े थे. 1942 को गिरफ्तार किए गए और भागलपुर-पटना के जेल में रखा गया था. 29 अगस्त 1945 ई. को महेशपुर के सरदार नित्यानंद सिंह अपने दो साथी अर्जुन सिंह व फौदी सिंह के साथ सोनबरसा शूट कांड में शहीद हुए थे.
मुंगेर का नमक सत्याग्रह व तारापुर में गोलीकांड
1930 से 1942 तक 12 वर्षों का दौर संघर्षों का था. इस दौरान 1930 ई में मुंगेर का नमक सत्याग्रह, 1932 ई. में तारापुर गोलीकांड, 1931 ई में बेगूसराय गोलीकांड जैसे घटनाएं घटी. इनमें सैकड़ों लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी और दर्जनों शहीद हुए. 15 जनवरी 1932 तारापुर थाना पर तिरंगा फहराते समय आजादी के दीवाने शहीद हुए. शहीद होने वालों में चंडी महतो, शीतल रविदास, सुकुल सोनार, बदन मंडल, संतपासी, छोटू झा, विश्वनाथ सिंह, सिंघेश्वर राजहंस, बसंत धानुक, रामेश्वर मंडल, गौतम मंडल, आसमा मंडल, महाराज सिंह सहित अन्य शामिल थे. अक्षय लाल सिंह और संजीवन सिंह के नेतृत्व में लोगों ने जमालपुर के अमझ पहाड़ी पर हमला कर सारे शास्त्रों को लूट लिया था.