आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अब तैयारियां तेज हो चुकी है. एक तरफ जहां विपक्षी दल एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है तो दूसरी तरफ एनडीए भी अपना कुनबा बढ़ाने में लगा है. विपक्षी दलों ने वोटों के बिखराव को रोकने के लिए एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ने का एलान किया और इस दिशा में अबतक तीन अहम बैठकें भी हो चुकी हैं. वहीं अब बात सीट शेयरिंग पर आ चुकी है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होते ही तमाम अड़चनें लगभग खत्म हो जाएगी और भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का एक अलग अध्याय शुरू हो जाएगा. वहीं बिहार की 40 सीटों पर भी अब विपक्षी दलों की तैयारी तेज होगी. कौन सा दल किस सीट पर उम्मीदवार उतारेगा, इसपर अब बात शुरू होगी.
इस माह के अंत तक इंडिया के घटक दलों के बीच बिहार में सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय हो जायेगा. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. इंडिया के घटक दलों में जदयू,राजद, कांग्रेस के अलावा तीन वामपंथी पार्टियां भाकपा माले, माकपा और भाकपा शामिल है. माना जा रहा है कि दो बड़े घटक दल जदयू और राजद की हिस्सेदारी बराबर की सीटों की होगी. इनसे बची सीटों में आधी कांग्रेस के खाते में आएगी और बची हुई सीटें वाम दलों की झोली में जाएंगी.
जानकार बताते हैं कि भाजपा की जीती हुई 17 सीटों में अधिकतर पर राजद के उम्मीदवार होंगे. घटक दलों के बीच कुछ सीटों पर अदला बदली भी होगी. किशनगंज की सीट कांग्रेस के लिए सुरक्षित रहेगी. भाकपा माले का 2019 में राजद के साथ तालमेल था. आरा की सीट पर वह दूसरे नंबर पर थी. वहीं सीपीआइ बेगूसराय में दूसरे नंबर पर रही थी. जानकार बताते हैं कि सीटों के तालमेल को लेकर जल्द ही घटक दलों की बैठक होने वाली है. इसमें पहले चरण में होमवर्क तैयार किया जायेगा.
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वहीं दूसरी ओर भाजपा ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है. एनडीए की ओर से पिछली बार जदयू ने भी उम्मीदवार उतारे थे और जीत दर्ज की थी. एनडीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी. एक सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी. राजद को तब एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी. लेकिन 7 सीटों पर राजद ने सीधी टक्कर जरूर दी थी. अब उन 7 सीटों पर राजद की नजर जरूर रहेगी. किशनगंज से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे. तब रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने सभी 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में कई दिग्गज चेहरे एनडीए के आगे हारे थे. लालू यादव की बेटी मीसा भारती, पूर्व जदयू नेता शरद यादव, सुर्खियों में रहे कन्हैया कुमार को भी हार का सामना करना पड़ा था.
देश के संसदीय इतिहास में कम से कम दो बार ऐसा वाकया आया है जब सत्ताधारी दल के खिलाफ विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर लड़ीं तो केंद्र में नयी सरकार बनी. 1977 में मोरार जी देसाई की सरकार और 1989 में वीपी सिंह सरकार इसके उदाहरण हैं. इंडिया गठबंधन के घटक दल इससे उत्साहित हैं. बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विजय रथ को रोकने में जदयू,राजद और कांग्रेस की एका थी.
भाजपा की जीती हुई सात सीटें ऐसी हैं जिन पर पिछली दफा राजद के साथ सीधा मुकाबलाहुआ था. बक्सर, दरभंगा, पाटलिपुत्र, शिवहर, सारण, महाराजगंज और अररिया लोकसभा की सीट पर राजद दूसरे नंबर पर रहा. जानकारी के मुताबिक इनमें से कुछ सीटों पर दल और उम्मीदवार बदले जा सकते हैं. वहीं सीतामढ़ी, झंझारपुर, मधेपुरा, गोपालगंज, भागलपुर और बांका में राजद और जदयू के बीच निर्णायक मुकाबला हुआ था.
सीटों के बटवारे में कांग्रेस और तीनों वामदलों की हिस्सेदारी तय करना चुनौती होगी. ये चारों पार्टियां अपने लिए अधिक सीटों की चाह रखेंगी. भाकपा माले पिछली दफा चार सीटों पर चुनाव लड़ी थी. जबकि सीपीआइ और माकपा भी इस बार सीटें चाह रही है. वहीं कांग्रेस में चुनाव लड़ने वाले दिग्गज नेताओं की सूची लंबी है. वहीं अब विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की ओर से जब सीट शेयरिंग पर बात तय होगी तो उसके बाद बिहार की 40 सीटों पर सबकी नजर रहेगी कि कौन कहां से अपना उम्मीदवार उतारेगा. भाजपा की नजर भी इस ओर जरूर होगी. ताकि उसके हिसाब से एनडीए भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतारेगा.